असली पहचान
06:37 AM Sep 12, 2023 IST
संत विरजानंद अपनी कुटिया में बैठे थे। द्वार खटखटाने की आवाज हुई। विरजानंद जी ने पूछा, ‘कौन है बाहर?’ उन्हें कोई उतर नहीं मिला। दूसरी-तीसरी बार पूछने पर भी जब कोई उतर नहीं मिला तो विरजानंद जी सहारा लेकर बाहर निकले। उन्हें पता चला कि बाहर मूलशंकर खड़े थे। उन्होंने उनसे पूछा, ‘क्यों रे! पूछने पर बोला क्यों नहीं कि तू था।’ मूलशंकर ने उत्तर दिया-‘‘जब यह पता ही नहीं है कि मैं कौन हूं तो क्या उत्तर देता?’ संत विरजानंद प्यार से उनकी पीठ थप-थपाकर बोले, ‘आ जा बेटा! कब से तेरा ही इंतजार कर रहा था।’ दिव्य दृष्टि-संपन्न गुरु और प्रखर प्रतिभा संपन्न शिष्य का मिलन हुआ। यही मूलशंकर आगे चलकर स्वामी दयानंद के नाम से प्रख्यात हुए।
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प्रस्तुति : मुकेश ऋषि
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