ट्रूडो के मंसूबे
दशकों से कनाडा आप्रवासियों का दिल खोलकर स्वागत करता रहा है। कनाडा का आप्रवासन मंत्र रहा है कि जितने अधिक प्रवासी लोग आएंगे, उतना उसके लिए बेहतर रहेगा। कभी नवागंतुकों का खुली बांहों से स्वागत करने वाले कनाडा की सोच रही है कि दूसरे देशों से आने वाले प्रवासी खुद को स्थापित करने के लिये अधिक मेहनत करते हैं और नये देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यहां तक कि कनाडा ने उन कट्टरपंथियों और चरमपंथियों का भी स्वागत किया, जो अपने मूल देशों में कानून की रेखाओं का अतिक्रमण करते रहे हैं। कनाडा सरकार खुद अपनी पीठ थपथपाती रही है कि वह अपने समकक्ष पश्चिमी देशों की तुलना में आप्रवासियों के लिये बेहतर स्थिति बनाने में अव्वल रही है। लेकिन समय के साथ-साथ स्थितियां विसंगतियों की शिकार हुई हैं। आप्रवासियों के लिये सदैव द्वार खुले रखने की कनाडा की नीतियों के चलते, वहां के मूल नागरिक मानते हैं कि इस उदार नीति का आवास, स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक सेवाओं पर लगातार दबाव बढ़ रहा है। जिसके चलते ट्रूडो सरकार पर न केवल विपक्ष बल्कि अपनी पार्टी का भी दबाव बढ़ रहा है। आज उनकी पार्टी में ट्रूडो का इस्तीफा मांगने वालों की संख्या भी कम नहीं है। इस दबाव का ही प्रभाव है कि ट्रूडो सरकार स्वीकार कर रही है कि उनकी सरकार श्रम जरूरतों को संबोधित करने और जनसंख्या वृद्धि को बनाए रखने के बीच सही संतुलन बनाने में विफल ही रही है। सरकार मानने लगी है कि आप्रवासन टिकाऊ होना चाहिए। दरअसल, कनाडा में लिबरल सरकार की लोकप्रियता में लगातार कमी आई है। जिसकी चिंता में कनाडा के प्रधानमंत्री ट्रूडो आम चुनावों से एक साल पहले ही हाथ-पैर मार रहे हैं। ट्रूडो की सोच है कि कुछ सख्त कदम उठाकर वे अपने मतदाताओं को आकर्षित कर सकते हैं। यहां तक कि उन्होंने अपनी अल्पमत सरकार को बचाने के लिये अपने पुराने मित्र व बड़े लोकतांत्रिक देश भारत से संबंध खराब करने से भी गुरेज नहीं किया।
दरअसल, जस्टिन ट्रूडो के मुगालते कम नहीं हुए हैं। अपनी अल्पमत सरकार को बचाने के लिये उन्होंने भारत का मुखर विरोध करने वाले जिन सांसदों का समर्थन लिया, उनके एजेंडे को पूरा करने में ट्रूडो सारी सीमाएं लांघ रहे हैं। राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के चलते ट्रूडो मानकर चल रहे हैं कि वे अपने चौथे कार्यकाल के लिये चुनाव मैदान में उतर सकते हैं। लेकिन पार्टी में चल रहे विरोध के चलते आशंका है कि उनका हश्र भी अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन जैसा न हो, जिनको डेमोक्रेट्स के भारी दबाव के बाद राष्ट्रपति पद की फिर से दावेदारी छोड़नी पड़ी। लेकिन ट्रूडो की राजनीतिक महत्वाकांक्षा इतनी प्रबल रही कि वे अपरिपक्वता के चलते अपने पुराने सहयोगी नई दिल्ली के साथ संबंध बिगाड़ने से भी नहीं चूके। इसी कड़ी में वे कोशिश कर रहे हैं कि भारत से आने वाले प्रवासियों की संख्या को कम कर सकें। इसमें दो राय नहीं है कि कनाडा में स्थायी निवास की अनुमति की प्रक्रिया में जो बदलाव की मंशा ट्रूडो सरकार जता रही है, उसका सबसे ज्यादा असर भारतीय प्रवासियों पर पड़ेगा। हालांकि, उम्मीद के अनुरूप कुछ देशों से ही उन्हें नई नीति को लेकर समर्थन मिला है। अमेरिका में राष्ट्रपति पद के दावेदार डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि अब जस्टिन ट्रूडो कनाडा की सीमाओं को बंद करना चाहते हैं। उल्लेखनीय है कि ट्रंप अमेरिका में सीमाओं को लेकर सख्त कदम उठाने की बात करते रहे हैं। यहां तक कि अमेरिका की मैक्सिको सीमा पर दीवार बनाना उनका मुख्य एजेंडा रहा है। लेकिन कनाडा के मामले में उसकी सबसे बड़ी मजबूरी यह है कि उसकी अर्थव्यवस्था आप्रवासियों पर पूरी तरह निर्भर है। इन आप्रवासियों ने कनाडा की आर्थिकी को मजबूत बनाने में बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। यह निर्भरता तब और बढ़ जाती है जब कनाडा की आबादी चिंताजनक रूप से बूढ़ी हो रही है। ट्रूडो सरकार की नई नीतियों के चलते उसे श्रमिकों की कमी से निपटना बड़ी चुनौती होगी। दरअसल, ट्रूडो सरकार जिसने साल 1914 की कोमागाटा मारू की घटना के लिये साल 2016 में माफी मांगकर प्रवासी भारतीयों को लुभाया था, अब उसने उस नीति से यू टर्न ले लिया है।