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Tricity Perinatology 2024 Conference: हर 20वां भारतीय किसी दुर्लभ बीमारी से पीड़ित, गर्भावस्था में जेनेटिक टेस्टिंग और स्क्रीनिंग जरूरी

03:11 PM Dec 22, 2024 IST

चंडीगढ़, 22 दिसंबर

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Tricity Perinatology 2024 Conference: क्या दुर्लभ बीमारियों से बचा जा सकता है? क्या बच्चों में बर्थ डिफेक्ट की संभावना को रोका जा सकता है? 'ट्राईसिटी पेरिनेटोलॉजी 2024' सम्मेलन में विशेषज्ञों ने इन जटिल सवालों पर गहराई से चर्चा की। सम्मेलन में उत्तर भारत के करीब 100 विशेषज्ञों ने जेनेटिक्स, आधुनिक तकनीकों और सुरक्षित गर्भावस्था के पहलुओं पर विचार-विमर्श किया।

दुर्लभ बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है
भारत में हर 20वां व्यक्ति किसी न किसी दुर्लभ बीमारी का शिकार है। इनमें से 80% बीमारियां जेनेटिक गड़बड़ियों के कारण होती हैं। ऑर्गेनाइजेशन ऑफ रेयर डिजीज इन इंडिया के मुताबिक, अब तक 7,000 से अधिक दुर्लभ बीमारियों की पहचान की जा चुकी है। इनमें से अधिकतर बीमारियां बच्चों को प्रभावित करती हैं।

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डॉ. हरप्रीत ने बताया कि 100 में से 2 बच्चों में जेनेटिक डिफेक्ट पाया जाता है। हालांकि, हर ऐसी गर्भावस्था को समाप्त करना जरूरी नहीं होता। सही समय पर जांच और विशेषज्ञ से परामर्श लेकर इसे मैनेज किया जा सकता है।

जेनेटिक टेस्टिंग: बीमारी से बचाव का उपाय
डॉ. हरप्रीत ने बताया कि जेनेटिक टेस्टिंग के जरिए 10-15 साल पहले ही डायबिटीज, कैंसर और हाइपरटेंशन जैसी गंभीर बीमारियों का पता लगाया जा सकता है। दंपती यदि परिवार शुरू करने से पहले जीन्स की जांच करवाएं तो संभावित बीमारियों से बचाव संभव है।

गर्भावस्था में जांच का महत्व
गर्भावस्था के दौरान नियमित और सटीक जांच से बर्थ डिफेक्ट का खतरा कम किया जा सकता है।

पहला अल्ट्रासाउंड: गर्भावस्था की पुष्टि के तुरंत बाद।
दूसरा अल्ट्रासाउंड: 11 से 14 हफ्तों के बीच।
तीसरा अल्ट्रासाउंड: 19 से 20 हफ्तों के बीच।

डॉ. हरप्रीत ने कहा कि 20 हफ्ते से पहले जेनेटिक स्क्रीनिंग कराना अनिवार्य है ताकि कोई भी जन्म दोष छूट न जाए।

एनआईपीटी: एक सुरक्षित और प्रभावी तकनीक
नॉन-इनवेसिव प्रीनेटल टेस्टिंग (एनआईपीटी) डाउन सिंड्रोम और अन्य क्रोमोसोमल असामान्यताओं का पता लगाने का सुरक्षित और सटीक तरीका है। यह गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य का समय पर पूर्वानुमान लगाने में मदद करता है।

सम्मेलन का संदेश
मदरहुड चैतन्य अस्पताल के डॉ. नीरज कुमार ने कहा, "ऐसे सम्मेलनों से डॉक्टरों को नई तकनीकों और जानकारी से अवगत होने का मौका मिलता है। जेनेटिक्स, फीटल मेडिसिन और हाई-रिजॉल्यूशन अल्ट्रासाउंड जैसे विषयों पर मंथन से चिकित्सा के क्षेत्र में प्रगति हो सकती है।"

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