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आदिवासियों-महिलाओं ने लगायी नैया पार

07:15 AM Nov 27, 2024 IST

चेतनादित्य आलोक

झारखंड विधानसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन की ओर से सबसे ज्यादा जेएमएम ने कुल 34 सीटें जीती। वहीं, कांग्रेस ने 16, राजद ने 4 और सीपीआई (एमएलएल) ने 2 सीटें जीती। यानी कुल मिलाकर इंडिया गठबंधन ने राज्य की कुल 81 में से 56 सीटें प्राप्त कर अपनी सरकार बचा ली है। दूसरी ओर एनडीए गठबंधन से भाजपा ने 21, आजसू, जेडीयू और लोजपा रामविलास ने एक-एक सीटें जीतीं। झारखंड में भारतीय जनता पार्टी के भीतर कुछ नए और पुराने नेताओं को लेकर लंबे समय से असमंजस की स्थिति बनी हुई है कि किसे नेतृत्व सौंपा जाए नए, तेज-तर्रार और युवा नेता को अथवा पुराने, स्थापित और मंझे हुए नेता को।
ऐसा बताया जाता है कि पार्टी के भीतर मतभेद-मनभेद रहने के कारण इस बात पर एक राय नहीं बन पाई कि झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले उसकी ओर से किस नेता को मुख्यमंत्री के तौर पर प्रस्तुत किया जाए। यही कारण है कि बड़ी संख्या में राज्य की गैर-आदिवासी जनता ने भी साथ नहीं दिया, जबकि भाजपा ने राज्य में चुनाव प्रचार में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह से लेकर तमाम स्टार प्रचारकों ने कमान संभाल रखी थी। यहां तक कि असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा राज्य में दो महीने तक जमे रहे, जिन्होंने बांग्लादेश से ‘घुसपैठियों’ को आने देने के लिए सोरेन सरकार पर जोरदार हमले किए।
गौरतलब है कि भाजपा ने अपनी रैलियों में झारखंड की ‘माटी, बेटी और रोटी’ का मुद्दा उठाया। इस मामले में भाजपा के नेताओं ने हेमंत सोरेन की सरकार पर आरोप लगाए कि राज्य में ‘माटी, बेटी और रोटी’ खतरे में हैं। इन सबके बीच झारखंड में भावी मुख्यमंत्री के तौर पर भाजपा के भीतर ऐसे प्रभावशाली चेहरे का अभाव रहा, जो जनता को प्रभावित कर अपनी ओर आकर्षित कर सके। जिस प्रकार उŸत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पार्टी को विजयी बनाने की पूरी जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले रखी है और चुनाव-दर-चुनाव सफलता की सीढ़ियां चढ़ते चले जा रहे हैं। जिस प्रकार हरियाणा में मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी पार्टी के लिए एक जिम्मेदार चेहरा हैं, वैसे ही चुनाव से पहले झारखंड में भी पार्टी को एक जिम्मेदार चेहरा नहीं मिला।
दूसरी ओर विपक्ष की ओर से पहले ही दिन से यह बिल्कुल साफ कर दिया गया था कि यदि इंडिया गठबंधन ने चुनाव जीता तो उनकी ओर से मुख्यमंत्री का चेहरा हेमंत सोरेन ही होंगे। हालांकि, भाजपा के भीतर कई नेता हैं जो हेमंत सोरेन को कड़ी टक्कर देने में सक्षम हैं। यहां तक कि कुछ नेता तो उनसे बेहतर परफाॅरमेंस करने की क्षमता और कौशल भी रखते हैं, लेकिन पार्टी की ओर से उन्हें आगे नहीं करने के कारण मतदाताओं के बीच इस बात को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई थी कि एनडीए का नेतृत्व कौन करेगा।
इसके अलावा बीजेपी ने झारखंड में चुनावों से पहले ‘लव जिहाद’ तथा ‘लैंड जिहाद’ का मुद्दा अत्यंत जोर-शोर से उठाया था। गौरतलब है कि भाजपा की ओर से की गई ध्रुवीकरण की कोशिश के बीच हेमंत सोरेन बिल्कुल शांत और उकसाने वाले बयानों से बचते दिखे। यह निश्चित रूप से हेमंत सोरेन की राजनीतिक परिपक्वता को दर्शाता है। हालांकि, उनकी ही पार्टी के कुछ नेता और इंडिया गठबंधन के अन्य घटक दलों के कई नेता कई मौके पर लगातार सांप्रदायिक बयानबाजी करते अवश्य देखे और सुने गए।
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 31 जनवरी को 8.36 एकड़ जमीन के अवैध कब्जे से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग के मामले की जांच के सिलसिले में जब झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को गिरफ्तार किया, तब ऐसा लगा था कि झामुमो अगले चुनावों में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर पिछड़ जाएगी। हालांकि, ऐसा हुआ नहीं। भाजपा ने भले ही इसे मुद्दा बनाकर झामुमो नेता के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए, किंतु यह हमला उन पर ही भारी पड़ गया। तात्पर्य यह कि भाजपा की रणनीति उलटी पड़ गई।
दरअसल, जेल में रहने के दौरान हेमंत सोरेन ने पत्नी कल्पना सोरेन को पीड़ित (विक्टिम) कार्ड खेलने के लिए प्रेरित किया, जिसके पश्चात कल्पना राज्य की आदिवासी जनता के बीच जाकर उनसे अपने पति के विरुद्ध भाजपा शासन द्वारा साजिशें किए जाने की बात बताती रहीं। दूसरी ओर भाजपा इस भ्रम में रही कि उसकी रणनीति राज्य के विधानसभा चुनाव में सफल हो जाएगी। ऊपर से महत्वपूर्ण चुनावों से पहले हेमंत सोरेन को जेल से बेल पर छोड़ा जाना भाजपा की सेहत के लिए और घातक हो गया।
बता दें कि चुनाव के दौरान हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी ने जम कर पीड़ित कार्ड खेला। यही कारण है कि राज्य के आदिवासी क्षेत्रों में इस बार मतदान प्रतिशत रिकॉर्ड स्तर पर रहा। बता दें कि राज्य की 26 आरक्षित सीटों में से 21 सीटों पर जेएमएम के प्रत्याशी विजयी हुए, जो यह दर्शाता है कि आदिवासी मतदाताओं ने बीजेपी को इस चुनाव में खारिज किया।
इस प्रकार देखा जाए तो अनिर्णय की स्थिति, प्रभावशाली चेहरे का अभाव और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा पीड़ित कार्ड खेलना झारखंड में भाजपा के लिए उसकी शिकस्त के प्रमुख कारण साबित हुए। अब भाजपा को भविष्य में बेहतर प्रदर्शन करने के लिए अपनी प्राथमिकता से विचार करते हुए पार्टी की ओर से राज्य को प्रतिनिधित्व देने का प्रयास करना ही होगा।

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