संगति से प्रवृत्ति
एक दिन गुलाब का पौधा राजनीतिज्ञ के पास कुछ सीखने के उद्देश्य से पहुंचा। राजनीतिज्ञ ने सिखाया, ‘जो जैसा व्यवहार करता है, उसके साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए। दुष्ट के साथ दुष्टता करना ही नीति है, यदि ऐसा न किया गया तो संसार तुम्हारे अस्तित्व को मिटाने में लग जाएगा।’ गुलाब ने उस राजनीतिवेत्ता की बात गांठ बांध ली। घर लौटकर आया तो अपनी सुरक्षा के लिए कांटे उत्पन्न करने लगा। जो कोई उसकी ओर हाथ बढ़ाता वह कांटे छेद देता था। कुछ दिनों बाद उस पौधे को एक साधु से सत्संग करने का अवसर मिल गया। साधु ने उसे बताया, ‘परोपकार में अपने जीवन को खपाने वाले से बढ़कर सम्माननीय कोई दूसरा नहीं होता।’ परिणामस्वरूप गुलाब ने उसी दिन अपने प्रथम पुष्प को जन्म दिया। उसकी सुंगध दूर-दूर तक फैलने लगी। जो भी पास से गुजरता, कुछ क्षण के लिए उसके सौंदर्य तथा सुरभि से मुग्ध हुए बिना न रहता। व्यक्ति को जैसी संगति-साथ मिलता है, वह वैसा ही बन जाता है। अतः अच्छे लोगों का संग ही करना चाहिए।
प्रस्तुति : मुकेश ऋषि