रसीले भोजन में जहरीले रसायन
दीपिका अरोड़ा
भारत में सदैव बाज़ार में बने खाने की अपेक्षा घर में तैयार भोजन को प्राथमिकता दी जाती रही है लेकिन व्यस्त जीवनशैली के चलते आजकल लोग पैक्ड फूड को प्राथमिकता देने लगे हैं। खासकर कामकाजी युवा पीढ़ी खाना बनाने को उबाऊ और समय खपाने वाली प्रक्रिया मानने लगी है। दरअसल विभिन्न एप्स पर एक क्लिक पर ऑनलाइन उपलब्ध पैक्ड फूड के विक्रेताओं ने इस प्रवृत्ति में और इजाफा किया है। वहीं डिब्बाबंद फ्रोजन फूड भी खूब खाया जा रहा है। लेकिन यह फास्ट फूड की कल्चर सेहतमंद गुणवत्ता वाले खाने से वंचित कर रही है। साथ ही विभिन्न अध्ययनों व शोधों में खाने की पैकेजिंग में मौजूद रसायनों के भोजन के संपर्क में आने के चलते होने वाली रासायनिक प्रक्रिया के खतरे भी सामने आने लगे हैं। यही कारण है कि घर की रसोई में पका अन्न प्रत्येक प्रकार से सर्वोत्तम माना गया। प्रमुख कारण रहा स्वच्छता व पौष्टिकता आदि की कसौटी पर इसका ख़रा उतरना।
दरअसल, निरंतर बढ़ती आवश्यकताओं ने हमारे जीने का ढंग ही बदलकर रख दिया है। ज़िंदगी की आपाधापी में अधिकतर लोगों के पास न तो भोजन बनाने का समय है, न ही रुचि व न ही खाने का सलीका। पाश्चात्य सभ्यता की पैक्ड फूड कल्चर काफी हद तक भारतीय समाज पर प्रभावी हो चुकी है, बिना यह जाने कि जिन धातुओं में विविध खाद्य सामग्री पैक होकर हम तक पहुंच रही है, स्वास्थ्य के लिहाज़ से वे शरीर के लिए कितनी घातक सिद्ध हो सकती हैं।
जर्नल ऑफ एक्सपोज़र साइंस एंड एनवायरमेंटल एपिडेमियोलॉजी में ज्यूरिख के फूड पैकेजिंग फोरम फाउंडेशन के अध्ययन के मुताबिक, फूड पैकेजिंग में उपयोग होने वाली सामग्री के ज़रिये मानव शरीर में 3,600 से अधिक रसायन प्रविष्ट होने की संभावना है। इनमें से कुछ केमिकल स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक हैं।
शोधकर्ताओं द्वारा लगभग 14,000 रसायनों की सूची बनाई गई, जोकि प्लास्टिक, धातु, काग़ज़ या कांच जैसी पैकेजिंग सामग्री के माध्यम से न केवल खाद्य पदार्थों में शामिल हो सकते हैं, बल्कि भोजन तैयार करने के दौरान रसोईघर के बर्तनों आदि के संपर्क में आने पर भी अपना प्रभाव छोड़ सकते हैं। इनकी उपस्थिति का पता लगाने हेतु शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन के दौरान मानव में रसायन ट्रैक करने वाले मौजूदा बायोमॉनिटरिंग डाटाबेस की जांच भी शामिल की। कुछेक केमिकल मिलने की संभावना से की गई इस जांच में कुल 3,601 रसायन मिले। भोजन के संपर्क में आने वाले सभी ज्ञात केमिकल्स का यह लगभग एक-चौथाई बनता है। शोधकर्ता बिरगिट ग्यूके के अनुसार, इनमें से लगभग 100 रसायन मानव शरीर के लिए बेहद घातक हैं, जबकि अन्य अनेक रसायनों के दुष्प्रभावों के बारे विस्तार से जानना अभी शेष है। शोधकर्ताओं द्वारा दी गई चेतावनी के तहत ये केमिकल परस्पर क्रिया कर सकते हैं। ऐसे में खाद्य पदार्थों और पैकेजिंग के बीच मौजूद संपर्क को कम करने के साथ ही भोजन को पैकेजिंग सामग्री में गर्म न करने की सलाह दी गई है।
अध्ययन के मुताबिक़, इनमें से ‘पर-एंड पॉली-फलोरो अल्काइल सब्स्टेंसेज’ (पीएफएएस) तथा ‘बिस्फेनॉल ए’ केमिकल मानव शरीर में पहले ही मौजूद पाए जा चुके हैं, जिन पर प्रतिबंध लगाए जाने की तैयारी चल रही है। प्लास्टिक में उपयोग होने वाला केमिकल ‘बिस्फेनॉल ए’ हार्मोन प्रभावित करने के लिए जाना जाता है। अतः पहले ही कई देशों में शिशुओं के लिए उपयोग होने वाली बोतलों के निर्माण में इसके प्रयोग पर पाबंदी लगाई जा चुकी है।
ये सभी रसायन हमारे भोजन तक किस प्रकार पहुंच बनाते हैं, अध्ययन में अभी यह बात स्पष्ट नहीं हो पाई; न ही यह साबित हो पाया कि ये सभी केमिकल्स सिर्फ फूड पैकेजिंग के माध्यम से ही भोजन में समाविष्ट हुए। हो सकता है अन्य संभावित स्रोतों की भी इस संदर्भ में कोई भूमिका हो!
हालांकि यह तो तय ही है कि शुद्धता व स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से ‘पैक्ड फूड’ किसी भी आधार पर घर पर तैयार भोजन की बराबरी नहीं कर सकता है। जीवन को सुविधाजनक बनाने की चाह में कहीं भी, जैसे-कैसे कुछ भी खा लेने की आदत बिल्कुल तार्किक नहीं। किसी भी कार्य को सुनियोजित ढंग से करने के लिए शरीर का सेहतमंद होना बेहद आवश्यक है किंतु ऐसा तभी संभव हो पाएगा, जब हमारा आहार शुद्ध, पौष्टिक एवं रसायन मुक्त हो। भोजन खाने का निर्धारित समय होने के साथ ग्रहण करने की मुद्रा व माहौल भी सही हो।
मानव शरीर प्रकृति प्रदत्त वरदान है, जिसे स्वस्थ बनाए रखने का पूरा दायित्व हमारा ही है। जरूरत समय को लेकर बेहतर व्यवस्था एवं भोजन पकाने के प्रति रुचि उत्पन्न करने भर की है। घर की रसोई से प्रेमपूर्वक परोसा गया भोजन जो आत्मसंतुष्टि देता है, उसका अहसास आकर्षक पैकेजिंग में लिपटे रेडी टू ईट व्यंजनों में भला कहां?
‘जैसा खाए अन्न, वैसा होय मन’, विद्वान लोग हमेशा से यही कहते आए हैं। निरंतर बढ़त बनाते रोगों के साथ समाज में नैतिक स्तर पर वैचारिक प्रवाह को प्रदूषित बनाने में आंशिक ही सही, कुछ न कुछ हिस्सा तो इन पैकिंग मेटीरियल रसायनों का भी तो होगा। निरोगी तन-मन यकीनी बनाने के परिप्रेक्ष्य में मार्डन फूड कल्चर के इस हानिकारक पक्ष पर विचार करने की जरूरत है।