अंतरिक्ष के द्वार पर पर्यटकों की दस्तक
इंसानों का अंतरिक्ष की सैर का सपना आखिर पूरा हुआ। पहले ही मनुष्य अंतरिक्ष में दस्तक दे चुका है, लेकिन अब पहली बार निजी स्पेसशिप से बतौर पर्यटक उड़ान भरी। इनमें भारत के गोपी थोटाकुरा भी शामिल हैं जो देश वासियों के लिए गर्व की बात है। यह संभव हुआ अमेरिकी व्यवसायी जेफ बेजोस की कंपनी ब्लू ओरिजन के मिशन के जरिये। हालांकि अंतरिक्ष पर्यटन के लिए टिकट खरीदना अभी बड़े धनपतियों के ही बूते की बात है।
अभिषेक कुमार सिंह
निया में पर्यटन के ठिकानों की कोई कमी नहीं है। हमेशा से घूमंतु तबीयत के रहे इंसान के लिए सैर की नई-नई जगहों की तलाश करना एक पसंदीदा शगल रहा है। धरती के ओर-छोर को नाप चुके और एवरेस्ट से लेकर उत्तराखंड के चारों धामों में भारी भीड़ के रूप में जमा हो चुके इंसान के लिए अंतरिक्ष की सैर करना सबसे हालिया उपलब्धि है जिसका सपना वह सदियों से देखता रहा है। हालांकि पर्यटक के रूप में पहले ही मनुष्य अंतरिक्ष में दस्तक दे चुका है, लेकिन एक भारतीय पर्यटक गोपी थोटाकुरा ने इस दहलीज पर पहुंचकर हमें भी गौरवान्वित होने का एक अवसर प्रदान किया है। थोटाकुरा की उपलब्धि और अरबपति जेफ बेजोस की कंपनी ब्लू ओरिजन का मिशन न्यू शेपर्ड फिलहाल चर्चाओं के केंद्र में है। इससे एक ओर अंतरिक्ष पर्यटन एक सहज साकार होने वाली गतिविधि लगने लगा है, तो दूसरी ओर ये सवाल भी उठ रहे हैं कि क्या अंतरिक्ष यात्री को पर्यटक कहा जा सकता है- जैसा दावा ब्लू ओरिजन ने ताजा सफल मिशन के बाद किया है।
गोपी थोटाकुरा बने दूसरे भारतीय अंतरिक्ष यात्री
देखा जाये तो स्पेस कंपनी- ब्लू ओरिजन की सातवीं मानव उड़ान की सबसे उल्लेखनीय उपलब्धि यही है कि विंग कमांडर राकेश शर्मा के बाद दूसरे भारतीय ने अंतरिक्ष के आंगन में कदम रखा है। न्यू शेपर्ड-25 (एनएस-25) मिशन से 19 मई 2024 को पांच अन्य पर्यटकों के साथ अंतरिक्ष में पहुंचे भारत के विजयवाड़ा (आंध्र प्रदेश) में जन्मे गोपी थोटाकुरा आधिकारिक तौर पर दूसरे भारतीय अंतरिक्ष यात्री कहे जा रहे हैं। हालांकि दोनों में अंतर यह है कि गोपी थोटाकुरा एक निजी कंपनी के सहयोग से पर्यटक के रूप में अंतरिक्ष में पहुंचे, जबकि विंग कमांडर राकेश शर्मा सोवियत इंटर कॉसमॉस कार्यक्रम के तहत सरकारी मिशन पर सोयूज टी-11 से यही करिश्मा काफी पहले 3 अप्रैल, 1984 को कर चुके थे। इन दोनों के अलावा भारतीय मूल के अन्य अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स, राजा चारी और न्यू शेपर्ड के पहले मिशन से अंतरिक्ष जाने वाली सिरीशा बांदला अमेरिकी पासपोर्ट धारक थे जो पेशेवर अंतरिक्ष यात्री के रूप में स्पेस में गए थे।
अंतरिक्ष छूने की शुरुआती पहल
लेकिन जहां तक अंतरिक्ष को छूने और चंद्रमा पर पदार्पण करने की बात है, तो सपने पिछली सदी के 1960 के दशक में ही पूरे हो गए थे। रूसी अंतरिक्ष विज्ञानी यूरी गागरिन पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने 1961 में धरती से ऊपर अंतरिक्ष कही जाने वाली सरहद को छुआ था। अमेरिकी अंतरिक्ष यात्रियों ने अपोलो-11 यान के जरिये चंद्रमा पर 1969 में पदार्पण कर इतिहास रच दिया था। इस बीच अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन- आईएसएस के निर्माण, अमेरिकी शटल यानों (कोलंबिया, चैलेंजर आदि) की यात्राएं और मंगल पर मानवरहित यानों के पहुंचने जैसी कई नई विस्मयकारी घटनाएं हो चुकी हैं, लेकिन इन सभी घटनाओं में आम जनता की भूमिका दिलचस्पी जताने भर तक सीमित रही है। उसका इन सारी घटनाओं से सीधा जुड़ाव नहीं रहा है। यानी कोई आम इंसान या कहें कि पर्यटक ऐसे अभियानों में सीधे तौर पर शामिल नहीं रहा जो उसे अंतरिक्ष से जोड़ते या वहां रोमांचक पर्यटन के उसके शौक की पूर्ति करते हैं। लेकिन इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक की शुरुआत के साथ यह सपना भी पूरा हो गया।
अंतरिक्ष पर्यटन को साकार करके की कोशिशें
ग्यारह जुलाई, 2021 को एयरलाइंस कारोबार चलाने वाले दुनिया के एक प्रमुख व्यवसायी रिचर्ड ब्रैनसन ने अंतरिक्ष पर्यटन साकार करने में जुटी अपनी कंपनी वर्जिन गैलेक्टिक के यान वीएमएम ईव से उड़ान भरी थी। यह यान उन्हें कंपनी के पांच कर्मचारियों जिनमें से एक भारतीय मूल की महिला सिरीशा बांदला भी शामिल थीं, के साथ न्यू मैक्सिको, अमेरिका के ऊपर आकाश में करीब 80 किलोमीटर ऊंचाई तक ले गया था। हालांकि ब्रैनसन का यान जिस ऊंचाई तक गया था, उसे अंतरिक्ष कहने को लेकर एक विवाद रहा है। अस्सी किलोमीटर की ऊंचाई पर पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण खत्म हो जाता है, भारहीनता का अनुभव होता है और इस ऊंचाई पर सामान्य विमान उड़ान नहीं भर पाते हैं। यही वजह है कि रिचर्ड ब्रैनसन की तरह निजी अंतरिक्ष पर्यटन की अवधारणा को साकार करने के अभियान में जुटे एक अन्य मशहूर कारोबारी अमेजन के संस्थापक जेफ बेजोस ने उन्हें बधाई देने के साथ यह तंज भी कसा था कि असली अंतरिक्ष यात्रा पर वह स्वयं जाएंगे। असल में जेफ बेजोस की कंपनी ब्लू ओरिजन पृथ्वी की सतह के सौ किलोमीटर ऊपर उस केरमन लाइन को पार करने को अंतरिक्ष मानती है, जिसे अंतरिक्ष की शुरुआत के दायरे के रूप में ज्यादा मान्यता हासिल है।
अंतरिक्ष की सैर के शौकीन धनपति
बहरहाल, आज स्थिति यह है कि दुनिया में अरबपति अमीरों की ऐसी लंबी लिस्ट तैयार बताई जा रही है, जो आने वाले वक्त में अंतरिक्ष कही जाने वाली सरहद को छूकर लौटना चाहते हैं। यहां सवाल है कि क्या अब पहले किसी अमीर शख्स ने अंतरिक्ष की सैर नहीं की है। असल में यह उपलब्धि काफी पहले हासिल की जा चुकी है। अंतर सिर्फ यह है कि ऐसी सभी यात्राएं सरकारी अंतरिक्ष एजेंसियों के माध्यम की संपन्न हुई हैं। जैसे 23 साल पहले अमेरिकी धनकुबेर डेनिस टीटो को रूस ने अपने सोयूज रॉकेट से 30 अप्रैल, 2001 को इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन भेजा था। इस तरह डेनिस टीटो दुनिया के पहले ऐसे व्यक्ति बने थे जिन्होंने पैसे खर्च करके अंतरिक्ष की यात्रा की थी। उनके बाद कई अन्य लोगों ने अंतरिक्ष की सैर के अपने सपने को ढेर सारी रकम खर्च कर साकार किया था। इस सूची में दक्षिण अफ्रीका के मार्क शटलवर्थ (25 अप्रैल 2002), अमेरिका के ग्रेग ओल्सन (1 अक्तूबर, 2005), ईरान की महिला अनुशेह अंसारी (18 सितंबर, 2006) और सॉफ्टवेयर आर्किटेक्ट चार्ल्स सिमोन (7 अप्रैल, 2007) के नाम सामने आते हैं, जिन्होंने धरती का वायुमंडल पार कर अंतरिक्ष के नजारे लिए थे और वहां पहुंचकर अपनी सुंदर पृथ्वी को निहारा था।
निजी कंपनियों ने खोले नए आयाम
बेशक, अमीर लोगों ने पहले भी अंतरिक्षीय दुनिया का नजदीकी से अवलोकन किया है, लेकिन ये पहले के सारे अभियान सरकारी अंतरिक्ष एजेंसियों के सहारे हुए थे। यह भी उल्लेखनीय है कि सरकारी एजेंसियों की मदद से जो लोग अंतरिक्ष में गए, वे किसी न किसी रूप में विमानन क्षमता से लैस थे। अंतरिक्ष पर्यटन की असली शुरुआत तब मानी जा सकती है, जब निजी तौर पर ऐसे आम लोग पैसे खर्च करके जब चाहें निजी कंपनियों की मदद से अंतरिक्ष की सैर को जा सकें। इस मायने में ब्लू ओरिजन जैसी निजी कंपनियां अंतरिक्ष यात्रा के नए आयाम खोल रही हैं। अंतरिक्ष पर्यटन की कल्पना को निजी तौर पर साकार करने का काम मोटे तौर पर 1995 में शुरू हुआ था, जब कुछ उद्योगपतियों ने इस बारे में एक प्रतियोगिता आरंभ की थी। दस लाख डॉलर की इनामी राशि वाले ‘अंसारी एक्स प्राइज’ को जीतने के लिए दुनिया भर की 26 टीमों ने प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था। इन टीमों को दोबारा इस्तेमाल होने वाला एक ऐसा यान बनाना था जिसमें तीन टूरिस्टों को धरती से 110 किलोमीटर ऊपर स्पेस की सैर पर ले जाया जा सके। यह प्रतियोगिता ‘मोजावे एयरोस्पेस वेंचर्स’ ने जीती थी। इस टीम ने ‘स्पेसशिप वन’ और इसे अंतरिक्ष में पहुंचाने वाला रॉकेट ‘व्हाइट नाइट’ बनाया। प्रतियोगिता की सारी शर्तें पूरी करते हुए स्पेसशिप-वन को 4 अक्तूबर, 2004 को अंसारी एक्स प्राइज का विजेता घोषित किया गया। इसके बाद वर्ष 2015 में अमेरिकी स्पेस एजेंसी- नासा ने स्पेस शटलों के दौर के बाद अपने एक यान ‘ओरियान’ का प्रक्षेपण एलन मस्क की निजी स्पेस कंपनी ‘स्पेसएक्स’ की मदद से किया था। दिसंबर 2015 में ‘स्पेसएक्स’ ने अमेरिका के कैप कैनवेरल एयरफोर्स स्टेशन से फाल्कन-9 नाम के रॉकेट से 11 सैटेलाइट्स एक साथ लॉन्च किए थे। फाल्कन-9 ने न केवल सभी सैटेलाइट्स को पृथ्वी से 200 किलोमीटर ऊपर उनकी कक्षा (ऑर्बिट) में सही-सलामत छोड़ा, बल्कि धरती पर सुरक्षित वापसी भी की। उल्लेखनीय यह है कि फाल्कन-9 ने जमीन पर सीधी (वर्टिकल) लैंडिंग की है। यानी इसे लैंडिंग के लिए किसी रनवे की जरूरत नहीं। इसे किसी भी लैंडिंग प्लैटफॉर्म पर उतारा जा सकेगा। इससे यह भी साबित हुआ कि फाल्कन-9 का बार-बार इस्तेमाल हो सकता है। रॉकेट का कई बार इस्तेमाल होना इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे किसी यान को अंतरिक्ष में छोड़ने वाले नए रॉकेट के निर्माण पर होने वाला लाखों डॉलर का खर्च बच जाता है और इस तरह अंतरिक्ष यात्रा की लागत कम हो जाती है।
हालांकि अंतरिक्ष की सैर इतनी सस्ती नहीं हुई है कि कोई शख्स किसी विमान यात्रा जितने खर्च में अंतरिक्ष का भ्रमण कर ले। अभी भी इस यात्रा के लिए अरबों रुपये प्रति यात्री का खर्च है। ऐसे में एक प्रश्न यह है कि आखिर निजी कंपनियां इस काम में इतनी रुचि क्यों ले रही हैं। इसका जवाब है अंतरिक्ष पर्यटन से होने वाली कमाई। स्विट्जरलैंड के एक बैंक यूबीएस का अनुमान है कि 2030 तक अंतरिक्ष पर्यटन का बाजार तीन अरब डॉलर यानी दो खरब से भी ज्यादा रुपयों का हो जाएगा।