असुविधा का टोल टैक्स
इस बात में कोई दो राय नहीं हो सकती कि गुणवत्ता की सेवा दिए बिना कोई टैक्स वसूलना उपभोक्ता के साथ अन्याय है। यह बात हर सरकारी व निजी महकमे पर लागू होती है। लेकिन यथार्थ में ऐसा होता नहीं है और बेहतर सेवा के बिना टैक्स वसूलने के खिलाफ लोग लोक अदालतों से लेकर विभिन्न अदालतों के दरवाजे खटखटाते रहते हैं। बहरहाल, यह बात सर्वविदित है, लेकिन केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के हालिया बयान ने इस बहस को तेज किया है। अपनी बात को बेबाकी से कहने वाले नितिन गडकरी ने अधिकारियों को दो टूक शब्दों में कहा कि यदि सड़कें अच्छी हालत में न हों और लोगों को लगातार परेशानियों का सामना करना पड़ रहा हो, तो राजमार्ग पर एजेंसियों द्वारा टोल टैक्स वसूलने का कोई औचित्य नहीं है। उन्होंने कहा कि टोल टैक्स वसूलने से पहले हमें अच्छी सेवाएं देनी चाहिए। लेकिन हम अपने आर्थिक हितों की रक्षा के लिये टोल टैक्स वसूलने की जल्दी में रहते हैं। केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री ने स्वीकारा कि सड़कें अच्छी नहीं होने पर तमाम शिकायतें हमें मिलती हैं। दूसरी ओर सोशल मीडिया पर लोग अपना गुस्सा जाहिर करते हैं। सही मायनों में गुणवत्ता की सड़क प्रदान करने पर ही हमें टोल वसूलने का अधिकार मिलता है। जाहिर सी बात है कि गड्ढों व कीचड़ वाली सड़कों पर टैक्स वसूलने पर पब्लिक की नाराजगी स्वाभाविक रूप से सामने आएगी। निस्संदेह, परिवहन मंत्री की स्वीकारोक्ति एक अच्छा कदम है और हर विभाग के मंत्री को अपने अधीनस्थ विभागों की कारगुजारियों पर नजर रखनी चाहिए। मंत्री को विभाग की खामियों पर पर्दा डालने के बजाय सेवा में सुधार की पहल करनी चाहिए। अब चाहे मामला राष्ट्रीय राजमार्गों पर कार्यरत एजेंसियों का हो या फिर बिजली-पानी जैसे मूलभूत जरूरतों वाले विभागों का, अधिकारियों को उपभोक्ताओं के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। साथ ही जरूरी है कि शिकायत दर्ज करने और शिकायतों के तुरंत निवारण हेतु एक स्वतंत्र तंत्र भी विकसित किया जाना चाहिए।
निस्संदेह, इसमें दो राय नहीं कि राष्ट्रीय राजमार्गों व एक्सप्रेस-वे आदि के बनने से यात्रियों का आवागमन सुविधाजनक हुआ है। लोगों के समय व वाहनों में पेट्रोल-डीजल में बचत हुई है। लेकिन कई स्थानों पर सड़कों की गुणवत्ता में कमी या सड़कों के निर्माण में तकनीकी खामियों का उजागर होना, उपभोक्ताओं को परेशान करता है। पहले राष्ट्रीय राजमार्गों पर टोल टैक्स चुकाने के लिये घंटों लाइन में लगना पड़ता था। कालांतर फास्टैग व्यवस्था से टोल कटने लगा। आज 98 फीसदी वाहनों में स्मार्ट टैग के माध्यम से निर्बाध यात्रा की जा रही है। आने वाले कुछ वर्षों में राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम आधारित टोल संग्रह प्रणाली को अंजाम देने की तैयारी में है। जिसके बाद राष्ट्रीय राजमार्गों पर टोल गेटों की जरूरत नहीं रह जाएगी। फिर टोल प्लाजा पर गाड़ी धीमी करने व रोकने की भी जरूरत नहीं रहेगी। इसे देश में चरणबद्ध तरीके से शुरू किया जाएगा। पहले व्यावसायिक वाहनों से इसका प्रयोग शुरू होगा। जिसके लिये वाणिज्यिक वाहनों के लिये वाहन ट्रैकर सिस्टम यानी वीटीएस स्थापित करना जरूरी होगा। कालांतर अगले चरण में निजी वाहन भी इस टोल प्रणाली के दायरे में लाए जाएंगे। सरकार को उम्मीद है कि इस प्रणाली के लागू होने से टैक्स चोरी रुकेगी और जीएनएसएस आधारित टोल संग्रह प्रणाली से सरकार के टोल राजस्व में दस हजार करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। दरअसल, यह नया सिस्टम न केवल सही ट्रैकिंग कर पाएगा बल्कि यह राजमार्ग पर उपयोग की गई दूरी के आधार पर सटीक टोल गणना भी करेगा। बहुत संभव है आने वाले वर्षों में कार निर्माता कंपनियां अपने वाहनों पर ट्रैकिंग डिवाइस लगाएं। प्रारंभ में इस सिस्टम को प्रमुख हाईवे व एक्सप्रेस-वे पर लागू किया जाएगा। जिसमें तय की गई दूरी के आधार पर ओबीयू से लिंक किए गए बैंक खाते से टोल टैक्स की राशि स्वत: कट जाएगी। निश्चित रूप से इस नये सिस्टम से भविष्य में टोल प्लाजा की आवश्यकता न होगी, लोगों का समय भी बचेगा। लेकिन सरकार ध्यान रखे कि सड़कों की गुणवत्ता को बनाये रखना पहली प्राथमिकता बनी रहे।