समय पर आंखों की जांच रखेगी भरपूर रोशनी
देश में ग्लूकोमा यानी काला मोतिया से लाखों लोग ग्रस्त हैं। जो उन्हें धीरे-धीरे अंधत्व की ओर ले जा सकता है। पीजीआईएमइआर के एडवांस आई सेंटर के प्रमुख प्रो. एसएस पांडव ने बताया कि ज्यादातर लोगों को इस बीमारी का लास्ट स्टेज पर ही पता चलता है। ऐसे में हर साल आंखों की जांच करवाना बेहद जरूरी है।
विवेक शर्मा
ग्लूकोमा यानी काला मोतिया ऐसी बीमारी है जो एक व्यक्ति के लिए रोशनी को हमेशा के लिए छीन लेती है। इसके बाद उसे बाकी जिंदगी अंधेरे में गुजारनी पड़ती है। किसी के पास चाहे कितनी भी दौलत हो यह रोशनी वापस नहीं लायी जा सकती। खास बात यह कि ग्लूकोमा ‘साइलेंट किलर’ है यानी कब आपकी आंखों की रोशनी छीन ले पता ही न चले।
हर आठवां व्यक्ति ग्लूकोमा प्रभावित
देश में हर आठवां व्यक्ति ग्लूकोमा से पीड़ित है। बता दें कि 40 की उम्र के बाद के 11.2 मिलियन भारतीय इस बीमारी से ग्रस्त हैं जिनमें 20 फीसदी को ही अपनी इस बीमारी का पता है और बाकी 80 फीसदी प्रभावित नहीं जानते कि उन्हें यह रोग है। वहीं इससे 1.1 मिलियन लोग अंधे हैं। इनमें बच्चे भी शामिल हैं। ग्लूकोमा के मरीजों के परिवार के सदस्यों की जांच भी अनिवार्य है, क्योंकि 10-15 प्रतिशत मामलों में यह मरीजों के भाई-बहनों और बच्चों को प्रभावित कर सकता है। काला मोतिया को अक्सर ‘दृष्टि का मौन चोर’ कहा जाता है, क्योंकि इसके अधिकांश प्रकारों में आम तौर पर कोई दर्द नहीं होता है वहीं ध्यान देने योग्य दृष्टि-हानि होने तक कोई लक्षण उत्पन्न नहीं होता है।
समय रहते हो जाएं सचेत
चंडीगढ़ स्थित पीजीआईएमइआर के एडवांस आई सेंटर के प्रमुख प्रो. एसएस पांडव ने बताया कि चिंता की बात यह है कि इस बीमारी से ग्रस्त 90 प्रतिशत लोगों को समय रहते इसका पता ही नहीं चलता। इसका मुख्य कारण लक्षण सामने न आना है। उन्होंने बताया कि इस मर्ज में लक्षण काफी देर के बाद ही सामने आते हैं। ऐसी स्थिति में इलाज से भी कोई लाभ नहीं होता।
ऐसे बचें काले मोतिया से
40 की आयु के करीब इसकी संभावना दो प्रतिशत होती है। इस आयु में ज्यादातर को चश्मा लगता है। ग्लूकोमा का टेस्ट इस उम्र में करवा ही लेना चाहिये। चश्मा न भी लगा हो तो भी 40 वर्ष की आयु में ग्लूकोमा टेस्ट अवश्य कराएं। किसी आंखों के स्पेशलिस्ट डॉक्टर के पास कैटरेक्ट या किसी दूसरे इलाज को जाएं तो ग्लूकोमा का टेस्ट भी जरूर करवा लें। वहीं परिवार में किसी को यह समस्या हो चुकी है तो खास तौर पर जांच को लेकर सचेत रहें।
ये हैं लक्षण
प्रो. एसएस पांडव के मुताबिक, ग्लूकोमा रोग के लक्षणों में सिर दर्द, धुंधलापन और रोशनी के चारों तरफ अलग-अलग रंगों का दिखाई देना शामिल है। वहीं, जब हमारे देखने का दायरा धीरे-धीरे कम होने लगता है तो यह समझ लेना चाहिए कि इस मर्ज की चपेट में आ चुके हैं। क्योंकि यह सीधे तौर पर हमारे देखने के दायरे को सिकोड़ता जाता है और एक समय पर ऐसी स्थिति आ जाती है, जब वह दायरा बिल्कुल ही समाप्त हो जाता है और मरीज पूर्णतया दृष्टिविहीन यानी अंधा हो जाता है। प्रो. एसएस पांडव ने बताया कि एडवांस्ड आई सेंटर ने अप्रैल-2023 से फरवरी 2024 के बीच 4352 नए पंजीकृत और 25452 फॉलोअप मरीजों का इलाज किया। यह मर्ज 40 साल के बाद होने का खतरा बढ़ जाता है, इसलिए इस दौरान नियमित जांच जरूरी है।