एकजुटता का वक्त
बारह मई के दैनिक ट्रिब्यून में राजकुमार सिंह के लेख ‘राजनीतिक वायरस की वैक्सीन भी जरूरी’ में लेखक की राय है कि यह वक्त का तकाज़ा है कि सभी राजनीतिक दल एकजुटता दिखाकर इस ख़तरे से निपटें। कोरोना संकट पर जमकर राजनीति हो रही है और आंकड़े भ्रम पैदा कर रहे हैं। सीमित संसाधनों वाले चिकित्सा-तंत्र में इस महामारी से लड़ने की क्षमता चूकती नज़र आ रही है। राजनीतिक दल एक-दूसरे को घेरने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं। माना कि विपक्ष का काम सरकार के कामकाज पर निगरानी रखना है, परन्तु इस आड़े समय में यह उचित नहीं है। हरियाणा सरकार द्वारा बीपीएल मरीजों के लिए जो सुविधाजनक फैसले लिए हैं, वे अनुकरणीय हैं। कोरोना मानवता पर काल बनकर टूट रहा है और राजनीतिक दल दोषारोपण से बाज नहीं आ रहे हैं। कांग्रेस खिसियाकर बैठ गयी है। इस राजनीतिक वायरस की वैक्सीन भी बड़ी ज़रूरी है। इस समय ज़मीनी हक़ीक़त से रूबरू होकर मरीज़ों पर ध्यान दिया जाए तो बेहतर होगा।
मीरा गौतम, जीरकपुर
प्राकृतिक जीवन
प्रकृति ने हमें विभिन्न प्रकार की ऋतुएं दी हैं, इसका अर्थ है कि हमें स्वस्थ रहने के लिये ऐसे वातावरण में खुद को समायोजित करना चाहिए। गर्मियों में हम अगर एयर कंडीशनर जैसे साधनों का प्रयोग करते हैं तो इसका अर्थ है कि हम प्रकृति के विपरीत जीवन बिताते हैं। युवा वर्ग में कोरोना होने की सम्भावना उन लोगों में अधिक बनी रहती है जो प्रकृति की संघर्षमयी जिन्दगी के पहलू को न अपनाकर श्रमहीन व आरामतलबी की जिंदगी व्यतीत करते हैं।
अनूप कुमार गक्खड़, हरिद्वार
नाकाम नेतृत्व
14 मई के दैनिक ट्रिब्यून में क्षमा शर्मा का ‘संकट की कसौटी पर नाकामी का नेतृत्व’ लेख संकटकाल में जनता और नेताओं की सोच का तुलनात्मक विश्लेषण रहा। जिंदगियां स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में दम तोड़ रही हैं। दूसरी ओर जन-जन की हमदर्द बनी रहनुमाई की पोल खुलती नजर आई। राजनीति की आड़ में मुनाफा बटोरने का धंधा फल-फूल रहा है। स्वार्थ से ऊपर उठकर ही जनहित की चिंता संभव हो सकती है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल