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यूं बना आजादी के उत्सव का खास दिन

11:38 AM Aug 11, 2022 IST
यूं बना आजादी के उत्सव का खास दिन
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विवेक शुक्ला

नई दिल्ली के यार्क रोड स्थित 17 नंबर के बंगले का देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू तथा भारत के स्वाधीनता दिवस से गहरा संबंध रहा। हालांकि पंडित नेहरू और तीन मूर्ति भवन को जोड़कर देखा जाता है, लेकिन वे तीन मूर्ति भवन में ही रहे यह तथ्य सही नहीं है। देश में 2 सितंबर, 1946 को अंतरिम सरकार का गठन हुआ और उसके प्रधानमंत्री बने पंडित नेहरू। अब उन्हें दिल्ली में रहना था, तो उन्हें 17 यार्क रोड (अब मोती लाल नेहरू मार्ग) का बंगला आवंटित हुआ।

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नेहरू जी इसी यार्क रोड के अपने घर से 14-15 अगस्त की रात को काउंसिल हाउस (अब संसद भवन) में हुए गरिमामय कार्यक्रम में भाग लेने के लिए गए थे। यहां ही हुआ था सत्ता का हस्तांतरण। नेहरू जी देर शाम अपने 17 यार्क रोड से काउंसिल हाउस गये व वहां तब उन्होंने अपना कालजयी वक्तव्य ‘नियति से साक्षात्कार’ दिया था। जब भारत गोरों की बेड़ियों से मुक्त होने वाला था तब उन्होंने अपने ओजस्वी भाषण में कहा था- भारत और उसके लोगों की सेवा करने के लिए तथा सबसे बढ़कर मानवता की सेवा करने के लिए समर्पित होने की प्रतिज्ञा कर रहे हैं। …आज हम दुर्भाग्य के एक युग को समाप्त कर रहे हैं और भारत पुनः स्वयं को खोज पा रहा है। आज हम जिस उपलब्धि का उत्सव मना रहे हैं, वह केवल एक क़दम है, नए अवसरों के खुलने का। इससे भी बड़ी विजय और उपलब्धियां हमारी प्रतीक्षा कर रही हैं। आज एक बार फिर वर्षों के संघर्ष के बाद, भारत जाग्रत और स्वतंत्र है…।’

इसी बीच, जब सारी दिल्ली पर देश की निगाहें थी क्योंकि यहां ही सत्ता का हस्तांतरण और दूसरे स्वाधीनता से जुड़े अन्य जरूरी आयोजन हो रहे थे तब हमारे स्वाधीनता आंदोलन के नेता महात्मा गांधी दिल्ली से दूर कोलकाता में थे। वे 13 अगस्त, 1947 को यहां आए थे व 25 दिनों तक रहे। आजादी के बाद जब कलकत्ता और देश के विभिन्न स्थानों पर सांप्रदायिक दंगे भड़के, उस वक्त गांधीजी ने एक सितंबर को आमरण अनशन शुरू किया था। उनके अनशन करने के बाद हिंदू-मुस्लिम समुदायों के दिग्गज नेताओं ने यहां आकर गांधीजी के सामने माफी मांगी थी। 4 सितंबर को दंगे रुकने के बाद गांधीजी ने अपना अनशन खत्म किया था और वे 7 सितंबर को यहां से चले गए थे। वे दिल्ली में 9 सितंबर, 1947 को पहुंचे थे। दिल्ली आकर वे सांप्रदायिक दंगों को रुकवाने में लग गए थे।

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यह सवाल बार-बार पूछा जाता है कि ब्रिटिश सरकार ने भारत को 15 अगस्त, 1947 को ही क्यों आजाद किया? क्या इस तारीख को चुनने के पीछे कोई खास वजह थी? लार्ड लुइस माउंटबेटन 3 जून, 1947 को भारतीय नेताओं से देश के विभाजन की मंजूरी हासिल कर चुके थे। उसके बाद एक पत्रकार सम्मेलन राजधानी में हो रहा था। वहां पर एक सवाल लार्ड माउंटबेटन से पूछा गया कि ‘क्या सत्ता के हस्तांतरण की तारीख तय हुई?’ इस पर लार्ड माउंटबेटन ने कहा- ‘भारतीय हाथों में सत्ता अंतिम रूप से 15 अगस्त, 1947 को सौंपी जाएगी।’ सारे देश को इस घोषणा की जानकारी अगले दिन अखबारों से मिली। इतिहासकार राज खन्ना ने अपनी किताब ‘आजादी से पहले,आजादी के बाद’ में लिखा हैndash; ‘मौलाना आजाद ने माउंटबेटन से अपील की कि वे आजादी की तारीख को एक साल के लिए बढ़ा दें। जल्दबाजी में बंटवारे से पैदा हो रही दिक्कतों का मौलाना आजाद ने हवाला दिया।’ लेकिन लार्ड माउंटबेटन ने किसी की नहीं सुनी। भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया। राज खन्ना लिखते हैं- ‘माउंटबेटन के प्रेस सचिव कैम्पवेल जॉनसन ने एक बार खुलासा किया था कि 15 अगस्त, 1947 का दिन इसलिए चुना गया था, क्योंकि 15 अगस्त, 1945 को जापान की सेनाओं ने मित्र देशों की सेना के सामने आत्म समर्पण किया था। इसी दिन दूसरा विश्व युद्ध खत्म हुआ था।’

लाल किले पर पहला स्वाधीनता दिवस समारोह 15 अगस्त, 1947 को नहीं हुआ था। यह आयोजन 16 अगस्त, 1947 को हुआ। उस आयोजन में ब्रिटिश सरकार को शत्रु नहीं माना जा रहा था। झंडारोहण के बाद नेहरू जी ने देश को संबोधित किया। उन्होंने अपने को देश का प्रथम सेवक बताया। प्रख्यात चिंतक प्रो. हिलाल अहमद माउंटबेटन पेपर्स के हवाले से बताते हैं कि माउंटबेटन पाकिस्तान के शहर कराची में स्वाधीनता समारोह में भाग लेने के बाद 14 अगस्त की शाम दिल्ली पहुंचे। उन्हें बताया गया कि भारतीय नेताओं की इच्छा है कि वे भारत के गवर्नर जनरल का पद स्वीकार कर लें। यह प्रस्ताव 14 अगस्त, 1947 की रात को संविधान सभा के सत्र में पारित हुआ था। इसके तुरंत बाद नेहरू जी ने अपना भाषण दिया और फिर भारत का तिरंगा पहली बार फहराया। इस अवसर पर डॉ. राजेन्द्र प्रसाद भी बोले। उन्होंने कहा, ‘ भारत में ब्रिटिश सरकार के राज का पटाक्षेप हो रहा है। हमें इस बात की प्रसन्नता है कि हमारे बीच में भारत में ब्रिटेन के अंतिम वायसराय मौजूद हैं। अब हमारे संबंध समता और आपसी समझदारी के आधार पर बनेंगे।’

दरअसल पहले कार्यक्रम यह बना था कि नेहरू जी तिरंगे का ध्वजारोहण करेंगे। उससे पहले यूनियन जैक को नीचे किया जाएगा। इसके बाद एक परेड निकलेगी। पर यह हो न सका। लॉर्ड माउंटबेटन ने माउंटबेटन पेपर्स में लिखा कि उन्होंने प्रिंसेस पार्क के कार्यक्रम के संबंध में नेहरू जी से बात की। तब तय हुआ कि इसमें यूनियन जैक को नीचे करने की बजाय सिर्फ तिरंगे को फहराया जाए। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के निर्देश पर शहनाई वादन के लिए बनारस से उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को एक दिन पहले भारतीय एयरफोर्स के विमान से दिल्ली लाया गया। उस रोज दिल्ली में मौसम खुशगवार था, जब उस्ताद ने शहनाई की तान छेड़ी। उस शहनाई वादन के बीच तिरंगे को पहली बार लाल किले पर फहराया जाना बेशक यादगार पल थे देश के लिए।

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