भविष्य में झांकने वालों की हुई मिट्टी पलीत
डॉ. हेमंत कुमार पारीक
ज्योतिष का बाज़ार इस वक्त डाउन चल रहा है। बाज़ार इतने सेंसिटिव हो गए हैं कि पता ही नहीं चलता कि राई के भाव कब बदल गए? राई को भाव रातें गयो, कहने वालों को भी भरोसा न होता कि जो भाव रात में था वही सुबह भी है। अब तो रात पर भी भरोसा न रहा। रात के अंधेरे में भी बहुत-सी चीजें उलट-पलट हो जाती हैं। लोग सुबह होने का इंतजार करते हैं पर अब सुबह और शाम एक भाव हो गए हैं। चंद घंटों का इंतजार भर। हो सकता है कि राई का भाव दोपहर में ही बदल जाए अथवा एक घंटे में ही इधर-उधर हो जाए। एक मिनट में जीत हार में बदल जाए। और फिर जीतने के लिए लम्बा इंतजार करना पड़े। पता नहीं कब भरोसे की भैंस पड़ा जन दे? वैसे भी भैंस पर कोई भरोसा नहीं करता। कहो चौराहे पर ही पसर जाए।
जो हम सोचते हैं वह कभी नहीं होता। कोई तीसरा नजारा ही सामने आता है। कभी फलौदी के नाम पर बड़ा भरोसा था। फलौदी बाजार और चैनल वालों के बीच होड़ थी। सुबह से शाम तक उनका पोल-वोल्ट देखते रहते थे। अब निठल्ले क्या करें? पड़ोस में गपियाने वाली संस्कृति तो न रही। भूल गए कि पड़ोस भी कोई चीज है। मोबाइल जीम गया सब। अब अगर कोई गेट बजाय तो अंदर से आवाज आती है, मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है। जेब में रखा मोबाइल तुरंत करवट बदलने लगता है। सो फलौदी और चैनल वालों का कम्पीटिशन जारी रहा। दो सांडों की लड़ाई दम साधे देख रहे थे। चुनाव रिजल्ट आते ही रोज रोज का टंटा खत्म हुआ। उस दिन चैनल और फलौदी वाले ज्योतिषी नजर न आए। अचानक सन्नाटा छा गया। हाथ में पत्रा लिए भविष्यफल निकालने वाले ज्योतिषी महाराज दिखाई न दिए। दर्शन के लिए हम तो लालायित थे। मगर कुछ शर्म बाकी है अब भी। वरना तो कभी शर्म के मारे पानी-पानी हो जाता था इंसान। पानी बचा ही नहीं तो पानी के सवाल कैसे? भ्रष्टाचार और बलात्कार के मामले रोजमर्रा की आम बात जैसे हो गए हैं। फलौदी बाजार और चैनल के चुनावी सर्वे ढेर हो गए। सभी आश्चर्यचकित थे। अभी तक सदमे में हैं। क्यों और कैसे में पार्टियां रुदाली हुई जा रही हैं। हार के ठीकरे इस सिर से उस सिर पर ट्रांसफर हो रहे हैं। मगर लोगों को मालूम नहीं क्या पूरा जमाना डिजिटल हुआ जा रहा है। हथेली पर दही जमने लगा है। पक्का सबूत फिर हाथ लगा है। अमेरिका जैसे देश में भी न अब इन फलौदी बाजार वालों की चलती न चैनल वाले ज्योतिष की। अब सबकी मिट्टी पलीत हुई।