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छोड़े नहीं छूटता ये सम्मोहन का पद

06:24 AM Oct 27, 2023 IST

मनीष कुमार चौधरी

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छूटती नहीं है मुंह से यह काफिर लगी हुई। राजनीति में कुर्सी कुछ वैसी ही होती है। कमबख्त एक बार मिली कि फिर छूटती नहीं। इन दिनों राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का हाल भी कुछ ऐसा ही है। सप्ताह बीतते-बीतते नियमित रूप से उनका एक बयान आ जाता है कि मैं तो मुख्यमंत्री पद छोड़ना चाहता हूं, पर यह पद मुझे नहीं छोड़ना चाहता। छोड़ेगा भी नहीं। जब भी दिल्ली का चक्कर लगाकर आते हैं या आलाकमान से कहीं मिलते हैं तो यह तय समझिए कि इस टाइप का बयान आया ही समझो। इधर वे यह बात बोलते हैं, उधर सचिन पायलट का दिल धक-धक करने लगता है। पर सचिन निकम्मा, नाकारा, अविश्वसनीय जैसे शब्दों को सुन-सुन कर इतना पक गए हैं कि जैसे-तैसे अपने दिल को समझा ही लेते हैं। अन्यथा वे यह भी कह सकते थे कि उनको सीएम पद छोड़ता नहीं, मुझे मिलता नहीं।
पायलट को राजनीति में इतने साल तो हो गए हैं कि उनमें यह समझ आ गई है कि कोई भी सीएम अपनी मर्जी से बयान नहीं देता। वह हाईकमान की मर्जी से कहता-सुनता-बोलता-करता है। वैसे भी इश्क, सत्य, तोंद और राजनीतिक महत्वाकांक्षा छिपाए नहीं छिपते। सामने आ ही जाते हैं। गहलोत जी की साफगोई की तारीफ करनी पड़ेगी कि वे दिल की बात जुबां पर ले आते हैं, वह भी कांग्रेसी मुख्यमंत्री होकर। भाजपा के कई मुख्यमंत्रियों की तो यह हालत है कि उनके राज्यों का हर सीएम आजीवन सीएम बने रहना चाहता है, पर खुलेआम नहीं कहता कि यह पद मुझे छोड़ना नहीं चाहता। वह डंके की चोट पर मोदी जी की इच्छा को सर्वोपरि बता देता है कि मोदी है तो ही मुमकिन है। आप खुद ही सोचिए कि वसुंधरा राजे भी तो इस जैसा ही कोई बयान दे सकती थी कि इस बार राजस्थान में भाजपा आती है तो तीसरी बार सीएम का पद मुझे लपकने को आतुर है।
वैसे भी हर पार्टी में एक रिवाज होता है- जड़ें काटकर पौधा सींचने का। बड़ी पार्टियों में यह कुछ ज्यादा होता है। इसलिए हर मुख्यमंत्री को एक दिन अपनी ही पार्टी के हाथों उखड़ना होता है। नहीं तो यूं बैठे-बिठाए कौन कहेगा कि मैं कुर्सी छोड़ना चाहता हूं, पर कुर्सी मुझे नहीं छोड़ रही। कहते हैं कि सब्र का फल मीठा होता है, पर राजनीति में सब्र का फल हमेशा मीठा नहीं होता। क्योंकि कई बार रगड़ाई कराते-कराते इतना समय निकल जाता है कि आदमी इस काबिल भी नहीं रहता कि पार्षद भी बन सके। आजकल तो राजनीति में इतना लाभ है कि लोगों से पार्षदी तक नहीं छूटती, यह तो सीएम का पद है। यूं भी एक बार बड़ा पद मिल जाए तो वह गहरे प्रेम की तरह स्थायी हो जाता है। मुख्यमंत्री का पद उस खूबसूरत हसीना की तरह है, जिस पर सिर्फ डोरे डालने से काम नहीं चलता। उसे भगाकर ले जाने वाला ही जीत में रहता है।

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