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सियासी खींचतान में फंसी प्यासी दिल्ली

06:39 AM Jun 13, 2024 IST
सियासी खींचतान में फंसी प्यासी दिल्ली
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ज्ञानेन्द्र रावत

दिल्ली पीने के पानी के संकट से जूझ रही है। वैसे तो दिल्लीवासियों को हर साल भीषण गर्मी के दौरान पानी की भारी किल्लत से जूझना पड़ता है। विडम्बना यह है कि दिल्ली सरकार और दिल्ली के उपराज्यपाल के बीच जारी रस्साकसी का खमियाजा आम जनता को भुगतना पड़ रहा है। हालत यह है कि दिल्ली की जल मंत्री कभी दिल्ली के उपराज्यपाल को और कभी हरियाणा सरकार को दोषी ठहरा रही है। वहीं उपराज्यपाल जल संकट के लिए पानी की चोरी और बर्बादी को मुख्य कारण बता रहे हैं। इस बाबत हिमाचल के मुख्यमंत्री का कहना है कि हिमाचल दिल्ली सरकार के साथ किए गये समझौते के तहत दिल्ली को पानी देने के लिए प्रतिबद्ध है। जबकि सुप्रीम कोर्ट में हरियाणा सरकार द्वारा दिये गये शपथ पत्र के आंकड़ों से दिल्ली की जल मंत्री के कथन को बल मिलता है कि दिल्ली को उसके हिस्से का पर्याप्त पानी नहीं मिल रहा है। वहीं दिल्ली के उपराज्यपाल का कहना है कि हरियाणा दिल्ली को पूरा पानी दे रहा है। उनका दावा है कि दिल्ली सरकार मुनक नहर की मरम्मत नहीं करा रही है और वह टैंकरों के जरिये पानी की चोरी करवा रही है।
सवाल यह है कि जब हरियाणा द्वारा दिल्ली को पूरा पानी दिया जा रहा है तो दिल्ली पानी की किल्लत क्यों झेल रही है। दरअसल, यह मसला भाजपा और आप के राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई में उलझा हुआ है। जिसमें दिल्ली की जनता पिसने को मजबूर है। इसी के चलते दिल्ली के अनेक विकास कार्य भी लटके पड़े हैं। हां, इतना जरूर है कि इस सबके लिए वह चाहे निगम का मसला हो, मोहल्ला क्लीनिक का मसला हो, स्कूलों का हो या फिर जनहित के कार्यों या फिर बजट या अधिकारों का हो, केन्द्र की भाजपा सरकार, दिल्ली के उपराज्यपाल और दिल्ली की आप सरकार एक-दूसरे के सिर पर ठीकरा फोड़ती रही हैं।
हकीकत यह है कि दिल्ली को हरियाणा से कुल 1,050 क्यूसेक पानी मिलना चाहिए। एक मई से 22 मई तक हरियाणा मुनक नहर के कैरियर लाइन नहर यानी सीएलसी में 719 क्यूसेक और दिल्ली सब ब्रांच यानी डीएसबी नहर में 350 क्यूसेक पानी छोड़ा गया था। मतदान के दो से तीन दिन पहले इसे 91 क्यूसेक तक कम कर दिया गया। बीते चार दिनों से केवल 985 क्यूसेक पानी छोड़ा गया है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर हिमाचल अतिरिक्त पानी भी छोड़ने को तैयार है। जहां तक मुनक नहर की मरम्मत और रखरखाव का सवाल है, इसका ठीकरा दिल्ली सरकार पर फोड़ना सही नहीं लगता। नहर की मरम्मत और उसके रखरखाव का जिम्मा हरियाणा सरकार के सिंचाई विभाग का है। हकीकत में मुनक नहर से पानी बवाना लाया जाता है। बवाना से पहले यदि पानी की चोरी होती है तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है? लेकिन दिल्ली भाजपा अध्यक्ष का कहना है कि दिल्ली सरकार के संरक्षण में पानी की चोरी अब भी जारी है जिसकी वजह से दिल्ली की जनता पानी का संकट झेल रही है। उनकी मानें तो मुनक नहर से काकोरी आते-आते 20 फीसदी पानी की चोरी हो रही है।
कम पानी आने से वजीराबाद जलाशय का स्तर सामान्य से पांच फीट नीचे आ जाना खतरे का संकेत है। दिल्ली में जगह-जगह लगाये गये वाटर एटीएम के जरिये भीषण गर्मी में लोगों की प्यास बुझाने के दावे खोखले साबित हुए हैं। हकीकत यह है कि वे खराब पड़े हैं। कहीं तो वे ठीक से काम ही नहीं कर रहे हैं, कहीं उन पर ताले लटके हैं। जहां तक वाटर ट्रीटमेंट प्लांट की बात है, हाल फिलहाल नौ वाटर ट्रीटमेंट प्लांट अपनी क्षमता से ज्यादा काम कर रहे हैं।
असली समस्या तो पानी की मांग और उपलब्धता की है। दिल्ली में पानी की मांग 1296 एमजीडी से 1300 एमजीडी तक है लेकिन सप्लाई केवल 998.8 से 1000 एमजीडी ही है। स्वाभाविक है 300 एमजीडी पानी की कमी तो बरकरार रहती ही है। जल संकट के मद्देनजर कुल 587 ट‍्यूबवैल लगाने की योजना थी। पहले चरण में इनमें से कुछ सक्रिय भी हैं, जिनसे 19 एमजीडी पानी मिल रहा है। जबकि दूसरे चरण में 2590 ट्यूबवैल के लिए 1800 करोड़ की राशि की दरकार थी जिसकी अभी तक मंजूरी नहीं मिली है। फिर दिल्ली सरकार के जल बोर्ड की क्षमता केवल 90 करोड़ गैलन पानी के ट्रीटमेंट की ही है।
दरअसल, दिल्ली सरकार पानी के ट्रीटमेंट और स्टोरेज पर पूरी तरह ध्यान नहीं दे पा रही है। ऐसी स्थिति में दिल्ली सरकार दिल्लीवासियों की पानी की ज़रूरत कैसे पूरी कर पायेगी। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार से पानी की बर्बादी रोकने की बाबत योजना पेश करने का निर्देश दिया है। उस स्थिति में जबकि तकरीबन 40-50 साल पुरानी पाइप लाइन लीकेज और जगह-जगह फटने से हजारों गैलन पानी की बर्बादी रोजमर्रा की बात है , आने वाले दिनों में दिल्ली वाले पानी के संकट से कैसे निजात पायेंगे।

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