For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

न रहेगी फीस की टीस

04:00 AM May 01, 2025 IST
न रहेगी फीस की टीस
Advertisement

निस्संदेह, सरस्वती के मंदिरों का व्यापार का केंद्र बनना दुर्भाग्यपूर्ण ही है। नौकरियों में अंग्रेजी के वर्चस्व के चलते अभिभावक अपना पेट काटकर बच्चों को महंगे पब्लिक स्कूलों में पढ़ाते हैं। लेकिन सीमित आय वर्ग वाले कर्मचारियों व आम लोगों का कष्ट तब बढ़ जाता है जब स्कूल प्रबंधन मनमाने ढंग से हर साल फीस बढ़ाने लगते हैं। दलील दी जाती हैं कि छात्रों को गुणवत्ता की शिक्षा देने और योग्य शिक्षकों के अच्छे वेतन हेतु फीस बढ़ाने की जरूरत होती है। सर्वविदित है कि निजी स्कूलों के शिक्षकों की तनख्वाह सरकारी स्कूलों के शिक्षकों के मुकाबले काफी कम होती है। दरअसल, केवल स्कूल की फीस ही नहीं बढ़ती बल्कि तमाम अन्य मदों में अभिभावकों की जेब तराशने का सिलसिला सारे साल बदस्तूर चलता रहता है। बच्चों के बेहतर भविष्य के लिये अभिभावक भी फीस की टीस को बर्दाश्त करते हैं। लेकिन जब दिल्ली के स्कूल प्रबंधकों की मनमानी सीमा पार करने लगी तो अभिभावक विरोध में सड़कों पर उतर आये। दिल्ली सरकार भी हरकत में आई और आनन-फानन में फीस नियंत्रण के लिये एक विधेयक लाया गया। सभी के लिये किफायती और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराना राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 का प्रमुख लक्ष्य रहा है। लेकिन इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य के मार्ग पर एक बड़ी बाधा निजी स्कूलों द्वारा अभिभावकों का आर्थिक शोषण रहा है। मुख्य रूप से ये स्कूल पूरी तरह लाभ के लिये संचालित किए जाते हैं। दरअसल, इस मामले में जांच व नियमन का मजबूत तंत्र न होने का लाभ निजी स्कूल उठाते रहे हैं। जिसने शिक्षा के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर व्यावसायीकरण को बढ़ावा दिया है। ऐसे में दिल्ली सरकार की कैबिनेट का राष्ट्रीय राजधानी के सभी स्कूलों में फीस के नियमन को एक विधेयक को मंजूरी देना सुखद ही है। जिसके अंतर्गत उचित अनुमोदन के बिना फीस बढ़ाने पर दस लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है।
निश्चय ही दिल्ली सरकार की इस पहल का स्वागत किया जाना चाहिए। इससे उन अभिभावकों को राहत मिलेगी जो हर साल फीस बढ़ाए जाने से त्रस्त रहते हैं। बताया जा रहा है कि जल्दी ही विधानसभा में पेश किए जाने वाले इस विधेयक में स्कूलों के लिये जिला व राज्य स्तर पर समितियों के गठन का प्रस्ताव है। इनके पैनल द्वारा पारदर्शी व समयबद्ध तरीके से स्कूल प्रबंधन द्वारा फीस वृद्धि के प्रस्तावों की जांच की जाएगी। निस्संदेह, इस विधेयक का मकसद असहाय अभिभावकों को स्कूल प्रबंधन के मनमाने फैसलों से बचाना है। दरअसल, देखने में आया है कि स्कूल प्रबंधन से जुड़े अधिकारी मनमाने ढंग से फीस में बढ़ोतरी करते रहते हैं। जो एक जबरन वसूली जैसा ही है, वजह है स्कूल के अधिकारियों के पास तमाम अधिकारों का होना। उल्लेखनीय है कि देश में गुजरात, राजस्थान और तमिलनाडु समेत कई राज्यों ने स्कूलों में फीस की संरचना को विनियमित करने के लिये कानून बनाये हैं। हालांकि, अकसर राज्य सरकारें इस मामले में खुद को अदालती लड़ाई में उलझा पाती हैं। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2021 में, सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान स्कूल फीस विनियमन अधिनियम, 2016 की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है। जिसमें शिक्षा में मुनाफाखोरी रोकने के राज्य के अधिकार की पुष्टि की गई है। निस्संदेह, ऐसी ही स्थितियों में दिल्ली में प्रभावित अभिभावकों के विरोध प्रदर्शनों ने दिल्ली की भाजपा सरकार को एक नियामक विधेयक लाने के लिये बाध्य किया। उल्लेखनीय है कि इस कानून में उन स्पष्ट प्रवर्तन प्रावधानों को शामिल करने की कोशिश की गई है, जिनके जरिये शैक्षणिक संस्थानों और सरकारों के बीच विवादों को कम किया जा सके। साथ ही यह भी कि निजी स्कूल बेहतर सुविधाओं और शिक्षकों को उच्च वेतन देने के नाम पर फीस वृद्धि को उचित न ठहरा सकें। विडंबना यह है कि स्कूल प्रबंधन अकसर इन्हीं दलीलों को देकर ही फीस में वृद्धि करते हैं। लेकिन एक हकीकत यह भी है कि उनमें से अधिकांश आय-व्यय का विवरण देने से कतराते हैं। फलत: अभिभावक सही जानकारी के अभाव में ठगे जाते हैं। विश्वास किया जाना चाहिए कि मजबूत कानूनी सुरक्षा उपायों से शिक्षा व्यवस्था व्यापार का जरिया न बनी रह सकेगी।

Advertisement

Advertisement
Advertisement