व्यक्ति के भाव में कपट और स्वभाव में कटुता नहीं होनी चाहिए : स्वामी ज्ञानानंद
कुरुक्षेत्र, 6 दिसंबर (हप्र)
गीता ज्ञान संस्थानम में दिव्य गीता सत्संग की श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए स्वामी ज्ञानानंद ने कहा कि व्यक्ति के भाव में कपट और स्वभाव में कटुता नहीं होनी चाहिए। महाभारत में दुर्योधन ऐसा पात्र है जिसके स्वभाव में कपट और कटूता दोनों थी। दुर्योधन ने अपने इसी स्वभाव के कारण शल्य को कर्ण का सारथी बनाया।
गीता के दूसरे अध्याय के 2 से 11 तक श्लोकों में दुर्योधन के छल और कपट का ही वर्णन है। उन्होंने कहा कि जब सत्ता पर कोई काबिज हो और उसके पीछे किसी का कपट काम कर रहा हो तो यह पक्ष राजनीति को कमजोर बनाता है। राजा तो धृतराष्ट्र थे, लेकिन उनके पीछे सत्ता दुर्योधन चलाता था। इसीलिए वें पुत्र मोह में फंसे हुए थे, इससे राजनीति पतित होती हैं और गिर जाती हैं।
उन्होंने कहा कि अर्जुन को कोई नहीं हरा पाया, लेकिन कुरुक्षेत्र की धरा पर आकर अर्जुन अपने आप से हार गया। जिस गांडीव का अर्जुन कभी भी अपमान सहन नहीं कर सकता था, उस गांडीव को अर्जुन ने कुरुक्षेत्र की धरती पर उतार कर रख दिया। यह वृतांत संजय ने जब हस्तिनापुर में बैठे महाराजा धृतराष्ट्र को सुनाया तो वें बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने गांडीव के इतिहास के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि महाभारत अनूठी प्रेरणा का ग्रंथ है। यह अद्भुत प्रेरणा देता है। जब भगवान श्री कृष्ण अर्जुन के सारथी बने तो उन्होंने अर्जुन को हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया और उसका उत्साह बढ़ाया। जबकि दूसरी ओर कर्ण के सारथी शल्य ने हमेशा कर्ण का उत्साह कम किया।