For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.

स्त्री अस्मिता के साथ हो बराबरी की पहल

10:25 AM Mar 05, 2024 IST
स्त्री अस्मिता के साथ हो बराबरी की पहल
Advertisement

पिछली कई सदियों से महिलाओं की समाज से लड़ाई ही पुरुषों के बराबर होने की है। लेकिन बराबरी की इस धुन में हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि महिलाओं को पुरुष नहीं बनना। महिलाओं को महिलाएं ही बने रहना है और महिला बने रहते हुए ही उन्हें पुरुषों की बराबरी चाहिए।

संध्या सिंह

Advertisement

महिला दिवस प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर नारीवादी आंदोलन का सबसे बड़ा प्रतीक है। इस दिन पूरी दुनिया में,लाखों सभाएं, लाखों भाषण और लाखों तरह के विचार-विमर्श आयोजित होते हैं, जिसमें मुख्यतः फोकस इसी बात पर होता है कि महिलाओं को पुरुषों के बराबर माना जाए। यह गलत नहीं है। वास्तव में पिछली कई सदियों से महिलाओं की समाज से लड़ाई ही पुरुषों के बराबर होने की है। लेकिन बराबरी की इस धुन में हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि महिलाओं को पुरुष नहीं बनना। महिलाओं को महिलाएं ही बने रहना है और महिला बने रहते हुए ही उन्हें पुरुषों की बराबरी चाहिए। लेकिन जल्दबाजी में या समझ के सरलीकरण के कारण पिछले लगभग सवा सौ सालों से हो यह रहा है कि महिला दिवस पर महिलाओं को हर क्षेत्र में पुरुषों जैसा होने का आह्वान किया जा रहा है। जरा रुकिये और इस बात को समझिये कि महिलाओं को पुरुषों जैसा सम्मान और महत्व चाहिए लेकिन इसके लिए महिलाओं को पुरुष कतई नहीं बन जाना। आज हर समझदार महिला कहना चाहती है प्लीज हमें वही रहने दें, जो हम हैं।

सौ सालों से बहुत कुछ बदला

इसमें दो राय नहीं कि महिलाएं आज भी जीवन के हर क्षेत्र में पुरुषों से काफी पीछे हैं। लेकिन यह मानना कि पिछले लगभग सवा सौ सालों से कुछ बदला ही नहीं है,बिलकुल गलत है। आज समाज का कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जहां महिलाएं पुरुषों से कंधा से कंधा मिलाकर न चल रही हों, भले वे संख्या में पुरुषों के जितनी न हों, लेकिन हर साल अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर लोग हर बार महिलाओं के प्रति ज्यादा बराबरी के भाव को स्वीकार करते हैं। इसलिए साल 2024 के लिए अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की जो थीम ‘इंस्पायर इनक्लूजन’ है,उसे गहराई से समझने की जरूरत है। लेकिन इस बात को दोहराने की जरूरत है कि महिलाओं को बराबरी की दुनिया का हिस्सा बनाना है, महिलाओं को पुरुष नहीं बनाना है। न उनकी पुरुष बनने की चाहत है। महान समाजवादी विचारक माओत्से तुंग ने कहा था, ‘एक रंग के फूल से बागीचा नहीं बनता, उससे तो फूल की खेती का एक खेत बनता है। बगीचा वही है, जहां तरह तरह के फूल खिले हों।’ समाज भी एक खूबसूरत बगीचा तभी बनेगा, जब महिलाएं अपनी समूची पहचान के साथ खूब फलें-फूलें और पुरुष अपने समूचे व्यक्तित्व के साथ अपना रंग बिखेरें।

Advertisement

दृष्टिकोण बदलने की कोशिश नहीं करें

यह सिर्फ पुरुषों को ही समझने की जरूरत नहीं है, महिलाओं को उनसे भी ज्यादा समझने की जरूरत है कि वो बराबरी की सनक में अपना महिलापन न खोएं। महिलाओं को समझने, उनकी इज्जत करने और उन्हें बराबरी का सम्मान देने का एक ही तरीका है कि उनकी भावनाओं की, उनके विचारों और दृष्टिकोणों को समझा जाए और समझने के साथ ही उनकी भिन्नता का सम्मान किया जाए। जो पुरुष महिलाओं का सम्मान करते हैं, उन्हें समझने की जरूरत है कि वे महिलाओं का सम्मान कैसे कर सकते हैं। निश्चित रूप से विभिन्न मुद्दों पर महिलाओं का दृष्टिकोण भिन्न होता है। इसलिए किसी पुरुष,को महिला के दृष्टिकोण को बदलने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। हां, अगर वह दृष्टि अमानवीय हो गैर सामाजिक हो, मानवता विरोधी हो या अवैज्ञानिक हो तो उसे आईना भी जरूर दिखाना चाहिए। लेकिन पुरुष की तरह ही कोई महिला भी सोचे, यह सोचना ही गैरजरूरी है।

भावनाओं को समझें

महिलाओं को इज्जत देने का सबसे आसान और बेहतर तरीका यही है कि उनकी भावनाओं को समझा जाए। महिलाएं यह नहीं चाहतीं कि आप उनसे लड़ें ना। महिलाएं ये भी नहीं चाहतीं कि उन्हें बिना कुछ किए, वह सब कुछ मिल जाए, जो पुरुषों को बहुत श्रम करके मिलता है। महिलाएं सिर्फ ये चाहती हैं कि उनकी भी पुरुष, उन्हीं संदर्भों में इज्जत करें, जिन संदर्भों में वे खुद महिलाओं से या दूसरे पुरुषों से सम्मान पाना चाहता है, तारीफ पाना चाहता है।

सफल रिश्तों की शिल्पकार

कई ऐसे अध्ययन हुए हैं जो इस बात का खुलासा करते हैं कि महिलाओं में इमोशनल कोशंट पुरुषों से ज्यादा होता है। इसलिए महिलाएं न खुद अपनी भावनाओं को बेहतर ढंग से समझती हैं बल्कि वे दूसरों की भावनाओं को भी बहुत जल्दी समझ जाती हैं और फिर उसी के मुताबिक व्यवहार करती हैं। महिलाओं की यही समझ, यही सोच उन्हें सफल रिश्तों का शिल्पकार बनाती हैं। महिलाएं इसलिए बहुत आसानी से किसी के साथ रिश्ता नहीं तोड़तीं, क्योंकि वह दूसरे की भावनाओं को उसके नजरिये से देखती हैं और खुद के पसंद न होने के बावजूद उसे स्वीकार करती हैं। यही काम पुरुषों को भी करना चाहिए।

पुरुषों के प्रति नजरिया

दरअसल सभी पुरुष भी एक जैसे नहीं होते। विज्ञान कहता है महज 8 से 10 फीसदी पुरुष ही ऐसे होते हैं, जिनमें ये सारी खामियां पायी जाती हैं, जो महिलाओं के बिल्कुल विपरीत होते हैं। सिर्फ अधिकतम 10 फीसदी ही ऐसे पुरुष होते है, जो संवेदनाओं को ज्यादा महत्व नहीं देते। अगर बहुत बड़ी संख्या में पुरुष महिलाओं की जैसी भावनाएं रखने वाले न होते तो दुनिया में कभी भी महिलावादी आंदोलन सफल न होते। जरूरत यह है कि महिलाओं को पूरी तरह से संवेदनशील महिलाएं बने रहने देते हुए उन्हें पुरुष स्वीकारें और महिलाएं भी सारे पुरुषों को एक तराजू में न तोलें। इ.रि.सें.

Advertisement
Advertisement
Advertisement
×