मुख्यसमाचारदेशविदेशखेलबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाब
हरियाणा | गुरुग्रामरोहतककरनाल
रोहतककरनालगुरुग्रामआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकीरायफीचर
Advertisement

अमेठी में तो अभी एक ही सवाल, राहुल लड़ेंगे या नहीं ?

07:15 AM Apr 24, 2024 IST
Advertisement

कृष्ण प्रताप सिंह

देश की सबसे हाॅट सीटों में शुमार अमेठी लोकसभा सीट इस बार अभी सामान्य चुनावी गर्मी के लिए भी तरस रही है। कारण यह कि राहुल गांधी के यहां से लड़ने या न लड़ने का सवाल इतना बड़ा हो गया है कि उनके समर्थक हों या विरोधी, सब इसी चर्चा में मशगूल हैं।
स्थानीय कांग्रेसी इसे अपने रणनीतिकारों की सफलता मान रहे और मजे लेते हुए कह रहे हैं कि हमारे लिए इससे बेहतर और क्या होगा कि प्रतिद्वंद्वी छायायुद्ध में ही पस्त हो जाये, जबकि पिछली बार मैदान मार चुकी भाजपा प्रत्याशी स्मृति ईरानी लगातार मैदान में डटी हुई हैं। लेकिन निशाना बनाने के लिए कोई सामने ही नहीं है। कांग्रेस के इसी क्षेत्र के निवासी प्रदेश सह-समन्वयक विकास अग्रहरि को बरबस अपने पाले में खींच लाने की उनकी कवायद भी उन पर उलटी पड़ी है। अग्रहरि का कहना है कि स्मृति के आवास पर उन्हें उनकी इच्छा के विपरीत अंगवस्त्र पहनाकर भाजपा में शामिल करा लिया गया था और वह अभी भी कांग्रेस में ही हैं।

Advertisement


बीच-बीच में फुलझड़ी की तरह यह खबर भी आ जा रही है कि भाजपा सांसद वरुण गांधी कांग्रेस की ओर से स्मृति के मुकाबिल होंगे, जो पीलीभीत में अपना टिकट कटने से बाद से भाजपा से नाराज हैं और ‘साफ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं।’ कई हल्कों में जहां यह कहा जा रहा है कि 26 अप्रैल को अपनी वायनाड की सीट पर मतदान के बाद राहुल अमेठी का रुख करेंगे, वहीं, यह भी याद दिलाया जा रहा है कि प्रियंका के पति राबर्ट वाड्रा कह चुके हैं कि अमेठी चाहती है कि वे अपनी राजनीति का आगाज अमेठी से ही करें। ऐसी चर्चाओं के बीच स्मृति की दर्पोक्तियां ‘कोई भी आये, हारेगा ही’ जैसे बयान तक जा पहुंचने में भी संकोच नहीं कर रहीं। खबर है कि वह 29 अप्रैल को गाजे-बाजे और शक्ति प्रदर्शन के साथ नामांकन करने वाली हैं, जबकि स्थानीय पत्रकार अमेठी के ‘पल में तोला, पल में माशा’ वाले उस स्वभाव की चर्चा कर रहे हैं, जिसके चलते न उसे नाराज होकर किसी पार्टी या प्रत्याशी को शिकस्त खिलाते देर लगती है, न ही खुश होकर सिर पर बिठाते।
अमेठी ने 1977 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी को बुरी तरह नकार दिया तो केंद्र में जनता पार्टी सरकार का प्रयोग विफल होने के बाद 1980 में सिर आंखों पर बिठा लिया था। विमान दुर्घटना में उनके आकस्मिक निधन के बाद 1981 में हुए उपचुनाव में उसने उनके बड़े भाई राजीव गांधी को तो अभूतपूर्व ढंग से 81.18 प्रतिशत मत दिये थे, जबकि उनकी राह रोकने आये लोकदल के शरद यादव को महज 21,188 मत, जिसके चलते उनकी जमानत जब्त हो गई थी। इंदिरा गांधी की हत्या की पृष्ठभूमि में हुए 1984 के आमचुनाव में गांधी परिवार में बढ़ती खुन्नस के बीच संजय की पत्नी मेनका संजय विचार मंच के बैनर पर राजीव गांधी के विरुद्ध आ खड़ी हुईं तो अमेठी उनकी जमानत जब्त कराने से भी नहीं हिचकी। अलबत्ता, उन्हें शरद यादव के दो गुने 50,163 मत दिये थे।
1989 में मुकाबले को फिर से ‘गांधी बनाम गांधी’ और ‘असली बनाम नकली गांधी’ बनाने के लिए विपक्ष ने महात्मा गांधी के पौत्र राजमोहन गांधी को राजीव के खिलाफ मैदान में उतारा तो भी अमेठी अविचलित भाव से राजीव के साथ खड़ी रही। त्रिकोणीय मुकाबले में बसपा के संस्थापक कांशीराम को तो उसने सिर्फ 25,400 मत दिये। वर्ष 1991 में उसने राजीव के खिलाफ भाजपा के रवीन्द्र प्रताप सिंह का कस-बल भी नहीं चलने दिया। उनकी निर्मम हत्या के बाद हुए उपचुनाव में कैप्टन सतीश शर्मा को भी जिताया ही। शर्मा 1996 में भी जीते, लेकिन 1998 में कांग्रेसी से भाजपाई बने संजय सिंह से गच्चा खा गये। वर्ष 1999 में सोनिया गांधी ने संजय सिंह को भारी अंतर से हराया। अनंतर, वह अपनी सास इंदिरा गांधी की रायबरेली सीट पर चली गईं और अमेठी राहुल को सौंप गईं तो 2004 और 2009 के चुनाव वह बसपा प्रत्याशियों को हराकर जीते और भाजपा तीसरे नम्बर पर। वर्ष 2014 में स्मृति ईरानी बसपा को धकेलकर दूसरे नम्बर पर आ गईं और आम आदमी पार्टी के कवि प्रत्याशी कुमार विश्वास को 25 हजार वोट और चौथा स्थान मिला। पिछले चुनाव में स्मृति ईरानी ने राहुल को 55,120 मतों से हरा दिया।

Advertisement
Advertisement