अपूर्णता में भी है जीवन की खूबसूरती
रेनू सैनी
अपूर्णता, अस्पष्टता और कमी को लोग पसंद नहीं करते। जबकि ईश्वर ने मनुष्य को प्राकृतिक रूप से ऐसा बनाया है कि वह कभी पूर्ण हो ही नहीं सकता। हर मानव के अंदर ये तीनाें बातें किसी न किसी मात्रा में अवश्य पाई जाती हैं ः-
अस्थिरता का होना, सभी इच्छाओं और कामनाओं को पूरा करने की असंभवता, शून्य और रिक्तता का होना और उच्च लक्ष्य की आकांक्षा।
प्रकृति यही संदेश देती है कि जीवन की खूबसूरती उसकी अपूर्णता में ही है। अपूर्णता सुंदर ही इसलिए है क्योंकि इसमें सदा संभावना के द्वार खुले रहते हैं। वाबी साबी अवधारणा जीवन को बहुत ही सुंदर तरीके से परिभाषित करती है। यह बताती है कि अधूरेपन में ही आनंद है। अधूरेपन की सुंदरता आकर्षक होती है क्यांेकि उसे पूरा करने की चाहत बरकरार रहती है। वाबी-साबी का दर्शन प्रत्येक व्यक्ति को जीने की नई राह दिखाता है, वह यह सिखाता है कि चीजों या मनुष्यों का अपूर्ण होना उन्हें गति देता है, जबकि पूर्णता से विराम लग जाता है। जब व्यक्ति सीढ़ियों पर चढ़ता है तो अगली सीढ़ी पर पहुंचते हुए उसके मन में यह जिज्ञासा रहती है कि अभी कितनी और सीढ़ियां बाकी हैं। सभी सीढ़ियों को चढ़ने के बाद उसकी वह जिज्ञासा उसी पल खत्म हो जाती है।
हमारे हृदय और आसपास जिज्ञासाओं का बने रहना बहुत जरूरी है। जिज्ञासाएं भी तभी मन में उमड़ती हैं, जब अपूर्णता शेष रहती है। यदि कहीं कमी या अपूर्णता न रहे तो कुछ जानने को बचता ही नहीं है। हर जगह और हर क्षण परिवर्तनशील है। जो अभी है, कुछ देर में वह दृश्य बदल जाएगा। नया दृश्य और नई परिस्थितियां व्यक्ति के अनुभव में एक और टांका जोड़ेंगी। अधिकतर व्यक्ति अपना जीवन अप्रसन्नता में सिर्फ इसलिए काट देते हैं क्योंकि वे उस पूर्णता की तलाश में रहते हैं जो कभी होती ही नहीं है। प्रसन्न रहने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि जो कमी है, उसी के साथ खुश रहने का प्रयास किया जाए और उनमें निरंतर सुधार किया जाए। निम्न सत्य घटना प्रत्येक व्यक्ति को यही सिखाती है।
डिक होइट एक अमेरिकी सिपाही थे। वर्ष 1962 में उनके बेटे रिक का जन्म हुआ। वह सेरिब्रल रोग के साथ पैदा हुआ था। वह बोल और चल नहीं सकता था। इससे डिक और उनकी पत्नी जूडी बुरी तरह टूट गए। कुछ समय बाद डिक और जूडी सामान्य हुए। दोनों ने ठान लिया कि वे रिक के सामने सदैव ऐसा व्यवहार करेंगे कि कुछ भी असंभव नहीं होता। कुछ भी पूर्ण नहीं होता। प्रत्येक व्यक्ति के अंदर अपूर्णता विद्यमान होती ही है, बस उस के रूप बदल जाते हैं। उन्होंने रिक को यही सब समझाया और बताया।
जब रिक बारह साल का हुआ तो उसने एक कंप्यूटर प्रोग्राम की सहायता से अपनी भावनाओं को व्यक्त करना शुरू किया। कंप्यूटर रिक के सिर की गतिविधियों को शब्दों और वाक्यों में बदलता था। रिक ने पहली बार अपने सिस्टम पर ‘गो ब्रूइंस’ शब्द कहे। इससे डिक और जूडी को लगा कि रिक को खेलों में रुचि है। बस फिर क्या था? डिक ने डॉक्टर की हर बात को अनुसना करते हुए रिक के साथ एक टीम बनाने की सोची। यह टीम थी-टीम होइट। इस टीम में देश के सबसे कठिन मैराथन और ट्राइथैलन के लिए प्रशिक्षण लिया जा सकता था। वर्ष 1977 में डिक और रिक की पहली दौड़ के साथ ही टीम होइट प्रसिद्ध हो गई। दर्शकों ने जब यह देखा कि डिक अपने डेढ़ सौ पाउंड के बेटे रिक को अपनी बाइक की अगली सीट पर बिठाकर ले जाते हैं तो उन्होंने दांतों तले अंगुली दबा ली। डिक तैरते हुए उसे अपने पीछे आ रही नाव में खींचते थे और मैराथन प्रसंगों में उसकी व्हीलचेयर को धकेलते थे। इन दोनों पिता-पुत्र ने मिलकर हज़ार से अधिक प्रतियोगिताओं मंे भाग लिया।
इन प्रतियोगिताओं में दो पचास ट्राइथैलन और छह आयरनमैन इवेंट्स भी शामिल थे। यह सब कुल मिलाकर मैराथन के 26.2 मील, साइकिलिंग के 112 मील और तैराकी के 2.4 मील रहे। सभी जानते हैं कि ये अत्यंत कठिन प्रतियोगिताएं हैं। डिक ने रिक को बचपन से कठिन कार्यों के लिए प्रशिक्षित कर यह साबित कर दिया कि अपूर्णता में ही आनंद है। अपूर्णता को पूर्णता की ओर ले जाने का प्रयास करने वाला व्यक्ति पूरी दुनिया के लिए मिसाल बन जाता है। आज भी इनकी कहानी पूरी दुनिया को राह दिखाती है। यह कहानी बताती है कि किस प्रकार अपूर्ण होते हुए भी जीवन को श्रेष्ठ और आनंदमय तरीके से जिया जा सकता है।
एक बहुत सीधी सरल बात है कि जब तक व्यक्ति का जन्म नहीं होता, तब तक भी सब कुछ विधिवत चल रहा होता है। उसकी मृत्यु के बाद भी चीजें अनवरत होती रहती हैं। अगर व्यक्ति अपने आप में पूर्ण होता तो उसके रहने या न रहने से चीजें पलट जातीं। इस धरती पर सम्राट हो या फकीर, प्रत्येक व्यक्ति अपनी जीवन यात्रा पूर्ण कर मृत्यु को प्राप्त होता है। व्यक्ति की इच्छाएं अंत तक अपूर्ण ही रहती हैं, कुछ और करने की चाह, कुछ और पाने की आकांक्षा। सोचिए जब जीवन के इतने बड़े सच को हम सहजता से स्वीकार कर लेते हैं तो अपनी कमियों और अपूर्णता को स्वीकार करने से क्यों डरते हैं।
वाबी-साबी को जीवन में उतार लीजिए। अपूर्णता से डर नहीं लगेगा, सकारात्मक तरह से उसे पूरा करने की चाह आपको श्रेष्ठ से श्रेष्ठतम की ओर ले जाएगी।