स्मार्ट मीटर खरीद को लेकर विवाद खड़ा होने का अंदेशा
शिमला, 5 जुलाई (हप्र)
हिमाचल प्रदेश बिजली बोर्ड में करोड़ों के स्मार्ट मीटरों की खरीद को लेकर विवाद खड़ा होने का अंदेशा है। बोर्ड प्रबंधन के स्मार्ट मीटरों की खरीद के फैसले का असर प्रदेश के 26 लाख बिजली उपभोक्ताओं के साथ-साथ बोर्ड की अर्थव्यवस्था पर पड़ना तय है। साथ ही स्मार्ट मीटर लगाने की योजना के सिरे चढ़ने की स्थिति में बोर्ड में मीटर रीडरों का काम खत्म हो जायेगा। उपभोक्ताओं को बिल सीधे बोर्ड के मुख्यालय से ही मिलेंगे। आउटसोर्स पर रोजगार खत्म होने से हजारों बेरोजगारों की फौज बढ़ेगी। लिहाजा बिजली बोर्ड इम्पलाइज यूनियन ने स्मार्ट मीटर खरीदने की योजना के खिलाफ लामबंद होने की तैयारी कर ली है।
केंद्र सरकार ने विद्युत सुधार कार्यक्रमों के तहत बिजली बोर्ड को 3700 करोड़ की रकम मंजूर की है। मंजूर राशि में से करीब 1800 करोड़ से स्मार्ट मीटर खरीदे जाने हैं। बाकी की रकम विद्युत सुधार कार्यक्रमों पर खर्च होनी है। योजना के तहत प्रदेश के 26 लाख बिजली उपभोक्ताओं के घरों में स्मार्ट मीटर लगेंगे। स्मार्ट मीटर लगाने के एवज में केंद्र सरकार 393 करोड़ का अनुदान बिजली बोर्ड को देगी। यह राशि 1300 रुपए प्रति मीटर होगी। बिजली बोर्ड ने स्मार्ट मीटर लगाने के लिए टेंडर को अंतिम रूप दे दिया है। तीन कंपनियों को यह कार्य आबंटित होगा। 1800 की जगह 3100 करोड़ की रकम खर्च कर स्मार्ट मीटर लगेंगे। यह केंद्र से मंजूर 1800 करोड़ से करीब 70 फीसद अधिक है। स्मार्ट मीटर पर खर्च होने वाली राशि की वसूली उपभोक्ताओं से 100 रुपए प्रति माह बिजली के बिल के साथ होगी। जाहिर है कि बोझ सीधा उपभोक्ताओं पर पड़ेगा। बिजली बोर्ड इम्पलाइज यूनियन का कहना है कि प्रदेश में अभी 12 लाख उपभोक्ताओं को मुफ्त में बिजली मिल रही है। मुफ्त बिजली पाने वाले उपभोक्ताओं को भी क्या 100 रुपए हर माह देना होगा? साथ ही स्मार्ट मीटर लगने के बाद हरेक उपभोक्ता की बिजली की खपत का ब्योरा मुख्यालय में होगा। बिल इसी हिसाब से आएगा। जाहिर है कि इससे रोजगार पर भी असर पड़ेगा। साथ ही केंद्र से प्रोजेक्ट के एवज में मंजूर रकम से अधिक खर्च होने पर तमाम बोझ प्रदेश के खजाने पर पड़ेगा। लिहाजा सरकार को इस बारे दोबारा विचार करने की मांग यूनियन ने की है।