For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

खेल नीति में व्यापक बदलाव की जरूरत

08:18 AM Aug 20, 2024 IST
खेल नीति में व्यापक बदलाव की जरूरत

जगमति सांगवान

पेरिस ओलंपिक में छह अगस्त को भारतीय खिलाड़ी विनेश फोगाट ने जिस प्रकार एक के बाद एक तीन बाऊट जीती और खास तौर पर अजेय मानी जाने वाली जापानी सुसाकी को हराया, उससे देश में उत्साह और आह्लाद पैदा हुआ। उसने महिला कुश्ती में पहली बार कोई गोल्ड मेडल जीतने की आस जगाई थी। लेकिन सात अगस्त की सुबह सौ ग्राम ओवरवेट होने की वजह से विनेश के डिसक्वालीफाई होने की खबर आते ही देशवासियों का वह आह्लाद विनेश के प्रति भारी हमदर्दी में बदलने लगा। बहरहाल, इस प्रकरण से कुछ लोगों में खेल सिस्टम के खिलाफ अविश्वास भी गहराया। कई फिल्मी हस्तियों व खिलाड़ियों की बयानबाजी, ओलंपिक डेलिगेशन द्वारा सही समय पर अधिकृत बयान न देने, तथा खेल मंत्री द्वारा संसद में पूरे प्रकरण को सिर्फ विनेश की ट्रेनिंग पर खर्च के हिसाब तक सिकोड़ देने का अच्छा संकेत नहीं गया।
इसी प्रकार सेमीफाइनल के उपरांत एकदम विनेश के वेट में अचानक वृद्धि व अन्य कई सवालों का जवाब नहीं मिल रहा। इन निर्णायक क्षणों में आईओए, कुश्ती फेडरेशन, उसके कोच, फिजिशियन की भूमिका पर भी सवाल हैं। ऐसे में सरकारी तंत्र व खेल मंत्रालय को एक श्वेत पत्र के माध्यम से जनता से मुखातिब होना चाहिए। उतना ही जरूरी है हमारी खेल नीति में लिंग संवेदी बदलाव। पेरिस के वकीलों ने ओलंपिक अधिशासी कोर्ट के स्तर पर विनेश की ओर से उसकी कांस्य पदक साझा करने की अपील दर्ज करवा कर एक स्वागतयोग्य पहल की।
जनता को विश्वास में लेने के लिए सरकारी तंत्र द्वारा यथासंभव तत्काल समुचित प्रयास करना इसलिए भी अति आवश्यक है क्योंकि इस पूरे प्रकरण की अपनी एक त्रासदीपूर्ण पृष्ठभूमि है। जिसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। पिछले दिनों चाहे वह हरियाणा के पूर्व खेल मंत्री पर लगे यौनहिंसा के आरोप हों, कुश्ती संघ के तत्कालीन अध्यक्ष व भाजपा के शक्तिशाली पूर्व सांसद बृजभूषण पर विनेश समेत अन्य ओलंपियन खिलाड़ियों द्वारा यौन दुर्व्यवहार के खिलाफ जंतर-मंतर पर लड़ा गया अभूतपूर्व संघर्ष हो, जनता की नजर में सरकार की डीलिंग चुनावी कंसीडरेशन से संचालित रही है। यह कवायद महिला खिलाड़ियों को न्याय देने वाली नहीं थी। जिसके नकारात्मक असर खेल जगत पर पड़े हैं।
यहां सवाल स्वाभाविक है कि न्याय के लिए आवाज उठाने वाली वह हरियाणा की ओलंपियन एथलीट जूनियर कोच हो या महिला ओलंपिक कुश्ती में देश के लिए पहली मेडल विजेता साक्षी मलिक और अब विनेश फोगाट। इन सभी को आखिर खेल ही क्यों छोड़ना पड़ा है? उनके मनोबल को पितृसत्तात्मक सिस्टम के ठेकेदार कब तक तोड़ते रहेंगे? सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बगैर तो एफआईआर तक दर्ज नहीं हुई।
जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों को क्या इस चीज का अंदाजा नहीं है कि उनके संवेदनहीन व भेदभाव पूर्ण व्यवहार ने इन खिलाड़ियों व राष्ट्रीय गरिमा को कितनी ठेस पहुंचाई है? इन निहित स्वार्थी तत्वों के क्रियाकलापों के कारण कितनी बेटियों को उनके माता-पिता द्वारा खेल से दूर किया गया है? इस आधुनिक युग में भी जिन असंख्य एकलव्यों के अंगूठे कलम किये जा रहे हैं, वक्त उनका हिसाब लेगा।
हकीकत में तो पूरे खेल जगत के प्रति ही सरकार का रवैया उपेक्षा पूर्ण नजर आता है। हाल का खेल बजट भी इसकी एक नजीर हो सकता है। इसमें खेलों के लिए बड़े बदलाव की उम्मीद नहीं जगती। जो खिलाड़ी इस बार पेरिस ओलंपिक में खेले हैं, उनकी अगर केस स्टडी की जाए तो पता लगेगा कि उनके संघर्ष के दौर में तो उनके परिवारों ने ही अपना बजट निचोड़ कर उनके खेल करियर निर्माण पर लगाया है। सरकारें तो मेडल जीतने के बाद ही जो पुरस्कृत करने की होड़ लगाती हैं उसकी आड़ में तो वे अपने ही राजनीतिक स्वार्थ साधते हैं। अपनी इमेज बिल्डिंग करते हैं। राजनीति को चमकाने के लिए इन खिलाड़ियों की उपलब्धियों को भुनाने को लालायित रहते हैं। अभी भी जो लोग खेलों में अपना कैरियर बना रहे हैं, वे वही हैं जिनके परिवारों के पास उनके ऊपर खर्च करने के लिए कुछ सामर्थ्य है।
खास तौर पर महिला खिलाड़ी बनने की आकांक्षा रखने वाली साधारण परिवारों की बेटियों के सपने तो संसाधनों के अभाव में अभी भी आए दिन चूर-चूर हो रहे हैं। उस खेल प्रतिभा व ऊर्जा को हम उपयुक्त सुविधा देकर जब तक खेल दायरे में प्रवेश करवाने की स्थिति में नहीं लाते तब तक हमारी ओलंपिक में गोल्ड मेडल पाने की तृष्णा केवल मृगतृष्णा ही रहेगी। अतः एक समग्र श्वेत पत्र व हमारी खेल नीति में बदलाव समय की रणनीतिक जरूरत है। जनता में पैदा हुआ अविश्वास आगे तिरस्कार का रूप न ले जाए इसके लिए जिस आमूलचूल परिवर्तन की दरकार है, वह उन सभी संबंधित पक्षों के जन-अभियान छेड़ने से हो पाएगा जो व्यवस्था के भुगतभोगी हैं।

Advertisement

Advertisement
Advertisement
×