मुख्यसमाचारदेशविदेशखेलबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाब
हरियाणा | गुरुग्रामरोहतककरनाल
रोहतककरनालगुरुग्रामआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकीरायफीचर
Advertisement

अग्निपथ योजना में सुधार की काफी गुंजाइश

06:29 AM Aug 01, 2024 IST
Advertisement
मनोज जोशी

पिछले शुक्रवार द्रास में आयोजित कारगिल विजय दिवस समारोह के अवसर पर अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष पर अग्निपथ मुद्दे का राजनीतिकरण करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा इस योजना का उद्देश्य सेना को युवा बनाए रखना है... एक ऐसी सेना जो युद्ध के लिए निरंतर चुस्त रहे। उन्होंने आगे कहा, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ लोगों ने राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े इतने संवेदनशील मुद्दे को राजनीति का विषय बना दिया है। उन्होंने इससे भी कड़े शब्द बरते, लेकिन सवाल है कि यह सब कहने के लिए क्या यह अवसर उचित था? आदर्श रूप में, इस पवित्र दिन को मनाने के लिए मंच पर विपक्ष और प्रधानमंत्री, दोनों को एक साथ होना चाहिए था। परंतु यह अपेक्षा शायद कुछ ज्यादा ही हो गई।
इसमें कोई शक नहीं कि पिछले 10 सालों में सेना के स्वरूप में काफी सुधार किया गया है। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) की नियुक्ति, सैन्य मामलों के लिए अलग विभाग का गठन, सुधरे रूप में सैन्य खरीद नीति, रक्षा उद्योग को स्वदेशी तकनीक विकसित करने की बाध्यता, रक्षा उद्योग में निजी क्षेत्र की कंपनियों की भागीदारी को अनुमति और इन्हें रक्षा अनुसंधान एवं विकास राशि का 25 फीसदी मुहैया करवाना जैसे अनेक उपाय किए गए हैं। लेकिन सेना को लेकर अग्निपथ योजना अपने आप में सबसे अधिक महत्वाकांक्षी है। इस योजना के तहत एक युवा की सेना में भर्ती 17-21 साल के बीच होनी है, उसका सेवाकाल चार साल का होगा और सेवामुक्ति उपरांत एकमुश्त रकम मिलनी है। चार साल का कार्यकाल पूरा करने वाले अग्निवीरों में से 25 प्रतिशत को सेना में आगे 15 साल या अधिक कार्यकाल की पेशकश होगी। लेकिन बाकी बचे 75 फीसदी के लिए विभिन्न सरकारी विभागों में नौकरी का विकल्प हो सकता है, जहां भर्ती में उन्हें तरजीह मिलेगी।
इस योजना पर विवाद उस वक्त उठ खड़ा हुआ जब पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल एमएम नरवाणे ने विमोचन के लिए लंबित अपनी पुस्तक में कहा कि यह योजना नौसेना और वायुसेना के लिए ‘बिन बादलों की बिजली गिरना’ बनकर आई और खुद उन्होंने जो प्रारूप सरकार को सौंपा था, वह केवल थल सेना के लिए था और उसमें भी 75 प्रतिशत अग्निवीरों को फौज में आगे बने रहना था, केवल शेष 25 फीसदी को सेवामुक्त करना था। परंतु रक्षा मंत्रालय ने इसको एकदम उलटा कर दिया, यानी 75 प्रतिशत अग्निवीरों को कार्यमुक्ति और 25 फीसदी को सेना में बनाए रखने वाला प्रावधान बना डाला।
राजनीति की वजह से, आरंभ से ही अग्निपथ योजना को लेकर विवाद होने लगे थे और दोनों पक्षों ने इस पर खेल किया, मुख्य सवाल जो अक्सर किया जाता हैः हम अग्निवीरों के लिए और अधिक क्या कर सकते हैं? फिर हमारे पास उस अन्य प्रश्न का भी ठोस उत्तर नहीं है कि अग्निवीर सेना के लिए क्या और कितने उपयोगी होंगे? इस बाबत मुख्य दलील यह दी जाती है कि अग्निपथ योजना से सेना के जवान की औसत आयु बनिस्बत युवा बनी रहेगी। सरकार की ओर से दिए शपथपत्र में दावा किया गया है कि अफसर पद से नीचे, भारतीय सैनिक की औसत आयु विश्व में सबसे अधिक, 32 साल है, जबकि वैश्विक औसत 26 वर्ष है। लेकिन दशकों से सेना में भर्ती की उम्र सदा 16.5 से 21 वर्ष के बीच रही है। कुल 75 प्रतिशत अग्निवीरों की सेवानिवृत्ति और प्रत्येक भर्ती चक्र में नई उम्र के युवाओं की आमद बनाने से योजनाकारों को उम्मीद है कि इससे फौज की औसत आयु कम हो पाएगी। किंतु जैसा कि पहले कहा, बदले में प्राप्ति क्या होगी?
भारतीय सेना में भर्ती की कुछ हकीकतें हैं। देखा गया है कि जो युवा जल्दी भर्ती होते हैं, अक्सर उनका भार और पौष्टिकता स्तर उनकी पृष्ठभूमि में विविधता के हिसाब से कम होता है। पहले नौ महीने का प्राथमिक प्रशिक्षण चरण हुआ करता था, उसमें शुरुआत नए सिरे से करनी पड़ती थी, जिसमें यह वक्त उसे शारीरिक रूप से तगड़ा करने और अनुशासन में ढालने में निकल जाता था। इसके बाद शुरू होता व्यावसायिक प्रशिक्षण, चाहे उसे अग्रिम दस्ते का फौजी बनाना हो या अधिक तकनीकी हुनरयुक्त जवान, मसलन, टैंक, तोप, वायु रक्षा प्रणाली चलाने वाला। इनमें मामूली योग्यता पाने के लिए भी एक और साल खपता है।
जबकि अब महज छह महीने के प्रशिक्षण के बाद अग्निवीर को सेना में भर्ती किया जा रहा है। रंगरूट की ग्रामीण पृष्ठभूमि, शिक्षा का स्तर और किसी उम्र में भर्ती हुई, इनके परिप्रेक्ष्य में लगता नहीं कि अग्निवीर कोई बहुत बढ़िया कौशल विकसित कर पाएंगे। जो देश हम से आगे हैं, वहां नया रंगरूट पहले से किसी न किसी कौशल से युक्त होता है जैसे कि वाहन चलाने का हुनर, लेकिन भारत में इसके लिए भी तीन महीने तक लग सकते हैं।
पूर्व एडमिरल अरुण प्रकाश का कहना है, कदाचित अग्निवीर थल सेना के लिए उपयोगी हों, जहां आक्रमण में अग्रिम दस्ते का फौजी बनने के लिए अधिक तकनीकी योग्यता की इतनी जरूरत नहीं है, लेकिन वायु सेना और नौसेना के लिए यह बड़ी समस्या बन जाएगी, जहां किसी नए भर्ती युवा को समुचित कार्यकारी अनुभव पाने के लिए कम से कम 5-6 साल की जरूरत पड़ती है, उसके बाद ही उसे किसी अभियान का हिस्सा या खतरनाक अस्त्रों का रख-रखाव, जटिल मशीनरी और इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण चलाने का काम सौंपा जा सकता है।
सरकार का कहना है कि इस योजना का मनोरथ केवल फौज की औसत आयु कम करना है न कि कोई अन्य उद्देश्य। लेकिन यदि पिछली बातों को याद करें तो सरकार के लिए इस तथ्य को मानने की जरूरत है कि यह योजना केवल वित्तीय बोझ कम करने की गर्ज से है, जिसका लाभ वैसे भी एक दशक बाद होना शुरू होगा। फिलहाल सेवानिवृत्त फौजियों को पेंशन देने में कुल खर्च 1.41 लाख करोड़ रुपये आता है अर्थात‍् कुल रक्षा बजट का 22.7 फीसदी, जिसे सेना के गले में बंधे भारी पत्थर की तरह लिया जाता है।
विगत में युवा सैन्य बल बनाने की मांगों के चलते जरूरी नहीं कि फायदे के बदले नुकसान करवा बैठें। इस योजना को बंद करने की बजाय सरकार इसमें बदलाव लाए और खामियों को दूर करे, मसलन, प्रशिक्षण और कौशल विकास के विषय में। अग्निवीर का कार्यकाल चार साल से बढ़ाकर सात वर्ष करने का सुझाव अच्छा हो सकता है, और पिछले कुछ समय से इसकी मांग हो रही है। इससे प्रशिक्षण के लिए समुचित वक्त मिल पाएगा और ऐसा फौजी सैन्य बल को प्रभावशाली योगदान भी दे पाएगा। इस नए प्रावधान के मुताबिक जब तक कोई अग्निवीर सेवामुक्त होगा तब उसकी उम्र 24-28 साल के बीच होगी, जो नौकरी के विभिन्न मौकों के लिए आदर्श होगी, कुछ वक्त लगेगा पर ऐसे अवसर उनके लिए बनते चले जाएंगे।
और यहां सनद रहे, कारगिल युद्ध-1999 में 550 से अधिक जो फौजी शहीद हुए थे, वे सभी पूरी तरह प्रशिक्षित, तपकर निकले और प्रतिबद्ध सैनिक थे न कि अग्निवीर। अग्निपथ योजना का इस किस्म का इम्तिहान होना बाकी है।

लेखक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में प्रतिष्ठित अध्येता हैं।

Advertisement

Advertisement
Advertisement