हमनाम प्रत्याशियों को लेकर ठनी, बताये जा रहे डमी
कृष्ण प्रताप सिंह
कानपुर और अकबरपुर लोकसभा सीटों पर किस्मत आजमा रहे कई प्रत्याशियों के एक जैसे नामों को लेकर बखेड़ा खड़ा हो गया है और प्रतिद्वंद्वी पार्टियों में इसे लेकर लानत-मलामत का दौर चल निकला है।
हालत यह है कि रमेश अवस्थी कानपुर सीट पर भाजपा के प्रत्याशी हैं तो इसी नाम का एक निर्दल प्रत्याशी भी है और कांग्रेस प्रत्याशी आलोक मिश्रा के हमनाम एक अन्य निर्दलीय प्रत्याशी ने भी ताल ठोक रखी है। दूसरी ओर अकबरपुर सीट पर सपा ने पूर्व सांसद राजाराम पाल को खड़ा किया है तो एक निर्दल प्रत्याशी उनका भी हमनाम है।
अब भाजपा, कांग्रेस व सपा तीनों अपने प्रत्याशियों के विरुद्ध खडे हमनाम निर्दलीयों को अपनी प्रतिद्वंद्वी पार्टी द्वारा साजिशन खड़े किये गये डमी उम्मीदवार बता रही हैं। उनके अनुसार इसके पीछे मतदाताओं को भ्रमित करने की मंशा है, ताकि एक रमेश, आलोक या राजाराम का वोट दूसरे रमेश, आलोक या राजाराम के खाते में चला जाये।
एक समय पूर्वी उत्तर प्रदेश में जीपें चलवाने वाले कई उद्यमी चुनाव के वक्त अपने वाहनों को अधिग्रहण से बचाने के लिए डमी उम्मीदवार खड़े कराकर अपनी जीपों को उनके प्रचारवाहन के तौर पर दर्ज करा देते थे। फिर पास मिल जाता तो उन पर बेधड़क सवारियां ढोते थे। बताते हैं कि चुनाव आयोग की पाबंदियां सख्त होे जाती हैं, तो डमी प्रत्याशी उन्हें खड़ा करने वाले प्रत्याशियों के ‘बड़े काम की चीज’ हो जाते हैं। इसे यूं समझ सकते हैं कि आयोग आमतौर पर एक प्रत्याशी को एक विधानसभा क्षेत्र में पांच प्रचार वाहन चलाने की इजाजत देता है, जबकि इतने भर से सघन चुनाव प्रचार नहीं हो पाता। ऐसे में पोस्टर-बैनर आदि लाने ले जाने या कार्यकर्ताओं के लिए दाना-पानी पहुंचाने में ‘अपने’ डमी प्रत्याशी के ‘अनुमतिप्राप्त’ वाहन मिल जायें तो बहुत मदद हो जाती है। डमी प्रत्याशियों को खड़े करने वाले प्रत्याशी मतदान व मतगणना केन्द्रों पर उनके एजेंटों का भी अपने पक्ष में इस्तेमाल करते हैं। चुनाव आयोग की मुश्किल है कि उसकी भरसक निगरानी के बावजूद डमी प्रत्याशी बड़ी मुश्किल से पकड़ में आते हैं और पकड़े जाने पर भी आयोग उनकी सुविधाएं भर वापस ले सकता है, उम्मीदवारी नहीं खत्म कर सकता। अलबत्ता, उसके वाहन पर दूसरे उम्मीदवार की सामग्री ढोती पाई जाने पर वह संबंधित वाहन को चुनाव की समाप्ति तक के लिए सीज कर देता, संबंधित उम्मीदवार को नोटिस देता और उसकी उम्मीदवारी को डमी घोषित कर देता है।
बहुत पुरानी है बीमारी
सच्चाई जो भी हो, जानकार बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में डमी उम्मीदवार खड़े करने की बीमारी बहुत पुरानी है। चुनाव आयोग द्वारा प्रत्याशियों से जमा कराई जाने वाली जमानत राशि बढ़ाने से इस बीमारी पर थोड़ी लगाम जरूर लगी है, लेकिन उसका उन्मूलन नहीं हो पाया है।