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फिर सियासी वादों की फेहरिस्त वक्त बताएगा मस्त होते हैं या पस्त

09:00 AM May 05, 2024 IST
फिर सियासी वादों की फेहरिस्त वक्त बताएगा मस्त होते हैं या पस्त
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आलोक पुराणिक
लेखक आर्थिक पत्रकार हैं।

चुनाव चल रहे हैं, चुनावी वादे चल रहे हैं। चुनावी घोषणा पत्र भी चल रहे हैं, चुनावी घोषणाएं भी चल रही हैं। कांग्रेस ने अपनी कही है, भाजपा ने अपनी कही और कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया यानी सीपीआई एम ने अपनी बात कही है। बातें तो लगातार होती हैं, कई पार्टियां कर रही हैं। पर इन तीन राजनीतिक दलों के घोषणापत्रों का खास महत्व है। भाजपा का घोषणापत्र इसलिए महत्वपूर्ण है कि सरकार इसी दल की है। कांग्रेस के घोषणापत्र का महत्व इस बात में निहित है कि कांग्रेस महत्वपूर्ण राजनीतिक दल है। कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया यानी सीपीआई एम के घोषणापत्र का महत्व इस बात में निहित है कि सीपीआई एम की वैचारिकी से अब भी इस देश के महत्वपूर्ण राजनीतिक विचार संचालित होते हैं। कांग्रेस का घोषणापत्र अपनी वैचारिकी में सीपीआई एम का सहचर ही लगता है। यह भी बहुत महत्वपूर्ण है कि कांग्रेस अपनी घोषणाओं और तेवरों में अधिकाधिक वामपंथी दिख रही है। हालांकि खुद वामपंथ के लिए चुनावी जीत-हार के लिहाज से अच्छा वक्त नहीं चल रहा है, पर वह अलग विषय है। फिलहाल ज्यादा बड़ा विषय है कि वामपंथ के विचार अगर चुनावी विजय की ओर लेकर नहीं जा रहे हैं, तो कांग्रेस ने उन्हें अपनाया क्यों है। दरअसल ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। कांग्रेस की वैचारिक सहचरता वामपंथ के साथ पुरानी है।

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कांग्रेस मेनिफेस्टो में असमानता की बात

कांग्रेस ने घोषणा की है कि महालक्ष्मी योजना के तहत 1 लाख रुपये हर गरीब परिवार को दिये जायेंगे। यह रकम परिवार की सबसे वृद्ध महिला के खाते में हस्तांतरित कर दी जायेगी। दरअसल, कांग्रेस पार्टी की चिंता गैर बराबरी पर बहुत गहरी है। कांग्रेस पार्टी का घोषणापत्र कहता है कि विकास दर के गिरने के कारण गरीब और मध्यवर्ग के तहत आने वाले लोगों का जीवन मुश्किल हो गया है। कांग्रेस पार्टी का घोषणापत्र बिल्कुल साफ तौर पर उस अध्ययन को उद्धृत करता है कि जो समाज में गैर बराबरी का विश्लेषण करता है। असमानता को लेकर इस अध्ययन से थामस पिकेटी जुड़े हैं। थामस पिकेटी फ्रेंच अर्थशास्त्री हैं और गैर बराबरी पर उनका अध्य़यन व्यापक है। पिकेटी की जिस रिपोर्ट को कांग्रेस पार्टी के घोषणापत्र में उद्धृत किया गया है उसका नाम है-इनकम एंड वेल्थ इनइक्वेलिटी इन इंडिया-1922-2023। इस मेनिफेस्टो में लिखा गया है कि नरेंद्र मोदी के राज में देश में गैर बराबरी अंग्रेजी राज की गैर बराबरी के मुकाबले ज्यादा हो गयी। कांग्रेस का घोषणापत्र आरोप लगाता है कि साल 2014 से 2023 के बीच गैर बराबरी बहुत ज्यादा बढ़ी है। अस्सी करोड़ लोग पांच किलो मुफ्त अनाज प्रति व्यक्ति ले रहे हैं यानी इससे पता लगता है कि हालात कितने खराब हैं।

बड़े मुद्दे के सियासी लाभ का सवाल

गैर बराबरी बड़ा मुद्दा है, पर यह कितना बड़ा चुनावी मुद्दा है, यह चिंतन वाला मुद्दा है। कुछ नामी कार्पोरेट घराने ही कमाकर ले गये इस देश से, बाकियों को कुछ न मिला- इस घोषणा पर राहुल गांधी लगातार काम रहे हैं। बड़े उद्योगपतियों को ही देश की आर्थिक नीतियों ने फायदा पहुंचाया है, बाकी लोग पीछे छूट गये हैं- यह उस किस्म का विचार है, जो सत्तर के दशक में वामपंथी चिंतन का मूल आधार हुआ करता था। सत्तर के दशक में प्रतिनिधि उद्योगपति पहले किसी और को बताया जाता था, अब किन्हीं अन्य का जिक्र करते हैं राहुल गांधी। यह मुद्दा कामयाब है या नहीं, इस सवाल का जवाब हाल के राज्य विधानसभा चुनावों के परिणामों से तलाशा जाये तो साफ होता है कि जनता के बीच यह मुद्दा उम्मीद के अनुसार काम नहीं कर रहा है। इसमें दो राय नहीं कि गैर बराबरी मुद्दा है, पर चुनावी राजनीति में इस मुद्दे के राजनीतिक लाभांश आम तौर पर हाल में नहीं आये हैं, यह बात भी साफ होती है। इस तरह के मुद्दों के सबसे बड़े चैंपियन, और बहुत लंबे अरसे तक, वामपंथी दल रहे हैं। ऐसे मुद्दों से चुनावी राजनीति में कुछ दलों की गति किसी से छिपी नहीं है, उनकी गति को अच्छी गति नहीं कहा जा सकता है। कांग्रेस ने 2019 के अपने घोषणापत्र में देश के गरीबतम 5 करोड़ परिवारों को 72000 रुपये साल की न्याय योजना का प्रस्ताव किया था। उस घोषणा को भी बहुत सकारात्मक चुनावी प्रतिसाद मिला, ऐसा दिखा नहीं। अब यह योजना नये रूप में एक लाख रुपये के स्तर पर पहुंच गयी है।

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वादे : कांग्रेस पार्टी की सरकार आने पर...

कांग्रेस का वादा है कि वरिष्ठ नागरिकों, विधवाओं, दिव्यांगों के लिए पेंशन में केंद्र सरकार का योगदान महज 200-500 रुपये प्रति माह का है। यदि सत्ता में आयी तो कांग्रेस विभिन्न वर्गों को दी जाने वाली पेंशन की इस राशि को बढ़ाकर न्यूनतम 1000 रुपये प्रतिमाह करेगी। इसके साथ ही कांग्रेस पार्टी वरिष्ठ नागरिकों के लिए सार्वजनिक परिवहन के साधनों रेल और सड़क में वह यात्रा छूट दोबारा लागू करेगी, जो पहले मिला करती थी। यूं तो अलग-अलग प्रकार की इन घोषणाओं के चुनावी लाभांश पर चार जून को परिणाम के दिन विचार करना वाजिब होगा। पर मोटे तौर पर कांग्रेस का घोषणापत्र ऐसा विचार पेश करता है, सरकार यह करेगी, सरकार वह करेगी। सरकार केंद्रित विचार मूलत: वामपंथी विचार है।

निजीकरण से आर्थिकी पर प्रभाव का विचार

सीपीआई एम का घोषणापत्र तो साफ तौर पर निजी क्षेत्र के प्रति सकारात्मकता को चिन्हित नहीं करता है। सीपीआई एम के घोषणापत्र में जो दर्ज है उसका आशय यह है कि देश में उद्योगों के विकास को लेकर मेड इन इंडिया वास्तव में भारत के संसाधनों के जायज दोहन की नीति नहीं रही है। सीपीआई एम का विचार है कि मौजूदा शासन के प्रतीक कारपोरेट-सांप्रदायिक गठजोड़ ने क्रोनी पूंजीवाद और राष्ट्रीय संपत्ति की लूट को बढ़ावा दिया है। सीपीआई एम का घोषणा पत्र आरोप लगाता है कि सरकार ने भारतीय अर्थव्यवस्था में निजीकरण की गति को तेज कर दिया है। सीपीआई एम का मूलत: मानना अब भी यही है कि निजीकरण से अर्थव्यवस्था का अहित होता है। दरअसल, यह वामपंथी विचार करीब आठ दशक से वैसा का वैसा ही है। कांग्रेस वामपंथी विचारों से चलकर आर्थिक व्यवस्था के उदारीकरण के रास्ते पर चली फिर वहीं पहुंच गयी, जहां वामपंथी आठ दशक पहले थे। पर वामपंथी चिंतन के राजनीतिक लाभांश इन दिनों आ नहीं रहे हैं। इसलिए यह देखना होगा कि इन विचारों का क्या चुनावी परिणाम आयेगा चार जून 2024 को।

सीपीआई एम के महंगाई, रोजगार के मसले

सीपीआई एम ने महंगाई का मुद्दा अपने घोषणापत्र में ज्यादा व्यवस्थित तरीके से उठाया है। उसके घोषणापत्र में लिखा है कि देश भर में महंगाई की दर लगभग छह प्रतिशत है और विशेष तौर पर खाद्य महंगाई दर 10 प्रतिशत से ज्यादा ही है। यह भी कि भारत का प्रति व्यक्ति जीडीपी कई देशों के बीच मुकाबले में कम है। सीपीआई एम के घोषणापत्र के अनुसार, मोदी सरकार की सबसे बड़ी विफलताओं में से एक है बेरोजगारी में भारी वृद्धि। मोदी सरकार ने हर साल दो करोड़ नौकरियों देने का वादा किया था। बेरोजगारी दर अगस्त 2023 में 8.1 प्रतिशत थी और युवा बेरोजगारी- 15-24 वर्ष में 23.22 प्रतिशत थी। सीपीआई एम ने अपने चुनावी घोषणापत्र में महंगाई और बेरोजगारी का अर्थशास्त्र बता दिया है। पर एक तथ्य यह है कि देश में इतनी बेरोजगारी के बावजूद आंदोलन धरने-प्रदर्शन नहीं दिखते, क्या कारण है कि बेरोजगार आंदोलन-धरने वगैरह के लिए नहीं निकलते। इस सवाल का जवाब यह है कि देश में बेरोजगारी के नहीं, रोजगार की गुणवत्ता के मसले हैं। देश में 15000-20000 प्रति माह की नौकरियां तो उपलब्ध हैं, पर गुणवत्ता वाली नौकरियां कम हैं। यह मुद्दा बड़ा मुद्दा है, पर राजनीतिक नजरिये से देखें, तो पूरे चुनाव को प्रभावित करने की सामर्थ्य इस मुद्दे में शायद ही दिखाई दे रही हो।

कल्याण योजनाएं

भाजपा का घोषणापत्र बताता है कि 80 करोड़ परिवारजनों को पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 2020 से मुफ्त राशन मिल रहा है। कुल 50 करोड़ से ज्यादा नागरिकों को पीएम जनधन खातों के माध्यम से बैंकिंग प्रणाली से जोड़कर अर्थतंत्र की मुख्यधारा में शामिल किया। वहीं 34 करोड़ नागरिकों को आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत 5 लाख रुपये तक मुफ्त इलाज की गारंटी मिली है। ऐसे ही 4 करोड़ परिवारों को पीएम आवास एवं अन्य योजनाओं के माध्यम से पक्के मकान देकर उनके जीवन स्तर को बेहतर बनाया गया। साथ ही 14 करोड़ परिवारों को जल जीवन मिशन के अंतर्गत नल से जल सुलभ हुआ। देश के 25 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले। करीब 11 करोड़ किसानों को पीएम किसान सम्मान निधि के अंतर्गत 6000 रुपये प्रति वर्ष सीधे उनके बैंक खातों में मिल रहे हैं। वहीं 4 करोड़ से ज्यादा किसानों को पीएम फसल योजना के माध्यम से आर्थिक सुरक्षा की गारंटी मिली।

लाभार्थी वोटर को संबोधन

भाजपा का घोषणापत्र अगर गहराई से देखें तो साफ होता है कि भाजपा उस वर्ग को संबोधित कर रही है, जिसे समानता की बात करने वाले दलों का वोटर होना चाहिए था। गरीब परिवारों को मुफ्त का अनाज, ये परिवार बराबरी लाने के वादे करने वाले दलों के वोटर होने चाहिए थे। भाजपा का घोषणापत्र एक तरह से अपने लाभार्थी वोटर को संबोधित कर रहा है और बता रहा है कि देखिये, हमने यह दिया, यह दिया, यह दिया। दरअसल एक बड़ा फर्क बाकी दलों के घोषणापत्रों और भाजपा के घोषणापत्र में यह है कि बाकी दल तो बता रहे हैं कि यह करेंगे व यह करेंगे। भाजपा का घोषणापत्र यह बता रहा है कि यह कर दिया है। भारतीय वोटर के लिए यह बहुत बड़ी बात है। क्या हुआ है जमीन पर, यह सवाल बहुत बड़ा सवाल है। यह करेंगे, वह करेंगे टाइप वादे दसियों पार्टियों के घोषणापत्रों का हिस्सा हैं। भाजपा का घोषणापत्र बहुत चतुराई से यह साफ करता है कि यह-यह किया जा चुका है। और फिर बताते हैं कि यह तो सब ट्रेलर है, असली फिल्म तो अभी बाकी है। स्टार्ट अप कारोबार के लिए भी कई घोषणाएं शामिल हैं भाजपा के घोषणापत्र में।

राजनीतिक रणनीतियों का फर्क

एक दल का घोषणापत्र उभरते भारत की तस्वीर पेश करता है। वहीं किन्हीं दूसरे दलों का घोषणापत्र ऐसे भारत की तस्वीर पेश करता है, जिसे सब कुछ सरकार से चाहिए, वह अपने बूते कुछ करने के लिए सक्षम नहीं है। यहां से राजनीतिक रणनीतियों के फर्क समझ में आते हैं। एक पार्टी उद्योग मित्र दिखना चाहती है और दूसरी विचारधारा के दल उद्योग जगत को नकारात्मक रोशनी में रखते हैं। कुल मिलाकर कांग्रेस और सीपीआईएम के घोषणापत्र भारत को वही देश दिखाते हैं, जो वह साठ और सत्तर के दशक में था। भाजपा चतुराई के साथ देश के विपन्न वर्ग को योजनाओं को लाभ पहुंचाकर लाभार्थी वर्ग पैदा करती है और मध्यवर्ग और उच्च मध्यवर्ग के लिए सपने सामने रखती है। परिणाम चार जून को आयेंगे तब साफ होगा कि जनता ने किसकी बात पर भरोसा किया है। पर एक बात साफ है कांग्रेस और सीपीआई एम का घोषणापत्र देखकर कि अतीत कहीं जाता नहीं है, फिर से लौट कर आ जाता है।

2019 के भाजपाई दस्तावेज में खेती की चिंता

भाजपा के 2019 के घोषणापत्र में साफ तौर पर खेती से जुड़ी चिंताएं दिखायी दीं। भाजपा ने 2019 में सरकार गठन के बाद किसान आंदोलनों का सामना किया। ठोस हल तो खेती-किसानी की समस्याओं का यही हो सकता है कि किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य मिल जाये। पर जो मूल्य किसानों के लिए ठीक होगा, वही उपभोक्ताओं के लिए महंगा मूल्य भी हो सकता है। प्याज के महंगे भाव किसान को लाभान्वित कर सकते हैं पर वही भाव उपभोक्ताओं को परेशान कर सकते हैं। प्याज के भावों ने सरकारें भी गिरायी हैं। प्याज या किसी भी कृषि उपज के भाव आसमान छूते हैं, तो किसान भले ही लाभान्वित हो, आम आदमी के लिए महंगाई मुद्दा बन जाता है। महंगाई बतौर मुद्दा किसी भी सरकार के लिए बहुत खतरनाक होता है। यह अनायास नहीं है कि भाजपा नेतृत्व वाली सरकार महंगाई को नियंत्रण में करती दिखती है। रिजर्व बैंक ने एक आदर्श महंगाई दर स्थापित की हुई है कि खुदरा महंगाई दर चार प्रतिशत से ऊपर नहीं जानी चाहिए। औसत महंगाई दर पांच प्रतिशत के आसपास रही है। खाद्य वस्तुओं की महंगाई से जनता परेशान भले ही हो, त्राहि-त्राहि करती हुई नहीं दिख रही है। इसके अलावा भाजपा ने छोटे किसानों के लिए साठ साल की उम्र के बाद पेंशन का भी प्रस्ताव किया था। साल 2019 में भाजपा का घोषणापत्र कहता था कि खेती, ग्रामीण क्षेत्र में 25 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया जायेगा। यह बहुत महत्वाकांक्षी लक्ष्य था। भाजपा सिर्फ किसानों को ही नहीं, छोटे कारोबारियों को भी पेंशन देने की घोषणा कर चुकी थी 2019 के घोषणापत्र में। भाजपा का घोषणापत्र साल 2019 में दावा करता था कि 2032 तक देश की अर्थव्यवस्था विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकती है। यह लक्ष्य तो समय से पहले पूरा होता दिख रहा है। फिर भी भाजपा को गैर बराबरी और बेरोजगारी से जुड़े उन सवालों के हल तलाशने होंगे, जो कांग्रेस और सीपीआई एम के घोषणापत्रों में उठाये गये हैं। सीपीआईएम या कांग्रेस के घोषणापत्र अंतत: राजनीतिक दस्तावेज हैं। ये राजनीतिक दल भले ही चुनाव न जीत पा रहे हों पर इसका मतलब यह नहीं है कि इनकी सारी बातें बेमानी ही हैं।

- आ. पु.

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