गांदरबल का जख्म
शांति बहाली हेतु हर संभव प्रयास करें
जम्मू-कश्मीर में विधानसभा के लिए शांतिपूर्ण ढंग से चुनाव संपन्न होने के बाद निर्वाचित सरकार की ताजपोशी का जश्न अभी पूरा भी नहीं हुआ था कि गांदरबल में आतंकियों ने कहर बरपा दिया। गांदरबल में हुए आतंकी हमले में एक सुरंग निर्माण स्थल पर काम करने वाले छह श्रमिकों और एक डॉक्टर की हत्या कर दी गई। इसमें संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है कि पाकिस्तान भारत, विशेषकर जम्मू-कश्मीर में अमन-चैन को नुकसान पहुंचाने की लगातार कोशिश करता रहेगा। चाहे कुछ भी हो, वह अपनी नापाक नीति से बाज नहीं आने वाला। यह कम चिंताजनक बात नहीं कि यह हमला इस्लामाबाद में शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन के दौरान विदेश मंत्री एस. जयशंकर और उनके पाकिस्तानी समकक्ष इशाक डार के बीच अनौपचारिक बातचीत के कुछ ही दिन बाद हुआ है। पिछले दिनों जम्मू-कश्मीर के लोगों ने उत्साहपूर्वक मतदान करके लोकतंत्र और शांति-विकास में अपनी गहरे विश्वास को अभिव्यक्त किया था। वहीं दूसरी ओर सुरक्षा बलों और खुफिया एजेंसियों ने शांतिपूर्ण मतदान व केंद्रशासित प्रदेश में सरकार बनने के बाद अपनी सतर्कता शायद कुछ कम कर दी होगी। कुछ महीनों पहले जम्मू क्षेत्र को लगातार हिंसा का शिकार बनाने वाले आतंकवादियों ने रणनीति बदलकर कश्मीर को फिर से निशाने पर ले लिया है। इन खतरनाक मंसूबों से आतंकवादियों ने सरकार व सुरक्षाबलों को चौंकाया है। इसमें दो राय नहीं कि आतंकवादियों ने यह साजिश सुनियोजित ढंग से की है। जहां इस हमले का मकसद एक बुनियादी ढांचा परियोजना को बाधित करके घाटी के विकास को बाधित करना है, वहीं अन्य राज्यों से आए श्रमिकों की हत्या करके भारतीय संघवाद के ढांचे पर भी चोट करना भी है। ताकि अन्य राज्यों के श्रमिक डर के कारण घाटी न आ सकें। ऐसे हालात में केंद्र तथा केंद्रशासित प्रदेश की सरकार को शांति और सामान्य स्थिति बहाल करने के लिये मिलकर कार्य करने की जरूरत है। निश्चित रूप से केंद्रशासित प्रदेश की अर्थव्यवस्था में योगदान देने वाले पर्यटकों और प्रवासी श्रमिकों को सुरक्षा को लेकर आश्वस्त करना जरूरी है।
यह नई बात नहीं है कि भारत पाकिस्तान को बार-बार आगाह करता रहा है ताकि वह आग से खेलने का काम न करे। बार-बार स्पष्ट किया गया है कि जब तक इस्लामाबाद तथा रावलपिंडी आतंकवदियों को भेजना व मदद करना बंद नहीं करते, तब तक द्विपक्षीय वार्ता शुरू नहीं की जा सकती। हाल ही में एससीओ में दोनों विदेश मंत्रियों की मुलाकात के बाद आस जगी थी कि दोनों के रिश्तों में लंबे समय से जमी बर्फ अब पिघलेगी। लेकिन ऐसा लगता है कि पाकिस्तान ने लगभग एक दशक बाद किसी भारतीय विदेश मंत्री की मेजबानी से प्राप्त होने वाले लाभ की संभावना को जल्द ही गंवा दिया है। पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को पिछले दिनों यह कहते हुए सुना गया था कि ‘हमने पिछले 75 साल खो दिए हैं और यह महत्वपूर्ण होगा कि हम अगले 75 साल न खोएं।’ हालांकि यह भी टकसाली सत्य है कि जब तक शरीफ बंधु पाकिस्तानी सेना को भारत में परेशानी पैदा करने से रोकने में असहाय रहेंगे, तब तक दोनों देशों के बीच बातचीत की कोई संभावना मुश्किल ही नजर आएगी। ऐसे में केंद्र व नवनिर्वाचित सरकार को सुरक्षा बलों के साथ आतंकवाद की इस नई चुनौती के खात्मे के लिये नई रणनीति पर काम करना होगा। वैसे कुछ समय पूर्व तक सुरक्षा बलों की सुनियोजित कार्रवाई में जीरो टॉलरेंस की नीति के कारण आतंकवादियों के हौसले पस्त हो गए थे। लेकिन अब जब विधानसभा चुनाव सफलतापूर्वक संपन्न हो चुके हैं तो सहयोग-सामंजस्य व वार्ता के दरवाजे भी खुले रखने पड़ सकते हैं। साथ ही इस संभावना पर भी विचार किया जाना चाहिए कि क्या इन आतंकवादियों के तार सीमा पार से संचालित ठिकानों से तो नहीं जुड़े हैं, जिन्हें पाकिस्तान के सत्ता प्रतिष्ठानों का संरक्षण व आर्थिक सहायता मिलती है। बहरहाल, जब इस केंद्रशासित प्रदेश में नवनिर्वाचित सरकार ने काम करना प्रारंभ कर दिया है तो केंद्र सरकार व सुरक्षाबलों के साथ तालमेल से इस चुनौती का मुकाबला हेतु नये सिरे से विचार किया जाना जरूरी है।