ऊंची दीवार के पीछे भावनाओं का संसार
केवल तिवारी
जीवन के स्याह-पक्ष में उम्मीद की किरण जगाने में जुटीं वरिष्ठ पत्रकार वर्तिका नंदा लंबे समय से उन प्रतिभाओं को भी मंच उपलब्ध करा रही हैं जिनकी दुनिया ऊंची दीवारों और मजबूत सलाखों के पीछे ही सिमट कर रह गई है। कोई सलाखों के पीछे क्यों गया, इसकी विस्तृत पड़ताल में तो अनेक किंतु-परंतु निकलेंगे, लेकिन असल में उनके दिल और दिमाग में क्या है इसे परखना और इसका मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करना सच में दुरुह कार्य है। इससे भी जटिल है उनकी भावनाओं को समझ कर उन्हें उकेर सकने की कोशिश करना।
पत्रकारिता की पाठशाला की नामचीन शिक्षिका वर्तिका एवं विमला मेहरा के शब्द फूटे हैं और ‘तिनका तिनका तिहाड़’ नामक पुस्तक के रूप में हमारे सामने हैं। संयोग से मुझे इससे पहले पुस्तक ‘तिनका तिनका डासना’ भी पढ़ने को मिली है। आलोच्य पुस्तक में जैसा कि लेखिका द्वय ने लिखा ही है ‘कारागार में कलम’, इस किताब की हर पंक्ति भावुक कर देती है। दो पंक्तियों पर गौर फरमाइये : ‘जिंदगी का साज भी क्या खूब साज है बज तो रहा है, मगर बेआवाज है।’
कविताएं ही नहीं, किताब में दी गई तस्वीरें और उनके कैप्शन भी पाठक को बांध लेते हैं। शून्य में निहारने को मजबूर कर देते हैं। महिला कैदियों की बात, चावल बीनती, मिठाई बनाती, कुछ तो चल रहा होगा मन में। यूं ही तो कोई यहां नहीं आ जाता। तभी तो लेखिका द्वय कहती हैं, ‘हार-जीत में एक साज होता है हर गुनाह के पीछे एक राज होता है।’ डायरी लिखने वाली भारती की कहानी हो या फिर रिया शर्मा और उसके पति की। गनीमत है कि जेल में बंद दोनों का आपस में प्रेम-भाव बना हुआ है। किताब ‘तिनका तिनका तिहाड़’ तमाम रसों का संयोग है, जहां अंततः भावनाओं का ही ज्वारभाटा फूटता है। किताब के अंत में तिनका-तिनका के बारे में भी संक्षिप्त जानकारी दी गई है। किताब पठनीय है।
पुस्तक : तिनका तिनका तिहाड़ लेखिका : वर्तिका नंदा एवं विमला मेहरा प्रकाशक : तिनका-तिनका फाउंडेशन पृष्ठ : 152 मूल्य : रु. 399.