पैकेजिंग के पर्यावरण अनुकूल विकल्प तलाशती दुनिया
प्लास्टिक का उपयोग दुनियाभर में बीते वर्षों में बहुत तेजी से बढ़ा है। पूरे विश्व में हर साल करीब पांच सौ बिलियन प्लास्टिक बैग का उपयोग किया जाता है। गत्ता, टिन, कागज आदि परंपरागत पैकेजिंग पदार्थों का स्थान अत्यंत हल्की और पतली प्लास्टिक ने ले लिया है। अब यही प्लास्टिक धरती के लिए बड़ी पर्यावरण चुनौती बन रहा है। जल और जमीन पर रहने वाले जीव-जंतुओं के जीवन के साथ भी प्लास्टिक की थैलियां बड़ा खिलवाड़ कर रही हैं। पॉलीथीन थैलियां नालियों-सीवरों को जाम करने के साथ-साथ हर साल बाढ़ का भी बड़ा कारण बनती हैं। ये थैलियां मिट्टी की उपजाऊ क्षमता को नष्ट कर इसे विषैला बना रही हैं, वहीं मिट्टी में इनके दबे रहने के कारण मिट्टी के पानी सोखने की क्षमता भी कम होती जा रही है, जिससे भूजल स्तर पर असर पड़ रहा है। चाय, चिप्स, सब्जियां, भोजन इत्यादि बहुत सारी खाद्य वस्तुओं को पॉलिथीन में पैक किया जाता है, जो कई तरह की बीमारियों को जन्म दे सकते हैं। दरअसल, पॉलिथीन कई प्रकार के रूप-रंगों में आती हैं, जिन्हें इन रूपों में ढालने के लिए कई तरह के हानिकारक रसायनों का इस्तेमाल होता है।
ऐसे ही घातक दुष्प्रभावों को देखते हुए प्रतिवर्ष 3 जुलाई को ‘अंतर्राष्ट्रीय प्लास्टिक बैग मुक्त दिवस’ मनाया जाता है, जो सिंगल-यूज प्लास्टिक बैग की खपत को कम करने पर केन्द्रित वैश्विक आंदोलन है। वर्ष 2008 में जीरो वेस्ट यूरोप ने 3 जुलाई को एकल-उपयोग प्लास्टिक बैग के खिलाफ अभियान शुरू किया था। भारत सहित कई देश अब प्लास्टिक की थैलियों पर प्रतिबंध लागू कर चुके हैं। प्लास्टिक के दुष्प्रभावों को देखते हुए ऐसे पर्यावरण अनुकूल विकल्प खोजे जा रहे हैं, जिससे प्लास्टिक बैग तथा अन्य प्लास्टिक उत्पादों पर निर्भरता न्यूनतम हो सके। कई देशों में वैज्ञानिकों द्वारा सुरक्षित पर्यावरण की दृष्टि से पैकेजिंग के लिए भी प्लास्टिक के पर्यावरण अनुकूल बेहतर विकल्पों की खोज जारी है।
देश्ा में खाने की पैकेजिंग में प्लास्टिक की थैलियों के उपयोग को न्यूनतम करने के उद्देश्य से ही पिछले कुछ समय में केले, ताड़ और ऐसे ही बड़े पत्तों का इस्तेमाल कर फूड पैकेजिंग तैयार करने के स्टार्टअप सामने आए हैं। विदेशों में भी वैज्ञानिकों द्वारा फूड पैकेजिंग के लिए प्लास्टिक का अच्छा और सस्ता विकल्प ढूंढ़ने के प्रयास जारी हैं। डेनमार्क के वैज्ञानिक फूड पैकेजिंग के लिए प्लास्टिक की जगह घास के रेशों का इस्तेमाल करने पर काम कर रहे हैं। दरअसल, घास के रेशे सौ फीसदी बायोडिग्रेडेबल और डिस्पोजेबल हैं, जिनसे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होता। चूंकि घास से बनी डिस्पोजेबल पैकेजिंग सौ प्रतिशत बायोडिग्रेडेबल होगी, ऐसे में यदि कोई इसे इस्तेमाल के बाद बाहर भी फेंक देगा, तब भी यह स्वतः ही नष्ट हो जाएगी।
डीआरडीओ द्वारा कुछ समय पहले दो निजी संस्थाओं के साथ साझेदारी में प्लास्टिक बैग के इस्तेमाल को कम करने के उद्देश्य से प्राकृतिक और पौधों पर आधारित फूड ग्रेड सामग्रियों से पर्यावरण अनुकूल पैकेजिंग बैग विकसित किए गए। यह सिंगल यूज प्लास्टिक के बेहतरीन विकल्प के रूप में तैयार किए गए बैग न केवल टिकाऊ बल्कि किफायती भी हैं। इनसे पर्यावरण को कोई नुकसान भी नहीं होगा और तीन महीनों में ही ये प्राकृतिक रूप से गल सकते हैं। डीआरडीओ के मुताबिक ये बायोडिग्रेडेबल बैग बनाते समय इनकी क्षमता और प्राकृतिक रूप से गलने जैसे फैक्टर्स का ध्यान रखा गया।
इस्राइल का एक स्टार्टअप ‘ट्रिपलडब्ल्यू’ खाद्य अपशिष्ट को उपयोगी बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है। ट्रिपल डब्ल्यू की तकनीक मौजूदा संयंत्रों को संशोधित कर उन्हें खाद्य अपशिष्ट से लैक्टिक एसिड बनाने में सक्षम बनाती है, जिसका उपयोग पेय पदार्थों तथा व्यक्तिगत देखभाल जैसे क्षेत्रों में किया जाता है और ‘पॉलीलैक्टिक एसिड’ नामक जैव-आधारित प्लास्टिक के निर्माण में भी इसका इस्तेमाल होता है।
जर्मन स्टार्टअप ‘ब्लूकॉन बायोटेक’ ने जैव-प्लास्टिक के लिए लैक्टिक एसिड उत्पादन की नई तकनीक विकसित की है। इसमें पराली, कपास और चुकंदर की खोई का उपयोग कर जैव-प्लास्टिक को और अधिक टिकाऊ और पेट्रोलियम आधारित प्लास्टिक के मुकाबले किफायती बनाया जाता है। इसी प्रकार एक कनाडाई स्टार्टअप इन दिनों पौधों से प्लास्टिक का उत्पादन करता है, जिसे पारंपरिक प्लास्टिक की तुलना में कम ऊर्जा का उपयोग कर और कम कचरा पैदा करते हुए बनाया जाता है। इसकी विशेषता यह है कि यह आसानी से खाद में परिवर्तित हो सकता है, जिससे यह लैंडफिल में जाने से बच जाता है।
बहरहाल, हम अपने जीवन से प्लास्टिक को भले ही पूरी तरह नहीं हटा सकते लेकिन इसके वैकल्पिक समाधानों को अपने जीवन में स्थान देकर पर्यावरण संरक्षण में मददगार अवश्य बन सकते हैं।