मुख्य समाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकी रायफीचर
Advertisement

उंगलियों के करिश्मे से हैरत में दुनिया

06:42 AM Aug 10, 2023 IST

शमीम शर्मा

Advertisement

वे दिन गये जब आप किसी को उंगलियों पर नचा लेते थे क्योंकि आपकी उंगलियां इशारे करने में सक्षम थीं। अब तो उंगलियों ने इशारेबाजी छोड़ दी है। वे अब एक ही झटके में डिलीट कर देती हैं। उंगलियों के इस खेेल में कई बार इतनी महत्वपूर्ण पोस्ट और प्रेम-प्यार के रिश्ते-नाते डिलीट हो जाते हैं कि चाह कर भी दोबारा नहीं उकेरे जा सकते। इसके बाद तो एक-दूसरे पर उंगली उठाने का सिलसिला शुरू हो जाता है।
किसी ने सोचा भी नहीं था कि उंगलियां लैपटॉप के कीबोर्ड या मोबाइल पर धड़ाधड़ नृत्य करेंगी और एक नया संसार रच देंगी। छोटे-छोटे बच्चों की उंगलियां भी मोबाइल पर यूं घूमती हैं जैसे कत्थक में पारंगत नर्तक लगातार गोल-गोल घूम रहा हो। लगता है आज की बाल पीढ़ी जन्म से पहले ही मोबाइल का प्रशिक्षण लेकर आई है। हो सकता है कि गर्भावस्था के दौरान माताओं ने मोबाइल पर हाथ चलाये होंगे और गर्भस्थ शिशु प्रशिक्षित हो गया हो। ठीक वैसे ही जैसे अभिमन्यु युद्ध की व्यूहरचना गर्भ में सीख कर ही जन्मा था।
मानव शरीर में कोई भी अंग दो से ज्यादा नहीं हैं पर उंगलियां पूरी पांच हैं। तभी तो सफल व्यक्ति के लिये कहा जाता है कि उसकी तो पांचों उंगलियां घी में हैं। यूं तो किसी भी अंग के बिना काम नहीं चलता पर मानव को सभ्य बनाने और सुविधापूर्ण जीने में उंगलियों की भूमिका सर्वाधिक आंकी जानी चाहिये। कभी उंगलियां कानों में घुसकर श्रवणतंत्र को संभालती हैं तो कभी शादी के बंधन की प्रतीक अंगूठी के बोझ को आजीवन उठाये घूमती हैं।
आदमी और जानवर में सबसे बड़ा फर्क है कि इंसान को अपनी उंगलियों की क्षमता का आभास है जबकि उन पशु-पक्षिओं को नहीं जिनके पास उंगलियां भी हैं। उंगलियों के बल पर खाने के स्वाद से लेकर कला, क्रीड़ा, करतब, कलम, संगीत, साहित्य और नृत्य की भाव-भंगिमाओं द्वारा मनुष्य ने स्वयं को प्राणी जगत में सर्वश्रेष्ठ सिद्ध किया है। भाषा के आदि रूप में भी अवश्य ही उंगलियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी होगी क्योंकि इन्हीं के माध्यम से संकेत और संवाद संभव हुआ होगा।
000
एक बर की बात है अक वोट दिये पाच्छै नत्थू की आंगली पै सुरजे नैं स्याही लगाई तो वो पूच्छण लाग्या- हां रै! या स्याही कितणेक दिन चाल्लैगी? सुरजा बोल्या- ताऊ! कम तैं कम चार महीन्ने लाग्गैंगे इसनैं उतरण मैं। नत्थू अपणा सिर आग्गै नैं करते होये बोल्या- तो ले फेर मेरे सिर मैं भी लगा दे, या डाई तो बड़ी मुश्कलां तैं बीस ए दिन चाल्लै है।

Advertisement
Advertisement