शैक्षिक परिदृश्य के स्याह सच की श्वेत तस्वीर
अरुण नैथानी
अभय मोर्य शैक्षिक जगत की अंतर्राष्ट्रीय हस्ती हैं। भारत में उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद मास्को विश्वविद्यालय से रूसी भाषा में पीएचडी करने के बाद भारत समेत दुनिया के कई देशों में अध्यापन करते रहे हैं। वे अंग्रेजी और विदेशी भाषा केंद्रीय विश्वविद्यालय, हैदराबाद के संस्थापक कुलपति रहे हैं। डॉ. अभय ने देश में विदेशी भाषाओं से जुड़े अनेक विभागों में दायित्व निभाने के साथ ही फिनलैंड आदि देशों में भाषायी संवर्धन से जुड़ी संस्थाओं में दायित्व निभाए। रूसी राष्ट्रीय शिक्षा अकादमी के अकादमिक भी चुने गए। वे स्थापित साहित्यकार भी हैं। करीब 15 पुस्तकों में, उनका पहला उपन्यास अंग्रेजी में ‘फॉल ऑफ ए हीरो आया।’ फिर हिंदी में ‘युगनायिका’, ‘मुक्ति-पथ’ और ‘त्रासदी’ उपन्यास आए। उन्हें रूसी भाषा के अंतर्राष्ट्रीय संघ ने उच्चतम सम्मान ‘अलिक्सांद्र पूश्किन’ मेडल से नवाजा है। मूल रूप से हरियाणा के डॉ. अभय को कालांतर में हरियाणा साहित्य अकादमी ने हरियाणा गौरव सम्मान दिया।
अपने शैक्षिक जगत और विश्वविद्यालयों के व्यापक अनुभवों के आधार पर उन्होंने हाल ही में एक उपन्यास सीधे-सपाट शीर्षक से लिखा है– ‘हमारे विश्वविद्यालय।’ जैसा शीर्षक से बोध होता है उपन्यास की कथा-वस्तु हमारे विश्वविद्यालयों में पैठ बनाती राजनीति, शैक्षिक स्तर का पराभव, गुरुजनों की गुरुता में गिरावट तथा वि.वि. प्रशासन में वर्चस्व से जुड़ी तिकड़मों पर केंद्रित है। हाल के वर्षों में देश के चर्चित विश्वविद्यालयों के परिसरों में राजनीतिक विचारधारा के वर्चस्व के चलते उपजे हिंसक संघर्ष व अकादमिक स्वतंत्रता के अतिक्रमण के जीवंत चित्र रचनाकार ने उपन्यास में उकेरे हैं। विश्वविद्यालय परिसर में छात्रोन्मुखी शैक्षिक व प्रशासनिक नीतियां लागू करने में एक आदर्श-ईमानदार कुलपति को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, उसके बोलते चित्र उपन्यास में नजर आते हैं।
रचनाकार व्यापक अनुभवों से बताते हैं कि शिक्षकों से लेकर कुलपति की नियुक्तियों में किस तरह राजनीतिक हस्तक्षेप होता है, छुटभैये नेताओं की दखल से कैसे शिक्षा माफिया पनपता है, समाज की प्रतिगामी व रूढ़िवादी ताकतें किस तरह दखल देती हैं। उपन्यास का नायक प्रो. अजय नायडू कद-काठी, आकर्षक व्यक्तित्व और छात्र कल्याण के लिये प्रतिबद्ध कुलपति के रूप में डॉ.अभय मोर्य से साम्य रखता है। उपन्यास से गुजरते हुए लगता है कि रचनाकार ने भोगे यथार्थ को शब्दों में पिरोया है। उपन्यास में रूस में अध्ययन के अनुभव, रूसी भाषा के मुहावरे और उक्तियां रचना को समृद्ध बनाती हैं।
उपन्यास में ग्रे चरित्र वाले माफिया सरगना बिजलानी, शोधरत छात्राओं का दैहिक शोषण करने वाला खलनायक चक्राकर स्वयंसेवक कथानक को विस्तार देते हैं तो शिक्षक राजपाल व प्रेमवती के अंतर्जातीय विवाह के लिए संघर्ष बदलाव की आहट है। दलित छात्र ज्ञानप्रकाश का जाति व्यवस्था से संघर्ष और टूटन सामाजिक न्याय के प्रश्न उठाता है। कुल मिलाकर उपन्यास शैक्षिक जगत की विद्रूपताओं से रूबरू कराता है।
पुस्तक : हमारे विश्वविद्यालय उपन्यासकार : प्रो. अभय मोर्य प्रकाशक : विजया बुक्स, नवीन शाहदरा, दिल्ली पृष्ठ : 208 मूल्य : रु. 395.