बंजर धरती को भी उपजाऊ बनाएगा थर्मल प्लांटों का कचरा
रमेश सरोए/ हप्र
करनाल, 19 जून
अच्छी सोच और सही शोध से कचरा भी सोना बन सकता है। ऐसे ही एक शोध का परिणाम है कि अब कोयले से चलने वाले थर्मल प्लांटों से निकले कचरे से बना जिप्सम किसानों के लिए वरदान साबित होगा। वैज्ञानिकों की इस ऐतिहासिक सफलता से देश की 3.77 मिलियन हेक्टेयर क्षारीय भूमि में सुधार संभव हो सकेगा। यानी इसके जरिये देशभर के लाखों किसानों की फसलें लहलहाएंगी। यही नहीं क्षारीय यानी बंजर टाइप भूमि पर भी बढ़िया खेती हो सकेगी।
यह सब हो पाया है केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान, करनाल के वैज्ञानिकों की बदौलत। उन्होंने पहली बार कोयले से चलने वाले थर्मल प्लांटों से निकले वेस्ट फ्लू गैस डि सल्फराइजेशन जिप्सम के कृषि में उपयोग में सफलता हासिल की है। इसके लिए वैज्ञानिकों ने तीन साल कड़ी मेहनत की। नयी शोध को भारत सरकार के पास भेजा जाएगा ताकि कोयले से चलने वाले थर्मल प्लांटों से निकले कचरे से बने जिप्सम को किसानों तक पहुंचाया जा सके। दावा है कि किसान जिप्सम का प्रयोग करने से बंजर भूमि से 2.5 से 3 गुणा तक फसल पैदा कर सकेंगे। यही नहीं वेस्ट कचरे के कारण पर्यावरणीय नुकसान भी नहीं हो पाएगा। वैज्ञानिकों के मुताबिक जिप्सम का प्रयोग पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश में किया जा चुका है। इन प्रयोगों से क्षारीय भूमि में लगाई गई गेहूं और धान की फसल में 3 गुणा तक वृद्धि हुई। वैज्ञानिकों के मुताबिक जिप्सम की देशभर में भारी कमी है। अभी तक खदानों से ही इसे लिया जाता रहा है। खदानों वाला जिप्सम गुणवत्ता के लिहाज से अच्छा नहीं होता। उनके मुताबिक एफजीडी जिप्सम की क्वालिटी 90 प्रतिशत से भी अधिक है। यहीं नहीं वैज्ञानिकों का दावा है कि कचरे से बने जिप्सम के रेट बाजारों में मिलने वाले जिप्सम से काफी कम होंगे। गौर हो कि क्षारीय जमीन उसे कहते हैं जहां लवण यानी नमकीन तत्व ज्यादा होते हैं। शुष्क जलवायु वाले स्थानों में यह लवण श्वेत या भूरे-श्वेत रंग के रूप में मिट्टी पर जमा हो जाता है। यह मिट्टी पूर्णतया अनुपजाऊ एवं ऊसर होती है और इसमें शुष्क ऋतु में कुछ खर पतवार के अलावा और कुछ नहीं उगता। अब जिप्सम के जरिये ऐसी मिट्टी को उपजाऊ बनाया जा सकेगा।
अभी निर्माण कार्य में होता है प्रयोग
वैज्ञानिक डॉ. पारुल सुन्धा ने बताया कि थर्मल प्लांटों से निकले जिप्सम का उपयोग अब तक भवन निर्माण सामग्री आदि में किया जाता है। अब इस जिप्सम का प्रयोग क्षारीय भूमि में सुधार के लिए किया जा सकेगा। उन्होंने कहा कि संयुक्त रूप से क्षारीय मृदा में सुधार व भारी धातुओं के संभावित प्रभाव का अध्ययन करने के लिए सहभागी परियोजना शुरू की गई थी। उन्होंने कहा कि 3 साल पहले नेशनल थर्मल पावर प्लांट, मध्य प्रदेश के प्रतिनिधि संस्थान में आए और उन्हें वेस्ट जिप्सम के बारे में बताया। एक करोड़ रुपए की लागत का प्रोजेक्ट 2020 में तैयार किया गया, जो तीन साल 2023 में सफल हो पाया। यह शोध कार्य संस्थान के निदेशक डॉ. आरके यादव के दिशा-निर्देश में डॉ. पारुल सुन्धा, डॉ. अरविंद कुमार राय, डॉ. निर्मलेंदु बसाक और डॉ. राज मुखोपाध्याय ने संयुक्त रूप से संपन्न किया ।
नुकसानदायक को बनाया फायदेमंद
वैज्ञानिक डॉ. पारुल सुन्धा ने बताया कि थर्मल प्लांटों से निकली सल्फर डाईऑक्साइड पर्यावरण के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए काफी नुकसान दायक साबित हो रही थी। इसे देखते हुए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के नए नियम के अनुसार कैल्शियम कार्बोनेट और पानी के घोल को सल्फर डाई आक्साइड पर स्प्रे करने के बाद एफजीडी जिप्सम बनता है।