मुकम्मल मीडियामैन कमलेश्वर की दृष्टि
आलोक पुराणिक
एक वक्त था, जब साहित्यकारों की इज्जत मीडिया जगत में होती थी। बल्कि एक वक्त तो वह था कि साहित्यकारों को ही संपादक पद पर नियुक्ति मिलती थी। बड़े अखबारों, पत्रिकाओं के संपादक बड़े साहित्यकार हुए हैं। अज्ञेय, मनोहरश्याम जोशी, रघुवीर सहाय समेत लंबी सूची है।
वक्त बदलकर यह आया है कि साहित्यकारों के लिए मीडिया और खासकर टीवी मीडिया के दरवाजे तो बंद हैं ही, खास तौर पर टीवी मीडिया का तो माहौल भी ऐसा हो गया है कि कोई संवेदनशील बंदा काम करने में अड़चन महसूस करेगा। एक वक्त था टीवी मीडिया के पास कमलेश्वर सरीखे साहित्यकार थे और उनका पत्रकारिता का कद भी बहुत ऊंचा था।
जिंदगी के सबक बहुत सीखे थे कमलेश्वर ने, इसलिए उनके व्यक्तित्व-कृतित्व में गहराई आ गयी थी। जिंदगी जब सिखाती है, तो प्रैक्टिकल सिखाती है। दुखों और आंसुओं के महामार्ग पर चलकर परिपक्वता की मंजिल मिलती है। कमलेश्वर ने प्रूफ रीडिंग की, साइनबोर्ड पेंटिंग की, साहित्यिक पत्रिका का संपादन किया। चाय गोदाम की चौकीदारी भी की। आकाशवाणी और टीवी के लिए काम किया। समग्र मीडिया की समझ तब आती है, जब प्रिंट और टीवी दोनों तरह के मीडिया में अनुभव कोई बंदा हासिल कर ले। मीडिया करते की विद्या है यानी सिर्फ किताबी ज्ञान से इसे नहीं सीखा जा सकता है। फील्ड में उतर डूबना होता तब सच्चा मीडिया ज्ञान हासिल होता है। जिंदगी ने बहुत संघर्ष कराये कमलेश्वर से, सो वहां सिखाई बहुत हो गयी। समाज को आखिरी आदमी के नजरिये से देखना आ गया।
परिक्रमा टीवी कार्यक्रम ने टीवी माध्यम को ऐतिहासिक गहराई दी। वर्ष 1972 में बंबई दूरदर्शन केंद्र खोला गया था। यहां परिक्रमा कार्यक्रम शुरू किया गया। इस कार्यक्रम के केंद्र में आम आदमी की परेशानियां होती थीं। इस कार्यक्रम का जबर्दस्त असर रहा। गटर में काम करने वाले, चने बेचने वाले, चौकीदार, सब्जी वालों की व्यथाओं को आवाज दी गयी परिक्रमा में।
साहित्यकार के पास एक गहराई होती है, जिसका इस्तेमाल अगर टीवी माध्यम के लिए हो जाये, टीवी संवर जाता है। टीवी मूलत: एक गैर-गंभीर माध्यम है। जिसके बारे में कहा जाता है कि मूलत: ड्रामा और मनोरंजन से ही काम चलाया जाता है इसमें। पर इसे अगर गंभीर दृष्टि संपन्न चेतना मिल जाये, तो फिर टीवी देश के आम आदमी को खास स्वर दे सकता है, ऐसा परिक्रमा कार्यक्रम ने बताया।
मुकम्मल मीडियामैन होना आसान नहीं होता। बहुत कम मुकम्मल मीडियामैन हैं। कमलेश्वर उनमें से एक थे। मीडिया कर्मियों को डॉ. आनंद शर्मा की किताब मीडियामैन कमलेश्वर को पढ़ना चाहिए ताकि दृष्टि, गंभीरता और साहित्य के योगदान को मीडिया में समझा जा सकते।
पुस्तक : मीडियामैन कमलेश्वर लेखक : डाॅ. आनंद शर्मा प्रकाशक : संजय प्रकाशन, दिल्ली पृष्ठ : 314 मूल्य : रु. 950.