बेमिसाल इंदौर
इंदौर ऐसा स्वच्छ शहर है, जिसका जिक्र आने पर सफाई, स्वाद और सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर के कई किस्से सुनाए जाते हैं। लगातार 7 बार देश में स्वच्छता में अव्वल रहना आसान बात नहीं। लेकिन, यह कमाल इंदौर लगातार कर रहा है। यहां के मेयर का दावा है कि हम 2024 में भी आठवीं बार स्वच्छता ख़िताब जीतेंगे। शहर की शुद्ध हवा भी मिसाल है, जिसके लिए कई जतन किए गए। लकड़ी के तंदूर नहीं जलते और न सार्वजनिक कचरा जलाने की इजाजत है। निगम प्रशासन ही नहीं बल्कि हर नागरिक सफाई के प्रति सजग है।
हेमंत पाल
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
एक नियोजित शहर की संरचना के साथ उसे लेकर एक सोच भी विकसित होती है। शहर में रहने वाले उसके स्वच्छ होने, शुद्ध हवा होने, स्मार्ट होने और व्यवस्थित होने की भी कल्पना करते हैं। इस नजरिये से देखा जाए, तो इंदौर ऐसी सारी उम्मीदों पर खरा उतरता है। लगातार 7 साल तक देश में सबसे स्वच्छ शहर का ख़िताब हासिल करना आसान नहीं होता, लेकिन इंदौर ने यह कमाल किया। अब यह शहर उससे भी आगे निकल गया। इसे देश का सबसे शुद्ध शहर भी चुना गया। इसका आशय है कि यहां की हवा में शुद्धता है। बात यहीं ख़त्म नहीं होती। इंदौर को देश के सबसे स्मार्ट शहर के रूप में भी चुना गया। केंद्र सरकार ने जो ‘इंडिया स्मार्ट सिटी पुरस्कार 2022’ की घोषणा की, उसमें इस शहर ने ‘बेस्ट नेशनल स्मार्ट सिटी’ का अवॉर्ड जीता। ये तो वे अवॉर्ड हैं, जो इंदौर ने मुकाबले में जीते। वास्तव में तो ये शहर अपनी तरह का अनोखा शहर पहले ही है। यहां की सांस्कृतिक विरासत, स्वादिष्ट व्यंजन, लता मंगेशकर जैसी स्वर साम्राज्ञी की जन्मस्थली और जाने-माने अभिनेता सलमान खान के शहर का किसी से कोई मुकाबला नहीं। यहां के खानपान का जिक्र दुनियाभर में होता है।
केंद्र सरकार ने जब इंदौर को लगातार सातवीं बार देश के सबसे स्वच्छ के ख़िताब के लिए चुना, तो किसी को आश्चर्य नहीं हुआ। क्योंकि, इंदौर जितनी सफाई देश के किसी भी हिस्से में नहीं है। नगर निगम ने यहां सफाई का जो मॉडल विकसित किया, वो है कचरे का सही तरीके से निपटारे का सिस्टम। यह शहर स्वच्छता से निकले कचरे को बेचकर भी करोड़ों रुपए कमा रहा है। इसे कचरा पेटी मुक्त शहर का तमगा भी हासिल है। यहां रहने वाली 40 लाख से ज्यादा की आबादी रोजाना करीब 1,200 टन सूखा और 700 टन गीला कचरा डिस्चार्ज करती है। इससे सीएनजी गैस बनाई जाती है, जिससे नगर निगम की सिटी बसें दौड़ती हैं। सात बार स्वच्छता में अव्वल आने वाले इस शहर को शुद्ध आबोहवा वाला शहर भी चुना गया। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने ‘स्वच्छ वायु सर्वेक्षण 2023’ में इंदौर को पहले स्थान पर रखा। दस लाख से अधिक की आबादी वाले शहरों में इंदौर ने पहला स्थान बनाया। इस शहर की आबोहवा शुद्ध करने के लिए 3 साल में करीब 200 करोड़ रुपए खर्च किए गए तभी इंदौर वायु गुणवत्ता सूचकांक यानी एक्यूआई 100 अंक से नीचे रखना संभव हुआ है।
वास्तव में तो यह चुनौती सबसे बड़ी थी। शहर को स्वच्छ-स्मार्ट बनाया जा सकता है, पर आबोहवा की शुद्धता लम्बी मेहनत के अलावा रणनीति से ही संभव है। इंदौर ने आबोहवा सुधारने के लिए शहर में रोज मशीनों से सड़कों की सफाई की। नगर निगम ने ई-व्हीकल को बढ़ावा देना शुरू किया। करीब 20 ई-चार्जिंग स्टेशन बनाए गए। साइकिल सुविधा भी शहर में उपलब्ध कराई गई। सिटी बसें सीएनजी और इलेक्ट्रिसिटी से चलाई जा रही है। वायु शुद्धता जांच के लिए शहर के मार्गों पर करीब 100 मॉनिटरिंग मशीनें लगाई गई। दो मॉनिटरिंग स्टेशन भी बनाए गए हैं, जो शहर के प्रदूषण पर नजर रखते है। चौराहों पर डिस्प्ले बोर्ड लगाए गए।
बेस्ट नेशनल स्मार्ट सिटी
इसके अलावा इंदौर को अभी एक और उपलब्धि हासिल हुई, वो है ‘बेस्ट नेशनल स्मार्ट सिटी’ का अवॉर्ड। केंद्र सरकार ने ‘इंडिया स्मार्ट सिटी पुरस्कार 2022’ की घोषणा की, जिसका अवॉर्ड भी इंदौर को मिला। सूरत और आगरा क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे। देश के 100 स्मार्ट शहरों में भी इंदौर के अव्वल रहने के पीछे यहां की स्वच्छता-शुद्धता का बड़ा योगदान है। देश में स्मार्ट शहर के चुनाव के लिए लिए कुछ पैरामीटर प्रदर्शित करने होते हैं। ये हैं बढ़िया इंटरनेट कनेक्टिविटी, अच्छा बुनियादी ढांचा, सुगम परिवहन और सुरक्षित कानून-व्यवस्था। स्मार्ट शहर को साइबर दक्षता और डेटा सुरक्षा के बारे में भी जागरूक होना जरूरी है। इंदौर ने पिछले साल सूरत के साथ मिलकर विजेता के रूप में स्मार्ट सिटी का साझा पुरस्कार जीता था।
सोलर सिटी बनाने के प्रयास
अब इंदौर को सोलर सिटी बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। इसके लिए घरों और दफ्तरों का सर्वे करके बताया जाएगा कि उनकी छत पर सोलर पैनल लगाने से कितनी बिजली बचेगी और क्या फायदे होंगे। बैंक से मिलने वाली सब्सिडी और कर्ज की जानकारी भी जाएगी, ताकि लोग प्रेरित हों। इसके अलावा फ्लाईओवर के नीचे के बोगदा को विकसित कर वहां के लिए उपयोगी प्रोजेक्ट भी तैयार किए जा रहे है। शहर के कुछ स्मारक और पार्क भी विकसित किए जा रहे हैं। अगले साल तक स्मार्ट सिटी कॉर्पोरेशन इंटीग्रेटेड ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम (आईटीएमएस) लागू करने की तैयारी भी कर रहा है। जिस तरह से इंदौर को अपने प्रयासों में सफलता मिल रही है, उसमें शहर प्रशासन के साथ ही यहां के निवासियों का भी योगदान है।
स्वाद में भी इंदौर मशहूर
इंदौर के लोगों की दिन की शुरुआत पोहा और जलेबी से होती है। यहां 56 दुकान और सर्राफा बाजार सिर्फ खाने के शौक़ीनों का ठिकाना है। दिन में यहां जेवरों की दुकान रहती है, लेकिन रात को चाट पकोड़ी की दुकानें लगती हैं। इस वजह से इंदौर के लोग इसे चाट-चौपाटी गली भी कहते हैं। शाम के वक़्त लोग यहां परिवार समेत आकर चटपटे पकवानों का मजा लेते हैं। ऐसा ही एक ठिकाना ‘56 दुकान’ भी है। यहां कहने को 56 दुकानें हैं, पर दुकानें इससे कई गुना ज्यादा है। रविवार को लोग अकसर दाल-बाटी खाने होटलों में जाते हैं। इंदौर के लोग तीखा खाने के शौक़ीन हैं।
वायु गुणवत्ता में भी अव्वल
लगातार सात साल तक स्वच्छता में पहले नंबर पर रहने वाला इंदौर वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए किए गए सार्थक प्रयासों की वजह से केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के स्वच्छ वायु सर्वेक्षण 2023 में अव्वल घोषित किया गया। राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के तहत पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के ‘स्वच्छ वायु सर्वेक्षण में इंदौर ने 8 पैमानों पर बेहतरीन प्रदर्शन किया और अपनी श्रेणी के 46 शहरों को पीछे छोड़ा है।
ताकि न उड़ें धूल-धुआं
स्वच्छ वायु सर्वेक्षण 2023 के नतीजे आने के बाद महापौर पुष्यमित्र भार्गव के मुताबिक, शहरवासियों की सहभागिता, पार्षदों के नवाचार और अधिकारियों के अथक परिश्रम का ही यह नतीजा है। इंदौर में सड़कों की मशीनी झाड़ू से लगातार सफाई से धूल कणों के फैलने को रोकने में मदद मिली। भवन निर्माण सामग्री की ढुलाई रात के वक्त करना और इसे तारपोलीन से ढकना अनिवार्य किया गया है, ताकि धूल न उड़े। वहीं रेस्तरां और ढाबों में लकड़ी-कोयले की भट्टियों और तंदूर की जगह पीएनजी का उपयोग हो रहा है। पिछले तीन साल में क्लीन एयर कैटलिस्ट प्रोजेक्ट के तहत विभिन्न चरणों में इंदौर नगर निगम के साथ शहर की वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए वायु गुणवत्ता वैज्ञानिकों ने कई अध्ययन किए और रिसर्च रिपोर्ट्स तैयार कर वायु प्रदूषण के स्रोतों की पहचान की। स्थानीय प्रशासन, उद्योगों, स्वयंसेवी संस्थाओं, जन प्रतिनिधियों, गणमान्य नागरिकों के साथ ही स्वास्थ्य, परिवहन और शिक्षा जैसे विभिन्न सरकारी विभागों के कर्मियों को वायु प्रदूषण से लड़ने के लिए प्रशिक्षित किया। जनता और मीडिया को भी प्रशिक्षण कार्यक्रमों के जरिये जागरूक किया।
पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर फोकस
कचरा प्रबंधन के जरिए प्रदूषण रोकने के मामले में पिछले छह साल से इंदौर देश में पहले नंबर पर है। इंदौर ने सिटी बस और बीआरटीएस के जरिये पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर फोकस किया। इससे वाहनों का प्रदूषण घटाने में मदद मिली। शहर में यातायात के लिए बुनियादी ढांचे के विकास के साथ ही शेयरिंग आधार पर पब्लिक बाइसिकल सिस्टम को विकसित किया गया। मेट्रो ट्रेन का ट्रायल भी किया गया, उम्मीद है वह भी वायु प्रदूषण कम करेगी।
सड़कों की मशीनों से सफाई
डब्ल्यूआरआई के एक सर्वे में भाग लेने वाले 77 प्रतिशत उद्योगों ने अब वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने वाले उपकरणों का इस्तेमाल शुरू किया है। मार्गों पर धूल से लोगों को बचाने के लिए सड़कों की मशीनों से सफाई, किनारों और डिवाइडरों पर पेड़-पौधे लगाना, किनारे पेवमेंट बनाने जैसे काम लगातार किए जा रहे हैं। ईंट भट्टों को शहरी सीमा से दूर ले जाने का काम जारी है। वहीं डब्ल्यूआरआई के एक सर्वे के मुताबिक खाना पकाने और गर्म करने के लिए होटलों-ढाबों में 89 प्रतिशत एलपीजी, 7 प्रतिशत बिजली और 1 प्रतिशत डीजल और बाकी दूसरे ईंधन का इस्तेमाल कर रहे हैं।
शहर की परंपरागत रंगपंचमी पर लाखों लोग बड़े इलाके में खूब रंग खेलते हैं। लेकिन, टनों गुलाल और रंग को कुछ ही घंटों में समेत दिया जाता है। इस बार निगम की 23 सफाई मशीनों, 5 जेसीबी, 15 डंपरों और 500 कर्मचारियों ने इस क्षेत्र में सफाई की।
चैलेंज भी बरक़रार
इस बार के स्वच्छ सर्वेक्षण 2023 का नतीजा इंदौर को खुशियों देने के साथ अलर्ट करने वाला भी है। गुजरात का शहर सूरत अब इंदौर की बराबरी पर आकर खड़ा हो गया। यह संयोग नहीं है, क्योंकि सूरत लगातार तीन साल से दूसरी रैंक पर था ही। सफाई, इनोवेशन, सेग्रीगेशन और रीयूज में अब इंदौर की एक भी चूक 2024 में स्वच्छता की बादशाहत को खतरे में डाल सकती है। सिर्फ इंदौर ही नहीं, सूरत के सामने भी यही चैलेंज है। जो आगे निकल गया वो अगली बार नंबर-1 हो जाएगा। इंदौर के महापौर के मुताबिक, वे आठवीं बार यह खिताब जीतने के लिए तैयारी शुरू कर चुके हैं। बड़ा चैलेंज है ‘डंप साइट्स’ यानी घर-दुकान से जितनी भी तरह का कचरा निकले, उसे अलग-अलग ही संगृहीत करना। अभी इंदौर यह काम 100 प्रतिशत नहीं कर सका। बाहरी इलाकों में आज भी सिंगल बकेट गाड़ी से ही थोक में कचरा उठाना पड़ रहा है। सूरत से इंदौर का मुकाबला कांटेदार था, आखिरी लड़ाई केवल 6 अंकों के फासले पर थी। इंदौर के महापौर पुष्यमित्र के मुताबिक- हमने अभी से 8वें सर्वेक्षण के लिए तैयारी शुरू कर दी है। जल्द ही 200 करोड़ रुपए की लागत से नई कचरा गाड़ियां खरीदने जा रहे हैं। इन सभी में 6 पार्ट्स रहेंगे और कचरा अलग-अलग कलेक्ट किया जाएगा। बाइपास सहित अन्य इलाकों में भी 100 प्रतिशत कचरा कलेक्शन इसी तरह करने के लिए मैपिंग की गई।
इसलिए सूरत बराबरी पर
इस बार घर-दुकानों से 6 तरह का सूखा, गीला, कांच, लोहा, सेनेटरी वेस्ट और इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट कचरा कलेक्ट करना था। वास्तव में ये पब्लिक इन्वोल्वमेंट के बगैर संभव नहीं था। इसी तर्ज पर सूरत ने काम किया जिसने उसे इंदौर की बराबरी पर लाने में मदद की। इंदौर इस काम में सूरत से 0.25 प्रतिशत पिछड़ गया। सूरत की यही मेहनत 6 अंकों में बदल गई और वह बराबरी पर आ गया। इस बारे में सूरत महानगर पालिका की कमिश्नर शालिनी अग्रवाल का कहना है कि हम लगातार इंदौर के पीछे खड़े थे, बस कुछ कारणों से पिछड़ रहे थे। साल 2023 में हमने कचरे के रीयूज के साथ में 6 तरह से सेग्रीगेशन पर खास ध्यान दिया। पब्लिक टॉयलेट्स की नियमित सफाई में भी वो 96 प्रतिशत पर था जो अब वहां भी 100 प्रतिशत हो गया है।
इंदौर से ऐसे की सूरत की बराबरी
2022 में भी सूरत सफाई में इंदौर से मात्र 0.3 प्रतिशत पीछे था। सूरत ने भी इंदौर की तरह सफाई को जन आंदोलन का रूप दिया। चौराहों का सौंदर्यीकरण कर, सड़कों को पेंटिंग्स से संवारा गया। पब्लिक टॉयलेट्स की सफाई में सूरत इंदौर से आगे रहा और 100 प्रतिशत अंक पाए। कचरे का रीयूज करके सीएनजी और खाद बनाने जैसे प्रयोग किए, जो इंदौर पहले से कर रहा था। 6 तरह के कचरे का अलग-अलग कनेक्शन किया गया।
आगे भी इंदौर को चुनौतियां कम नहीं
इंदौर नगर निगम देश का पहला ईपीआर (एक्स्टेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पांसिबिलिटी) क्रेडिट पाने वाला शहर बना। यह उपलब्धि नगर निगम को प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 पीडब्लूएम और ईपीआर नीति को सफलता से लागू करने के कारण मिली। निगम ने सिंगल यूज प्लास्टिक पर रोक लगाने के लिए ‘मैं हूं झोला धारी इंदौरी’, ‘प्लास्टिक प्रीमियर लीग’ और ‘हल्ला बोल ड्राइव’ जैसे अभियान चलाए। होटलों में प्लास्टिक के बजाय कागज की प्लेट का इस्तेमाल होता है। शहर में प्रतिदिन 1162 मीट्रिक टन से अधिक ठोस कचरा निकलता था। नगर निगम ने अमानक प्लास्टिक जब्त कर देवगुराड़िया प्लांट पर निपटान किया। शहरवासी अब छह प्रकार के कचरे (प्लास्टिक अपशिष्ट, गैर प्लास्टिक अपशिष्ट, ई अपशिष्ट, सैनिटरी अपशिष्ट, घरेलू खतरनाक अपशिष्ट और गीले अपशिष्ट) को अलग-अलग ट्रेचिंग ग्राउंड तक पहुंचाते हैं।
जीरो लैंड फ्री सिटी बनाने की कोशिश
निगम ने जीरो लैंड फ्री सिटी की ओर भी अपने कदम बढ़ा दिए हैं। प्रोसेसिंग के बाद भी 5 प्रतिशत सूखा कचरा बच जाता है, जो किसी काम का नहीं होता। उसे जमीन के नीचे लेयर बनाकर दबा दिया जाता है। कचरा, मिट्टी, कचरा, मिट्टी इस तरह से लेयर बनाई जाती है। इसे लैंड फीलिंग कहते हैं। निगम की कोशिश है कि इस 5 फीसदी बचने वाले सूखे कचरे से भी एनर्जी तैयार की जाए और इंदौर को जीरो लैंड फ्री सिटी बनाया जाए।
'वेस्ट टू आर्ट' से बनाए गार्डन
'वेस्ट टू आर्ट' के तहत हर वार्ड में प्रतिमाएं लगाई गईं। ग्लोबल गार्डन, मालवा मिल और संगम नगर का गार्डन तैयार किया गया है। राजकुमार ब्रिज के नीचे जगह का उपयोग किया। हर वार्ड में 'थ्री आर' सेंटर (रियूजिंग, रीसाइक्लिंग और रिड्यूसिंग) बने हैं। इनके लिए 250 अंक निर्धारित हैं। घरों से निकलने वाले पुराने कपड़े, पुराने जूते उन्हें प्रोसेस करके बड़े ब्रांड के साथ लिंक अप किया।
एशिया का सबसे बड़ा बायो सीएनजी प्लांट
एशिया का सबसे बड़ा बायो सीएनजी प्लांट देश में सिर्फ इंदौर के पास है। इसे देखने के लिए न सिर्फ देश बल्कि दुनिया के अन्य देशों से भी प्रतिनिधिमंडल आ चुके हैं। नगरीय आवास व विकास मंत्रालय इसे देशभर में लागू करने के निर्देश भी दे चुका है। 'वेस्ट टू वेल्थ' का ये एक अच्छा उदाहरण है।
पहला शहर जिसने ट्रीटेड वॉटर बेचा
इंदौर मध्य प्रदेश का पहला शहर है, जिसने ट्रीटेड वॉटर बेचने की शुरुआत की। शहरवासी 311 एप पर कॉल कर ट्रीटेड वॉटर मंगवा कर भवन निर्माण में इसका उपयोग कर सकते हैं। इस तरह निगम के लिए घरों में बाथरूम और किचन से निकलने वाला गंदा पानी भी कमाई का जरिया बन गया है। अभी तक इंदौर के लिए यह दूषित पानी समस्या बनता था, लेकिन निगम ने रिसाइकिल कर पानी को बेचने की शुरुआत की। शहर में मेट्रो प्रोजेक्ट का निर्माण कर रही दो कंपनियों ने रोजाना एक लाख लीटर पानी नगर निगम से खरीदा। निगम ने कंपनियों को 1.40 रुपए प्रति हजार लीटर के हिसाब से पानी बेचा। कबीट खेड़ी में 160 एमएलडी क्षमता का ट्रीटमेंट प्लांट है। शहर में हर दिन 300 एमएलडी पानी का ट्रीटमेंट किया जाता है।