धन और कर्म की सच्चाई
एक बार गुरु नानक देव जी घूमते हुए बगदाद जा पहुंचे। बगदाद की प्रजा ने उन्हें शासक के जुल्म की दास्तां सुनायी। वे कुछ कंकड़ एकत्र करके शाही महल के सामने जा बैठे। दरबान ने जब गुरु नानक देव जी के आने की सूचना दी तो बादशाह सुनते ही दौड़ा आया। गुरुजी के आगे कंकड़ों का ढेर लगा देख उसने पूछा, ‘गुरुदेव, ये कंकड़-पत्थर किसलिए बटोरे हैं?’ भाई, तुम जानते हो कि कयामत तो आनी ही है। अतः ईश्वर को भेंट देने के लिए मैंने ये इकट्ठे किये हैं।’ गुरुजी ने कहा। ‘अरे यह क्या? मैं तो आपको ज्ञानी मानता था। पर आपको तो यही पता नहीं कि कयामत के रोज़ रूहें अपने साथ कंकड़-पत्थर तो क्या एक सूई तक नहीं ले जा सकतीं।’ शासक ने तैश में आकर कहा। गुरुजी ने चुटकी लेते हुए उत्तर दिया, ‘तुम प्रजा को लूटकर जो धन इकट्ठा कर रहे हो, जब उसे अपने साथ ले जाओगे... तो ये कंकड़ भी चले जायेंगे।’ यह सुनकर शासक की सारी शेखी काफूर हो गयी।
प्रस्तुति : राजकिशन नैन