खेल से सरपट दौड़ी राजनीति की रेल
ओलंपिक का इकलौता सोने का मेडल भी कुछ-कुछ इकलौती औलाद जैसा ही होता है जी। वैसा ही प्यार और दुलार पाता है। इसलिए अच्छा है कि चीन की तरह हमें बीस-तीस गोल्ड मेडल नहीं मिले। एक मिला है तो अच्छे से दुलार रहे हैं। आरती में करोड़ों वारे जा रहे हैं। चीनियों का क्या है जी, वहां तो बचपन से ही बच्चों को खेल के लिए चुन लिया जाता है। हमारे देशभक्त टीवी एंकर बता रहे हैं कि इससे उनका बचपन छिन जाता है। ज्ञानीजन कहते हैं कि बचपन तो जी बच्चों को स्कूल भेजने से भी छिनता है, जब उन्हें जबरदस्ती अंग्रेजी बोलना सिखाया जाता है और उन पर बीस-तीस किलो किताबों तथा कापियों का बोझ लाद दिया जाता है। वैसे बचपन से ही खिलाड़ी चुनो तो बचपन छिनने का डर और बचपन बचा लो तो फिर मेडल छिनने का डर।
हमारी मुश्किल यह है कि यहां तो न बचपन बच रहा है और न ही मेडल बच पा रहे हैं। हमारे यहां बचपन में ही खेल के लिए बच्चों का चुनाव किए जाने से बचपन नहीं छिन रहा, वह बाल श्रम से छिन रहा है, वह कुपोषण से छिन रहा है। दुनिया के सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चे हमारे यहां हैं। चाहें तो हम इस पर भी गर्व कर सकते हैं।
खैर हम तो ‘बस दो या तीन बच्चे, होते हैं घर में अच्छे’ की नीति पर चल रहे हैं कि मेडल-वेडल जितने कम होंगे, उतने ही अच्छे। लाड़-दुलार अच्छा होता है। सरकारें आरती में करोड़ों लुटाती हैं। हम दूसरे देशों की तरह नहीं हैं कि बोरियां भर-भर कर मेडल ले जाएं। हम खेल बजट में भी किफायत और मेडलों में भी किफायत की और इनामों में करोड़ों लुटाने की नीति पर चलते हैं।
एक जमाने में राज्यवर्धन सिंह राठौड़ इकलौता मेडल लाए थे और वह गोल्ड बिल्कुल भी नहीं था। उस मेडल के लिए जनता ने उन्हें जो प्यार-दुलार दिया सो दिया, भाजपा ने तो अपनी टिकट इनाम में दे दी। देखो दो बार सांसद और केंद्र में मंत्री भी रह लिए। इतना इनाम किसी दूसरे देश में मिलता है क्या? सुशील कुमार के इतने लाड़ लड़ाए गए कि वह बिगड़ गया। कहते हैं ज्यादा लाड़ में बच्चा बिगड़ ही जाता है। सो बताते हैं कि वह मारपीट, उगाही, वसूली वगैरह सब करने लगा। अगर वह भी थोड़ा स्मार्ट होता तो जेल की बजाय संसद पहुंच सकता था।
लेकिन मेडल से सुसज्जित हरियाणा के ही एक और पहलवान विधानसभा भी नहीं पहुंच पाए। इसके लिए भाजपा को दोष नहीं दिया जा सकता था। उसने तो उन्हें विधानसभा पहुंचाने की पूरी कोशिश की थी। भाजपा की पूरी कोशिश होती है कि वह मेडल सुसज्जितों को खेल के खिलाड़ी से राजनीति का खिलाड़ी बना दे। राज्यवर्धन राठौड़ से लेकर योगेश्वर दत्त और बबीता फोगाट इसके उदाहरण हैं। इस मामले में नये मेडल विजेताओं का भविष्य उज्ज्वल है।