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आत्मघात की त्रासदी

07:53 AM Sep 02, 2024 IST

यह किसी राष्ट्र के लिये शर्मसार करने वाली स्थिति है कि उसके युवा बड़ी संख्या में आत्महत्या में मुक्ति की राह तलाश रहे हैं। हाल के दिनों में छात्रों की बढ़ती आत्महत्याएं विचलित करने वाली हैं। सबसे दुखद यह है कि छात्रों की आत्महत्या की संख्या किसानों की आत्महत्या से ज्यादा हो गई है। हालांकि, आत्महत्या के मामले में किसी भी वर्ग से तुलना नहीं की जा सकती है, लेकिन सुनहरे भविष्य के सपने देखने वाली संभावना का असमय अंत पीड़ादायक है। ऐसे में देश के नीति-नियंताओं को इस भयावह संकट का तात्कालिक समाधान तलाशना चाहिए। हाल ही में आईसी-3 संस्थान की रिपोर्ट इस भयावह संकट पर प्रकाश डालती है। रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2021 के दशक में देश के 13,089 छात्रों ने आत्महत्या की। जो कि पिछले दशक की तुलना में 57 फीसदी अधिक है। जो निश्चय ही बड़ी चिंता का विषय है। दरअसल, लगातार बढ़ते शैक्षणिक दबाव, जबरन कैरियर विकल्प देने, मानसिक स्वास्थ्य संघर्ष और वित्तीय बोझ युवाओं को निराशा के गर्त में धकेल रहा है। आईआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के आंकड़ों से स्थिति की गंभीरता पता चलता है। जहां वर्ष 2019 और 2023 के बीच 69 छात्रों ने अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली। पिछले वर्षों में कोटा के कोचिंग संस्थानों में युवा छात्रों के जीवन समाप्त करने का ग्राफ बढ़ा है। इन बेहद कष्टकारी आंकड़ों पर मंथन करके नीति-नियंताओं को युवा मन की आकांक्षाओं की कसौटी पर खरा उतरने का प्रयास करना चाहिए।
निस्संदेह, यह एक हकीकत है कि देश में युवाओं को योग्यता अनुसार रोजगार के अवसर मिलने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन घोषणावीर नेतृत्व इस हकीकत को गंभीरता से नहीं ले रहा है। नौकरी के अभाव में हताशा में जीने वाला युवा एक दमघोंटू माहौल में जी रहा है। सीमित संख्या में घोषित होने वाली नौकरियों के लिए लाखों बेरोजगारों के आवेदन संकट का चित्र उकेरते हैं। सरकारों को वास्तविक रोजगार अभियान चलाकर युवाओं का मनोबल बढ़ाना चाहिए। घटते रोजगार के अवसर युवाओं में हताशा पैदा कर रहे हैं। जिसके कालांतर आत्मघाती परिणाम सामने आते हैं। निस्संदेह, परिवार के लोगों की भी बच्चों के कैरियर में मार्गदर्शन की बड़ी भूमिका होती है। अभिभावकों को चाहिए कि कैरियर के मामले में वे अपनी इच्छाओं को थोपने के बजाय बच्चों की रुचि के अनुरूप रोजगार के विकल्प तलाशने में उनकी मदद करें। अपनी मनपसंद के व्यवसाय में युवा अच्छी सफलता पाते हैं और पूरे मनोयोग से अपने लक्ष्य विपरीत परिस्थितियों में भी हासिल कर सकते हैं। वहीं दूसरी ओर स्कूल-कॉलेजों में ऐसे रोजगारपरक कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए, जिससे कमजोर छात्रों को बेहतर करने का अवसर मिल सके। इस कार्य में शिक्षक अकादमिक मार्गदर्शन के साथ ही उन्हें सशक्त भावनात्मक संबल भी प्रदान कर सकते हैं। लेकिन सबसे व्यावहारिक समाधान रोजगार के अवसरों में वृद्धि करने का है। जिससे छात्र कोई आत्मघाती कदम उठाने से बच सकें। हमें उनके उज्ज्वल भविष्य के अनुरूप वातावरण तैयार करने की पहल युद्धस्तर पर करनी चाहिए। युवाओं का आत्मघात की राह पर बढ़ना बेहद त्रासदी की बात है।

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