पितरों को श्रद्धा से याद करने की परंपरा
धीरज बसाक
जानकारियों और संदर्भों की मशहूर वेबसाइट क्वेरा में छपी एक पोस्ट के मुताबिक़ औरंगजेब ने अपने पिता शाहजहां को 7 वर्ष तक कारागार में रखा था। वह उन्हें पीने के लिए बिलकुल नपा-तुला पानी एक फूटी हुई मटकी में भेजता था। कहते हैं इस पर शाहजहां ने उसे पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने लिखा :-
‘ऐ पिसर तू अजब मुसलमानी, ब पिदरे जिंदा आब तरसानी, आफरीन बाद हिंदवान सद बार, मैं देहदं पिदरे मुर्दारावा दायम आब...’
यानी हे पुत्र! तू भी विचित्र मुसलमान है, जो अपने जीवित पिता को पानी के लिए भी तरसा रहा है। शत-शत बार प्रशंसनीय हैं वे ‘हिन्दू’ जो अपने मृत पूर्वजों को भी पानी देते हैं। इस पत्र के संवाद से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पितृपक्ष कितने महत्वपूर्ण हैं।
वास्तव में हिंदू संस्कृति में पितृपक्ष भाद्रपद की पूर्णिमा से प्रारंभ होकर आश्विन माह की सर्वपितृ अमावस्या तक होते हैं। इस साल पितृपक्ष 18 सिंतबर से शुरू होकर 2 अक्तूबर तक बताये जा रहे हैं, लेकिन कुछ लोगों के मुताबिक पितृपक्ष की शुरुआत मंगलवार 17 सितंबर से ही हो जायेगी और ये 2 अक्तूबर को खत्म होंगे। वास्तव में पहला श्राद्ध पूर्णिमा श्राद्ध होता है, इसके बाद प्रतिपदा से लेकर चतुर्दशी तक नियमित श्राद्ध होते हैं और अमावस्या के श्राद्ध को सर्वपितृ अमावस्या श्राद्ध कहा जाता है।
पितृपक्ष के इन 16 दिनों में धार्मिक और कर्मकांडी हिंदू समाज अपने पितरों को श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं और उनके लिए पिंडदान करते हैं। इस अवधि को कई नामों से जाना जाता है मसलन, 16 श्राद्ध, महालय पक्ष और अपर पक्ष। पितृपक्ष को लेकर हिंदू समाज में बहुत ही श्रद्धा और आस्था का भाव है। कई बार पंचांग गणना के मुताबिक पितृपक्ष 16 दिन की बजाय 17 दिन के भी हो जाते हैं। पितृपक्ष में पितरों का तर्पण किया जाता है और माना जाता है कि ऐसा करने से पूर्वज हमें आशीर्वाद देते हैं और हमारे जीवन की सभी बाधाओं को दूर करते हैं। धार्मिक पुराण कथाओं के मुताबिक पितृ पूजन से संतुष्ट होकर हमारे पितर हमें आयु, पुत्र, यश, कीर्ति, बल, वैभव, सुख और धन धान्य देते हैं। पितरों के लिए श्रद्धा एवं कृतज्ञता प्रकट करना हिंदू समाज की महानतम् संस्कृति का द्योतक है। 16 दिनों तक धार्मिक निष्ठा से पितरों को याद करना, उनके सम्मान में नियमों से बंधा सात्विक जीवन जीना हिंदू समाज में अपने पूर्वजों के लिए सम्मान का प्रतीक है, इसलिए पितृपक्ष को उज्ज्वल संस्कृति का आदर्श पखवाड़ा भी माना जाता है।
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार श्राद्ध से खुश होकर पितृगण हमें यानी श्राद्धकर्ता को हर वह वरदान देते हैं, जो श्राद्ध करने वाले के मन में होता है। कहते हैं, जो व्यक्ति अपने पितरों को पितृपक्ष में याद करता है, वह हमेशा निरोगी, स्वस्थ, योग्य, संपत्ति वाला, धनी और धनोपार्जक होता है। और जो लोग पितृपक्ष में पूर्वजों का तर्पण नहीं करते उन्हें पितृदोष लग जाता है। श्राद्ध करने से ही पितृदोष से मुक्ति मिलती है। इसलिए भारतीय समाज में पितृपक्ष को बहुत सम्मान से याद किया जाता है। इस मौके पर बहुत ही सात्विक जीवन जीना होता है। सुबह-शाम अपने इष्ट देवों के साथ पितरों की पूजा करनी होती है, जबकि दोपहर के समय पितरों को भोजन समर्पित करना होता है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक पितरों का श्राद्ध भी दोपहर के समय करना चाहिए। पितृपक्ष के 15 दिनों में आप किसी भी दिन, किसी भी तिथि पर 12 बजे के बाद श्राद्ध कर्म कर सकते हैं। आमतौर पर श्राद्ध कर्म के लिए कुतुप और रोहिणी मुहूर्त को सबसे अच्छा माना जाता है। पितृपक्ष के दौरान हमें बार-बार अपने पितरों को याद करना चाहिए। उनका सम्मान करना चाहिए और उनके सम्मान में गरीबों, अनाथों आदि को भोजन कराना चाहिए और श्रद्धापूर्वक अपनी हैसियत के मुताबिक दान भी देना चाहिए।
श्राद्ध के दिनों में सिर्फ साधु-संतों और गरीब लोगों को ही नहीं, बल्कि हमारे इर्दगिर्द रहने वाले कई जीव-जंतुओं को भी भोजन और पानी देना चाहिए। माना जाता है कि श्राद्ध के दिनों में कौव्वों, चींटियों, गाय और कुत्तों को भोजन देने से हमारे पुरखे प्रसन्न होते हैं और हमें कभी भी किसी तरह के संकट में नहीं रहने देते। जानकारों का यह भी मानना है कि पितरों का श्राद्ध उनकी मृत्यु तिथि पर ही करना चाहिए। हम अपने जिन पितरों को इन दिनों याद करते हैं, उनके सम्मान में उनका मनपसंद भोजन जरूर बनाना चाहिए, जो उन्होंने जीवित रहते हुए सर्वाधिक शौक से खाया हो। यह भी माना जाता है कि पितृपक्ष में पितरों की श्राद्ध के बाद सबसे पहले अपने भानजों को उनका मनपसंद भोजन कराना चाहिए और उन्हें दक्षिणा देकर उनसे आशीर्वाद लेना चाहिए।
पितृपक्ष के दौरान कई काम करने को मनाही होती है। मांस-मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए। किसी पशु और पक्षी को मारना नहीं चाहिए, उन्हें सताना भी नहीं चाहिए। पितृपक्ष एक महत्वपूर्ण पक्ष है।
इ़.रि.सें.