लौकी से चिकन तक बदलता राजनीति का स्वाद
आलोक पुराणिक
तिलक वर्मा ने शानदार बैटिंग की साउथ अफ्रीका में, सेंचुरी लगायी। मैं सोच रहा हूं कि कौन-सी कार, कौन-सा टूथपेस्ट, कौन-सा जूता, कौन-सी बाइक इस कामयाबी का क्रेडिट लेगी। जी यही होता है, कोई खिलाड़ी बहुत मेहनत करता है, बहुत प्रैक्टिस करता है, फिर एक दिन वह कामयाब हो जाता है। फिर वह बताता है कि उस कार में उसकी कामयाबी का राज़ छिपा है।
खिलाड़ी कामयाब होता है, तो उसके पीछे कोई कार ही होनी चाहिए, कोई टूथपेस्ट होना ही चाहिए। कई बार सोचता हूं कि बहुत पहले जब ज्यादा कारें नहीं होती थीं, तो क्या खिलाड़ी कामयाब नहीं होते थे। सुनील गावस्कर बहुत कामयाब क्रिकेटर थे, उनकी कामयाबी का क्रेडिट तब किसी कार को नहीं मिलता था। अपनी हिम्मत, अपनी लगन से गावस्कर गावस्कर हुए। पर बाद में सीन बदल गया, क्रिकेटर किसी कार या बाइक के बूते ही कामयाब होते हैं। दुनिया बदल रही है, बहुत तेजी से। पहले किसी को पता न होता था कि एक्यूआई का मतलब क्या होता है। अब दिल्ली वाले कम से कम एक्यूआई का मतलब जानते हैं, एक्यूआई का ताल्लुक प्रदूषण से है। दिल्ली में एक्यूआई कई जगहों पर चार सौ से ऊपर चला जाता है तो दिल्ली वाले परेशान होते हैं। फिर खबर आई कि लाहौर पाकिस्तान में एक्यूआई एक हजार से ऊपर चला गया। लाहौर वाले बहुत वीर बहादुर लोग हैं। दिल्ली के मुकाबले दो गुने से भी ज्यादा प्रदूषण झेलकर जीवन चला रहे हैं लाहौर वाले। चार सौ से ऊपर एक्यूआई खतरनाक माना जाता है। उस शहर की सड़कों पर गैंगवार हो रहा है, सड़क पर गोलियां चला रहे हैं, यह खबर देखकर मैं आश्वस्त हो जाता हूं कि हमारे शहर का तो बहुत अच्छा हाल है, रोज चेन स्नैचिंग की सौ पचास घटनाएं होती हैं बस।
दिल्ली वाले चार सौ एक्यूआई पर परेशान न हों, लाहौर वाले हजार पर जमे हुए है। लाहौर स्पिरिट को अपना लें दिल्ली वाले तो सब कुछ झेलने की काबिलियत पैदा हो लेगी। इस तरह की उम्मीद पर जीवन चलाया जा सकता है। उम्मीदें तरह-तरह की हैं, राजनीति के कारोबारियों को। महाराष्ट्र में चुनाव चल रहे हैं। कुछ साल पहले उद्धव ठाकरे हिंदुत्व के प्रवक्ता होते थे, अब सेकुलर पॉलिटिक्स की दुकान चला रहे हैं। यह कुछ यूं है, जैसे किसी शाकाहारी खाने का धंधा करने वाले को कह दिया जाये कि अब चिकन मटन का कारोबार करो। पर पॉलिटिक्स बहुत मुश्किल कारोबार है। कल लौकी की सब्जी बेचते थे, आज मटन चिकन बेचना पड़ सकता है। पॉलिटिक्स का धंधा सबसे मुश्किल धंधा है, लौकी से चिकन पर आना ही पड़ता है।