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डिप्टी मेयर पर लटकी कुर्सी जाने की तलवार

06:45 AM May 28, 2024 IST
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जितेंद्र अग्रवाल/हप्र
अम्बाला शहर, 27 मई
लोकसभा चुनाव परिणाम 4 जून को सामने आ जाएंगे लेकिन चुनाव के दौरान हरियाणा जनचेतना पार्टी(हजपा) के समर्थन से डिप्टी मेयर द्वारा कांग्रेस का दामन थाम लेने के बाद उनको पद से हटाने की रणनीति बनाई जाने लगी है। इसके लिए मेयर की पार्टी हजपा और भाजपा का हाथ मिलाना जरूरी है। दरअसल लोकसभा चुनाव से ऐन पहले अम्बाला नगर निगम के 3 निर्वाचित नगर निगम सदस्य जिन्हें आम बोलचाल की भाषा में पार्षद कहा जाता है, ने अपनी निष्ठा हजपा से हटाकर कांग्रेस के प्रति व्यक्त कर दी थी। इनमें डिप्टी मेयर राजेश मेहता भी शामिल रहे जो वार्ड 5 से नगर निगम का चुनाव कांग्रेस के ही समर्थन से लड़कर जीते थे और बाद में हजपा में शामिल हो पिछले करीब डेढ़ वर्ष से डिप्टी मेयर के रूप में काम कर रहे थे। बाकी 2 पार्षद वार्ड 1 से जसबीर सिंह एवं वार्ड 19 से राकेश कुमार शामिल हैं। राजेश मेहता की निष्ठा वापसी को राजनीति में घर वापसी के रूप में देखा जा रहा है। ऐसे में 2 सदस्यों वाली कांग्रेस को बैठे बिठाए नगर निगम की सत्ता में डिप्टी मेयर के रूप में सत्ता मिल गई और सदस्यों की संख्या बढ़कर 5 हो गई।
दरअसल निगम सदस्यों द्वारा दलबदल करने पर कानूनन कोई रोकटोक नहीं होने के कारण स्थानीय निकाय में ऐसा होता है। गत वर्ष 2023 में वार्ड 12 से दिसंबर 2020 में हजपा-वी के टिकट पर चुनाव जीती अमनदीप कौर पाला बदलकर भाजपा में शामिल हो गयी थीं। उससे पूर्व वार्ड 4 से निर्मल सिंह-चित्रा सरवारा की तत्कालीन हरियाणा डेमोक्रेटिक फ्रंट(एचडीएफ)के टिकट पर निर्वाचित विजय कुमार और एचडीएफ के ही टिकट पर वार्ड 14 निर्वाचित रूबी सौदा भाजपा में शामिल हो गयी थीं। चूंकि राजेश मेहता नगर निगम के डिप्टी मेयर के पद पर हैं तो दल बदलने के बाद वे निशाने पर हैं। हजपा कभी नहीं चाहेगी कि उनको छाेड़कर जाने वाला पार्षद उक्त पद पर रहे। ऐसे में 20 पार्षदों व 1 मेयर वाले सदन में डिप्टी मेयर को पद से हटाने के लिए दो तिहाई बहुमत की जरूरत होगी। लोकसभा चुनाव में हजपा प्रमुख विनोद शर्मा खुलकर भाजपा को समर्थन दे चुके हैं। सदन में भाजपा के 11 और कांग्रेस के 5 सदस्य हैं जबकि शेष 4 हजपा के हैं। कुछ पार्षदों ने बताया कि सारी संभावनाओं पर विचार किया जा रहा है। मेयर का वोट इसमें निर्णायक साबित होना है। यदि दलीय स्थिति वर्तमान जैसी ही रहती है याानी कोई अन्य पार्षद पाला नहीं बदलता तो वर्तमान डिप्टी मेयर को दिक्कत हो सकती है।

‘राज्य सरकार लगा सकती है अंकुश’

पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के वकील हेमंत ने बताया कि भारत के संविधान की दसवीं अनुसूची में जो दलबदल विरोधी कानून है, वह केवल सांसदों और विधायकों पर ही लागू होता है, शहरी स्थानीय निकाय म्युनिसिपल संस्थानों जैसे नगर निगमों-परिषदों पालिकाओं पर नहीं। इसलिए नगर निगम सदस्य कभी भी एक दूसरे के दल, पार्टी में शामिल हो सकते हैं और इस प्रकार वे बेरोकटोक दलबदल करने के लिए स्वतंत्र हैं। उन्होंने बताया कि अगर राज्य सरकार चाहे तो हरियाणा नगर निगम कानून में तत्काल संशोधन करवाकर इन सदस्यों के दलबदल करने पर अंकुश लगा सकती है।

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