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अस्मिता के रिसते जख्मों की दास्तां

06:34 AM Jun 23, 2024 IST
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गुरमीत सिंह
यह पुस्तक फ़िलिस्तीन के द्वंद्व को न केवल पाठकों के सामने रखती है बल्कि वहां के लोगों के दिलों में बसे डर, परेशानियां, दुख और उदासियों को देखने की दृष्टि भी देती है। इस्राइल-फ़िलिस्तीन की जंग में हजारों-लाखों लोगों ने अपना परिवार, जमीन, देश, संस्कृति सब खोया है। लेखिका यहां साहित्य और समाज के साथ-साथ राजनीतिक पक्ष भी रखती है। फ़िलिस्तीनी समस्या के इतिहास में ले जाकर विश्व स्तर में चल रहे षड्यंत्र का भी पर्दाफाश करती है। होलोकास्ट में जिस तरह से एक नस्ल के साथ अत्याचार हुए उनका दमन और शोषण हुआ इससे कोई अनभिज्ञ नहीं है। इस्राइल-फ़िलिस्तीन के बीच की जंग की भयावहता भी कम नहीं है।
नासिरा शर्मा ने इस संचयन में मार्मिक कविताओं और कहानियों का केवल संग्रह ही नहीं किया बल्कि लेखकों के साथ साक्षात्कार भी इसमें है। साहित्य में जनता की मनःस्थिति का एक प्रतिबिंब होता है जो वहां की तत्कालीन स्थिति का भी ब्यौरा देता है। जैसे जैसे परिस्थितियां बदलती है साहित्य के स्वरूप में भी स्वतः परिवर्तन आने लगता है।फ़िलिस्तीनी कवि अपने आप को विद्रोही नहीं मानते। वे अपने आप को विस्थापित मानतें हैं, जिन्हें अपनी जमीन अपने देश से भागने पर मजबूर किया गया। इन कवियों ने अपनी पारंपरिक अरबी शायरी में महबूब के ‘इश्क’ को मातृभूमि के ‘इश्क’ में तब्दील कर दिया है। फ़िलिस्तीनी लोगों में जितना गहरा प्रेम वतन को लेकर है उतना ही गहरा ज़ख्म इस बात को ले कर भी है कि उनकी कला को विश्व में इस्राइली कला के नाम से जाना जा रहा है। वे अपने साहित्य को ‘जलावतनी (विस्थापन) का साहित्य’ कहते हैं। इनके साहित्य में मातम की गूंज है, मृत्यु की परछाई है जो पाठक को भीतर तक झकझोर देती है। पर इतनी निराशाओं के बाद भी हमवतन जाने की उम्मीद, उसे पाने की चाह, एक आशा की किरण के रूप में सबके मन में है।
पुस्तक के पहले खंड में फ़िलिस्तीनी राजनीति, समाज और साहित्य के बारे में बताया गया है जिसमें फ़िलिस्तीनीकवि फदवा तुकान, कमाल नासिर और अन्य कवियों की कविताओं का तथा तलत सोकैरत की ‘मां’ जैसी मार्मिक कहानी हिंदी अनुवाद है। दूसरे खंड में इस्राइल के राजनीति, समाज और साहित्य का जिक्र है जिसमें इस्राइली लेखिका नूरिट ज़ारची की एक कहानी और ‘लिंगभेद के विरोध में उठा कलम’ शीर्षक से एक साक्षात्कार है। तीसरे खंड में यहूदियों पर टूटते ज़ुल्म की गाथा बताई गई है जिसमें यहूदा अमीचाई की कविता बम का व्यास और लूसी जेकब का एक साक्षात्कार है। चौथे खंड में लेखिका नासिरा शर्मा के ग़ाज़ा युद्ध के संबंध में अपने विचार, कविताएं और साक्षात्कार हैं।
पुस्तक : फ़िलिस्तीन : एक नया कर्बला लेखिका : नासिरा शर्मा प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन पृष्ठ : 272 मूल्य : रु. 350.

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