महाकवि की गाथा और सांस्कृतिक विरासत
ज्ञाानचंद शर्मा
पुस्तक : महर्षि वाल्मीकि की रामकथा और वाल्मीकि समाज लेखक : डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री प्रकाशक : सप्त सिंधु प्रकाशन, चकमोह, हमीरपुर, हि.प्र. पृष्ठ : 62 मूल्य : रु. 50.
‘महर्षि वाल्मीकि की राम कथा और वाल्मीकि समाज’ डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री द्वारा लिखित पचास पाठ्य पृष्ठों की एक लघु पुस्तिका है। इस पुस्तिका में चौदह छोटे-बड़े लेख संकलित हैं, जिनमें मुख्यतः महर्षि वाल्मीकि और उनके नाम से जाने जाने वाले समुदाय की चर्चा है। दो-एक लेख समकालिक विषयों को लेकर भी लिखे गए हैं। इन लेखों के माध्यम से लेखक अपने प्रतिपाद्य को पाठकों तक प्रेषित करने में सफल रहा है।
राम कथा का फलक अत्यन्त विस्तृत है, जो अपनी अनेक भिन्नताओं के साथ समस्त भारत तथा विश्व के अन्य बहुत से देशों तक व्याप्त है। काल की दृष्टि से इसका उत्स सुदूर अतीत में खोजा जा सकता है। भारतीय परंपरा के अनुसार भगवान राम का अवतार त्रेता युग में, आज से कोई नौ लाख वर्ष पूर्व हुआ था। आधुनिक विद्वानों का मत है कि राम संभवतः सात सहस्राब्दी पूर्व विद्यमान रहे होंगे। मान्यता है कि वाल्मीकि राम के समवर्ती और समग्र रामचरित के प्रत्यक्षदर्शी थे। अतः उनके द्वारा रचित ‘रामायण’ को रामकथा का प्रामाणिक स्वरूप माना जाता है। इसी रामकथा ने वाल्मीकि को ‘महर्षि’ जैसे परम सम्मानित पद तक पहुंचने में सफलता प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया।
महर्षि वाल्मीकि को आदि कवि होने का गौरव भी प्राप्त है। रामकथा को सर्वप्रथम काव्य रूप में प्रस्तुत करने का श्रेय भी उन्हें जाता है। वाल्मीकि एक विश्व विभूति हैं, उन्हें स्थान और समुदाय की सीमा में नहीं बांधा जा सकता। उनके नाम पर देश के अनेक भागों में आश्रम चल रहे हैं, जिनमें भिन्न-भिन्न वर्गों, जाति समूहों की गहन आस्था है। उत्तरी क्षेत्र (सप्त सिंधु/पंजाब) में वाल्मीकि को विशेष मान्यता है। एक बड़े वर्ग में तो इन्हें ‘भगवान’ का दर्जा प्राप्त है, यहां तक कि इस समूचे वर्ग को उन्हीं के नाम से पहचान मिली है।
डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने अपनी इस रचना में विषय से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां दी हैं, जिनसे इसे समझने में पर्याप्त सहायता मिलती है।