अबूझ पहेली के खट्टे-मीठे अहसास
शमीम शर्मा
हर पति चाहता है कि उसकी पत्नी सिर्फ उसी पर मरे और जब मरने लगती है तो उसे ललकारा जाता है कि कहीं और जाकर मर। और कहीं और जाकर मरती है तो उसे ताना दिया जाता है कि कहां मर गई? क्या करे कोई? एक बार यूं हुआ कि एक पत्नी ने अपने पति को उलाहने के स्वर में कहा—क्या हर वक्त मोदी-मोदी करते हो, मोदी का एक गुण तो लाकर दिखाओ। पति भी झल्लाया बैठा था। उसने भी नीरज चोपड़ा के स्टाइल में भाला-सा फेंकते हुए पूछा—तो क्या तुम्हें छोड़ दूं?
पति-पत्नी के संबंध भी बेताल-पचीसी जैसे चकित करने वाले हैं। उन्हें विक्रम की तरह एक-दूसरे को पीठ पर लाद कर चलना होता है। पर अब इस रिश्ते को पीठ से इस तरह उतारा जा रहा है जैसे लोग अपने जूते और मौजे उतारते हैं। और जब से नारी आजादी की मुहिम बढ़ी है, तब से वैवाहिक संबंधों में तनातनी में इजाफा हुआ है। इस पर गांव के एक बुजुर्ग ने मुझ से पूछा— थम किसी पढ़ाई करवाओ हो, छोरियां ससुराल मैं टिकती ए कोनीं। अब उन्हें कैसे समझाया जाये कि वे भी अपने अधिकारों के प्रति सजग हो गई हैं। बहुत दबा लिया।
घरवाली की किचकिच किसी को पसन्द नहीं है पर गूंगी औरत से कोई शादी के लिये हां भी नहीं करता। भारतीय पत्नियों को एक डाॅयलाग जरूर सुनना पड़ता है कि बस तू चुप रह। और एक यही काम वे कर नहीं सकतीं।
किसी और की पत्नी को तो हम पल में समझ जाते हैं पर अपने वाली हमेशा पहेली ही बनी रहती है। यह पहेली आज तक किसी की समझ में नहीं आई। शादी इसलिये की जाती है कि दो लोग मिलकर रहें पर वे इस तरह रहते हैं कि एक-दूसरे को रहने ही नहीं देते। वह भी समय था जब पति-पत्नी एक-दूसरे को सुनो जी, सुनो जी करके बोला करते और इस जी-जी में उनका जी लगा रहा करता। अब तो पति-पत्नी की तरफ से सिर्फ सवाल दागा जाता है—तुम्हारी समझ में आई कि नहीं। जैसे कोई स्कूल का हेडमास्टर पूछ रहा हो। किसी मनचले का कहना है कि जो अपनी बीवी से डरते हैं, सीधे स्वर्ग जाते हैं और जो नहीं डरते, उनके लिये यह धरती ही स्वर्ग के समान है।
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एक बर की बात है अक रामप्यारी तै समझाते होये नत्थू बोल्या—ध्यान तै रह्या कर, तै भोली है अर तन्नैं कोय भी बेवकूफ बणा सकै है। रामप्यारी भी किसी बात पै भरी बैट्ठी थी, बोल्ली—शुरुआत तो तेरे बाब्बू नैं करी थी।