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कावेरी के जल को सहेजने में ही समाधान

07:23 AM Mar 13, 2024 IST

पंकज चतुर्वेदी

बेंगलुरु का जलसंकट इन दिनों चर्चा में है। कहा जा रहा है कि लगातार दो साल से बरसात कम हो रही है। हकीकत यह है कि स्थानीय तालाबों को सुखाने के साथ-साथ कावेरी नदी के प्रति सरकार और समाज की बेपरवाही इसके मूल में है। बेंगलुरु शहर की करीब एक करोड़ चालीस लाख आबादी के लिए हर दिन 2600 एमएलडी पानी की जरूरत है, जबकि कावेरी नदी से मात्र 1460 मिल रहा है। करीब 1200 नलकूप सूख चुके हैं। बरसात अभी कम से कम दो महीने दूर है और इसीलिए कई स्कूल-कॉलेज-दफ्तर बंद कर दिए गए। पानी के दुरुपयोग पर जुर्माने सहित कई पाबंदियां लगा दी गई हैं। किसी से छुपा नहीं कि कावेरी के जल बंटवारे को लेकर दक्षिण के दो बड़े राज्यों तमिलनाडु और कर्नाटक में जमकर सियासत तो होती है लेकिन जब उसे सहेजने की बात आती है तो उसे गंदा करने की तत्परता अधिक दिखती है।
कावेरी नदी कर्नाटक के कुर्ग ज़िले के पश्चिमी घाट के घने जंगलों में ब्रह्मगिरी पहाड़ी पर स्थित तलकावेरी से निकलती है। कोई आठ सौ किलोमीटर की यात्रा के दौरान कई सहायक नदियां इसमें आकर मिलती हैं, लेकिन जब दो लाख घन मीटर से अधिक वार्षिक जल बहाव वाली कावेरी का समागम तमिलनाडु में थंजावरु ज़िले में बंगाल की खाड़ी में होता है तो यह एक शिथिल-सी छोटी-सी जल-धारा मात्र रह जाती है।
कावेरी का मैला होता पानी अब ज़हर बनता जा रहा है। कुछ साल पहले बेंगलुरु विश्वविद्यालय ने वन और पर्यावरण मंत्रालय तथा राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय-एनआरडीसी की मदद से एक शोध किया था, जिसमें बताया गया था कि कावेरी पर बने केआरएस बांध से नीचे आने वाला पानी ऊपरी धारा की तुलना में बेहद दूषित हो गया है। गौरतलब है कि केआर नगर, कौैल्लेगल और श्रीरंगपट्टनम नगरों की नालियों का गंदा पानी और नंजनगौडा शहर के कारखानों व सीवर की निकासी बगैर किसी शोधन के काबिनी नदी में मिला दी जाती है। काबिनी नदी आगे चलकर नरसीपुर के पास कावेरी में मिल जाती है। कहने को कौल्लेगल में एक ट्रीटमेंट प्लांट लगा है, लेकिन इसे चलते हुए कभी नहीं देखा गया।
शहरी गंदगी के बाद कावेरी को सबसे बड़ा खतरा इसके डूब क्षेत्र में हो रही अंधाधुंध खेती से है। जिसमें रासायनिक खाद व कीटनाशकों के बेतहाशा इस्तेमाल ने कावेरी का पानी ज़हर बना दिया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, बरसात के दिनों में कावेरी के पानी में हररोज 1,051 टन सल्फेट, 21 टन फास्फेट और 34.88 टन नाइट्रेट मिलती है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक नाइट्रोजन की इतनी मात्रा वाला पानी पीना बच्चों के लिए जानलेवा है।
कौल्लेगेल क्षेत्र में शहरी सीवर के कारण कावेरी का पानी मवेशियों के लिए भी खतरनाक स्तर पर पहुंच गया। यहां पानी में कैडमियम, एल्यूमीनियम, जस्ता और सीसा की मात्रा तय स्तर को पार कर जाती है। ये नदी किनारे रहने वालों के लिए नई-नई बीमारियां लेकर आ रहे हैं। रसायनों की बढ़ती मात्रा से कावेरी नदी का खुद-ब-खुद शुद्धीकरण का गुण नाकाम हो गया। किनारों पर रेत की बेतरतीब खुदाई, कपड़ों की धुलाई आदि ने भी नदी का मिजाज बिगाड़ दिया है। कावेरी के दूषित होने की चेतावनियां सन‍् 1995 में केद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक रपट में दर्ज थीं कि कावेरी का पानी अपने उद्गम तालकावेरी से मैसूर शहर की सीमा तक सी ग्रेड का है, जबकि होना ए ग्रेड चाहिए। विदित हो कि ए ग्रेड के पानी की 100 मिलीलीटर मात्रा में कॉलीफार्म बैक्टीरिया की मात्रा 50 होती है, जबकि सी ग्रेड में यह खतरनाक विषाणु छह हजार होता है। वहीं पीएच वैल्यू में काफी अंतर दर्ज किया गया था। उस रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि केआर बांध से होगेनेग्गल तक और बेंगलुरु से ग्रेंड एनीकेट तक और उससे आगे कुंभकोणम तक पानी की क्वॉलिटी ई ग्रेड की है। इस स्तर का पानी पीने के लिए कतई नहीं होता है।
तमिलनाडु के तिरुवलुर जिले के मन्नारगुडी का सीबीएम यानी कोल बेड मीथेन क्षेत्र कावेरी की जान का दुश्मन बना है। यहां गहरी खुदाई के लिए और उसके बाद वहां से निकलने वाले कोयले को नदी के पानी से साफ किया जाता है और इस तरह दूषित जल सीधे नदी में फिर बहा दिया जाता है, तभी मन्नारगुडी के आस-पास कई किलोमीटर तक नदी का पानी काला-नीला दिखता है।
सिंचाई, सफाई और सियासत के भंवर में फंसी 770 किलोमीटर लंबी कावेरी की सबसे ज्यादा दुर्गति कर्नाटक के कुर्ग जिले में ही है। यह इलाका काफी उत्पादक है और सरकारी रिकॉर्ड कहता है कि चार लाख पचहत्तर हजार टन कॉफी का कचरा सीधे नदी में जा रहा है। कुर्ग शहर की एक लाख आबादी का पूरा सीवेज बगैर सफाई के नदी में मिलता है। इसमें हजारों बूचड़खानों का गंदा पानी भी है। कुछ समय पहले प्रख्यात अंतरिक्ष वैज्ञानिक और राज्य ज्ञान आयोग के अध्यक्ष ने राज्य शासन को एक रपट सौंपी थी, जिसमें कावेरी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए त्वरित प्रयास करने व उसके लिए अलग बजट की बात की थी। रपट में बताया गया था कि कावेरी के किनारे कई पर्यटन स्थल नदियों में गंदगी बढ़ा रहे हैं, वहीं रेत खनन इसके अस्तित्व के लिए खतरा बन रहा है। जब बेंगलुरु जैसे महानगर और व्यापारिक केंद्र पर जलसंकट आता है तो कावेरी की याद आती है। कावेरी को हर समय याद रखा जाए तो प्यास की नौबत ही नहीं आएगी।

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