‘21 राजपूत’ के जवानों ने धूमधाम से मनाया ‘खानसामा विजय दिवस’
भिवानी, 14 दिसंबर (हप्र)
वर्ष 1971 के युद्ध में पाकिस्तान के खिलाफ भारत को मिली ऐतिहासिक जीत की याद में हर वर्ष 16 दिसंबर को ‘खानसामा विजय दिवस’ मनाया जाता है। भारत-पाक के युद्ध में 16 दिसंबर 1971 को भारतीय सेना के सामने पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया था। इसी युद्ध के बाद न केवल बांग्लादेश का जन्म हुआ था, बल्कि दक्षिण एशिया की भू-राजनीति भी बदल गई थी। वर्ष 1971 के युद्ध में पाकिस्तान के खिलाफ भारत को मिली ऐतिहासिक जीत की याद में 21 राजपूत के पूर्व सैनिकों द्वारा स्थानीय हूडा पार्क के समीप एक निजी रेस्त्रां में खानसामा विजय दिवस मनाया गया और भारतीय जवानों की बहादुरी के किस्से सुनाए गए।
इस मौके पर 1971 के भारत-पाक खानसामा युद्ध के चश्मदीद सूबेदार जगदीश सिंह पाली ने बताया कि यह युद्ध 3 दिसंबर 1971 से लेकर 15 दिसंबर 1971 तक चला था। उन्होंने बताया कि 11 दिनों तक चले इस युद्ध में 13 दिसंबर का दिन महत्वपूर्ण था। पाकिस्तानी सेना ने खानसामा में एक पक्का डिफेंस बनाकर भारतीय जवानों को खानसामा से पहले रोक दिया था। उस समय 21 राजपूत को आदेश मिला था कि वे खानसामा जोकि एक जगह का नाम है, पर कब्जा करें। इस मौके पर कैप्टन चरण सिंह मलिक, कैप्टन कृष्ण पाली, सूबेदार राजकुमार पाली, हवलदार देशराज पाली, कैप्टन कृष्ण कुमार सांगा, सूबेदार लाभ सिंह खरक, सूबेदार सत्यवान कलिंगा, हवलदार संजय कलिंगा सहित अन्य पूर्व सैनिक मौजूद रहे।
योजना रात में हमले की थी, लेकिन 21 राजपूत ने दिन में वार कर दुश्मन को दे दी शिकस्त
सूबेदार पाली ने बताया कि ये हमला 13 दिसंबर की रात में होना था, लेकिन 21 राजपूत के जवानों ने कहा कि राजपूत विजय या वीरगति के निशान पर लड़ाई लड़ता है तथा बजरंग बली का जयकारा लगाते हुए रात की बजाय दिन में हमला करने का निर्णय लिया तथा रात से पहले ही खानसामा को अपने कब्जे में ले लिया। उन्होंने बताया कि इसके बाद पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों को आत्मसमर्पण करना पड़ा था। सूबेदार जगदीश सिंह पाली ने बताया कि इस युद्ध के परिणाम ने पाकिस्तान का विभाजन और पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) की स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया।