अहीरवाल संस्कृति की महक
रघुविन्द्र यादव
‘आयो तात्तो भादवो’ सत्यवीर नाहड़िया का हाल ही में प्रकाशित हुआ अहीरवाटी बोली का कुण्डलिया छंद संग्रह है। जिसमें उनके 300 छंद संकलित किये गए हैं। कवि ने जीवन जगत से जुड़े विभिन्न विषयों पर छंदों की रचना की है। एक तरफ कवि ने ज्वलंत मुद्दों पर्यावरण, कोरोना, पेपर लीक, संसद में गतिरोध, बेरोजगारी, महंगाई, मॉब लिंचिंग, कैंसर के कहर आदि को अपना कथ्य बनाया है, वहीं दूसरी तरफ कवि ने स्वतंत्रता सेनानियों, महापुरुषों, संत-फकीरों, कवि-लेखकों और खिलाडि़यों का भावपूर्ण स्मरण किया है।
कवि ने खेती-किसानी, सर्दी, गर्मी, बरसात के साथ-साथ दक्षिणी हरियाणा की जीवन रेखा कही जाने वाली सतलुज-यमुना नहर विवाद को भी छंद के माध्यम से उठाया है। किसान की व्यथा कथा कहता यह छंद देखिये :- न्यारो फसली जोस थो, हुयी लामणी त्यार।/ सोच्चै थो न्यूं सूरजो, करजो द्यूंगो तार।/ करजो द्यूंगो तार, भात अर छूछक भर द्यूं।/ बिटिया हुयी जवान, हाथ इब पीळे कर द्यूं।/ ओले बरसे हाय, फसल को बैठ्यो ढारो।/ करजे की मत बूझ, बढ्यो बैरी यो न्यारो।
नाहड़िया ने नैतिक पतन, रिश्ते-नातों की शिथिलता, सामाजिक और राजनीतिक विसंगतियों व विद्रूपताओं को पाठकों के समक्ष छंदों के माध्यम से प्रस्तुत किया है, वहीं उन्होंने अपने देश, प्रदेश, मातृशक्ति, गुरु, रक्तदान, सैनिकों और भाषा की महिमा का बखान भी किया है। संग्रह में तीज त्योहारों, पंचतत्व, गौरैया और विज्ञान पर भी छंद शामिल हैं। कवि ने जाति-धर्म के झगड़ों, डीजे, क़र्ज़ और उग्रवाद के दुष्प्रभावों पर भी लेखनी चलाई है। पड़ोसी मुल्कों चीन और पाकिस्तान के कुकृत्यों को भी कवि ने अपना कथ्य बनाया है। कुण्डलियाकार ने लोक कहावतों और मुहावरों का प्रयोग करके अपने छंदों को धार दी है।
अहीरवाटी बोली में रचे गए ये छंद कथ्य ही नहीं शिल्प की दृष्टि से भी एकदम चुस्त और दुरुस्त हैं। कृति में अहीरवाल की संस्कृति और माटी की सौंधी महक और यहां के लोक जीवन के सुंदर शब्द चित्र छंदों के रूप में उपस्थित हैं।
पुस्तक : आयो तात्तो भादवो कवि : सत्यवीर नाहड़िया प्रकाशक : समदर्शी प्रकाशन, गाजियाबाद पृष्ठ : 112 मूल्य : रु. 175.