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मोटी है खाल, मस्त रहें हर हाल

12:36 PM Jun 07, 2023 IST
मोटी है खाल  मस्त रहें हर हाल
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अशोक गौतम

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देखिए भाई साहब! अब बहुत हो गया ये हमसे नैतिकता दिखाते हुए इस्तीफे की मांग का दिखावा करना। अब शांत हो जाइए प्लीज! नैतिकता के आधार पर हमसे इस्तीफे की मांग की आप लक्ष्मण रेखा न लांघिए तो अच्छा रहेगा। जनता अब यह शोर सुन बोर होने लगी है।

अब अगर वहां उस हादसे के लिए हमने भी आपसे इस्तीफे की इसी तरह मांग की होती तो आपको बहुत बुरा लगता। पर हमने तब नैतिकता की सीमाओं में रहकर आपसे नैतिकता के आधार पर इस्तीफे की मांग की थी। यही हमारा धर्म है। एक-दूसरे से इस्तीफा मांगने में शालीनता बनी रहे तो अच्छा लगता है। हम नहीं चाहते कि आपको हमारे सत्ता में होते हुए कुछ बुरा लगे। ऐसे में आपके विपक्ष में होते हुए हमें भी तो कुछ बुरा नहीं लगना चाहिए न! सत्ता में कभी हम, तो कभी आप! जनता तो सत्ता में आने से रही।

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देखिए, यहां सरकार हम हैं तो वहां आप। ये भी नहीं कि हम आपसे नैतिकता के आधार पर उस हादसे के लिए आपकी तरह गला फाड़-फाड़ कर इस्तीफा नहीं मांग सकते। आज आपके उसूल हों या न, पर हमारे आज भी कुछ उसूल हैं। आप हमारे मौसेरे भाई हो। हादसे हो जाते हैं। हादसों का काम होना है और हमारा काम नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देने के बदले उन हादसों की निष्पक्ष न्यायिक जांच करवाना। ये बात तो आप भी जानते ही हो कि जब हादसों का कारण अपने ही बंदे हों तो हम उनकी निष्पक्ष जांच करवा अपने पांव पर कुल्हाड़ी कैसे मार सकते हैं? वह तो अधिकतर शरीफों के पांवों को ही लहूलुहान करती रही है न!

बंधु! हम-तुम उस बिरादरी से हैं जो इस्तीफा देने के बाद के दर्द को बहुत गहरे से समझते रहे हैं। पद से इस्तीफा देने के बाद घरवाले भी नहीं पूछते। नेता तभी तक सुहाता है जब तक वह कुर्सी पर हो। कुर्सी से हटने के बाद तो वह भी खुद को नहीं पहचानता तो ऐसे में… अतः यथार्थ के धरातल पर खड़े होकर हमारी जगह अपने को रख हमारी पीड़ा समझो बंधु! और हमें विश्वास है कि आप भी समझते होंगे। पर कई बार हम सत्ता पाने को लेकर अधिक ही मुंहफट हो जाते हैं।

देखो, गिरा वो पुल और इस्तीफा दें हम? अब टकराईं वे रेलें और इस्तीफा दो आप? ये कहां का न्याय है? गिरे कोई, इस्तीफा दे कोई! गिरना जीवन का हिस्सा है। टकराना जीवन की जरूरत है। अरे जो हम इस्तीफा दे देंगे तो पुल के गिरने की, रेलों के भिड़ने की निष्पक्ष जांच कैसे होगी?

अब रही बात पब्लिक की तो सुनो डियर पब्लिक! हमने इन हादसों के लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान कर ली है। अब दिल पर हाथ रख पब्लिक टीवी देखती रहे कि इस्तीफा न देते हुए हम उनके विरुद्ध कैसे कड़े से कड़ा एक्शन लेते हैं?

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