स्क्रैप से अनूठी कृतियां रचने का हुनर
अरुण नैथानी
जिन वस्तुओं को हम बेकार समझते हैं, उन्हें एकत्र करके जीवंत रूप देने का काम कोई कलात्मक दृष्टि वाला व्यक्ति ही कर सकता है। चंडीगढ़ के एक इंजीनियर व उद्यमी प्रीतपाल सिंह मथारू ने अनुपयोगी स्क्रैप को उपयोगी कृतियों में बदलने के अनूठे हुनर से सबको चौंकाया है। चंडीगढ़ के इंडस्ट्रीयल एरिया में स्थित अपनी फैक्ट्री में अनुपयोगी स्क्रैप के रचनात्मक उपयोग का विचार उनके मन में आया। धीरे-धीरे शौक जुनून में बदला। आज वे ऐसी सैकड़ों कृतियां बना चुके हैं। चंडीगढ़ प्रशासन ने यहां सेक्टर 48 स्थित पार्क में स्क्रैप से बने दो रोबोट स्थापित किये हैं। वहीं अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के रास्ते में स्क्रैप का बना मुर्गा लगातार लोगों का ध्यान खींचता है। इसके बाद चंडीगढ़ क्लब व लुधियाना में भी कुछ ऐसी विशाल कलाकृतियां लगाई गई हैं।
दरअसल, इंजीनियर प्रीतपाल सिंह रचनात्मक सोच के व्यक्ति हैं। वे अपनी फैक्ट्री में विभिन्न लोहे की वस्तुओं के निर्माण से बचे स्क्रैप को ध्यान से देखते थे। आमतौर पर उसे कबाड़ी को बेच दिया जाता था। लेकिन उस स्क्रैप में भी उन्हें कभी किसी जीव का सिर,नाक, कान या किसी रोबोट के शरीर के हिस्से नजर आते थे। पहले उन्होंने अपने गैराज व फैक्ट्री में बनी एक कार्यशाला में छोटी-छोटी कला कृतियां बनाना शुरू किया। धीरे-धीरे बड़ी कला-कृतियों को बनाने का सिलसिला शुरू हुआ। मित्रों में प्रीतपाल सिंह अपने उपनाम पोली के रूप में जाने जाते हैं। जिसके चलते कालांतर उन्होंने इसे पॉलीबोट्स नाम दिया।
चंडीगढ़ की एक पहचान नेकचंद के रॉक गार्डन से भी है। जिन्होंने अनुपयोगी सामान व पत्थरों से ही ऐसी कृतियां रचीं मानो अभी बोल उठें। अब उसी चंडीगढ़ के एक इंजीनियर पोली सिंह ने उस तर्ज पर नई कृतियां रचकर आधुनिक शहर चंडीगढ़ को नई पहचान देने की कोशिश की है। जिसमें बाह्य अंतरिक्ष से आने वाले जीवों के स्वरूप व भविष्य की आकृतियां, चेहरे शामिल हैं। इससे धीरे-धीरे शहर के पार्कों, सार्वजनिक स्थलों तथा घरों में सजायी जाने वाली कृतियों के निर्माण की शृंखला बन गई है।
पोली सिंह के इस रचनात्मक कार्य की शुरुआत एक गैराज के शौक से हुई। पहली कृति वर्ष 2013 में बनाई। गैराज से निकलकर यह शौक बाद में कला प्रदर्शनियों तक पहुंचा। जब भी उन्हें समय मिलता वे इस जुनून में जुट जाते। धीरे-धीरे कला समीक्षक भी उनकी कृतियों को सम्मान की दृष्टि से देखने लगे। पंजाब कला भवन में आयोजित क्रिएटिव कर्मा व विजुअल आर्ट प्रदर्शनी में उनकी कृतियां शामिल होने से वे खासे उत्साहित हैं। वे कहते हैं कि इस कला को मान्यता मिलने से मेरा हौसला बढ़ा है।
सोशल मीडिया के जरिये पहुंची देश-विदेश में
इंजीनियर पोली सिंह स्वीकारते हैं इस अनूठी कला को साकार रूप देने में उनकी फैक्ट्री का बड़ा योगदान है जहां विभिन्न प्रकार के लोहे के टुकड़े व स्क्रैप उपलब्ध हुआ और उसे आकृति देने में वेल्डिंग मशीनें तथा अन्य सुविधाएं काम आई। फैक्ट्री में इन बड़ी रचनाओं को आकार देने के लिये संसाधन व जगह मिल सकी। जिससे चंडीगढ़ को ये अनूठी कृतियां मिल सकी। वे स्वीकारते हैं कि सोशल मीडिया ने उनके काम को देश-विदेश में पहचान दी है। कोई भी कृति को जब वे सोशल मीडिया माध्यमों पर डालते हैं तो लोगों व कला समीक्षकों का सकारात्मक प्रतिसाद मिलता है। पहचान के साथ मुझे उनका मार्गदर्शन भी मिलता है। इस रचनाधर्मी इंजीनियर की योजना है कि वे अधिक से अधिक पॉलीबोट्स बनाएं। उनकी अलग-अलग शृंखलाएं तैयार करें, जो बच्चों को नई कल्पनाशील दुनिया में ले जाएं। साथ ही यह संदेश कि जिन चीजों को हम बेकार समझते हैं, उनमें भी बहुत कुछ होने की संभावना छिपी होती है। यानी ‘नथिंग से समथिंग’ की तलाश एक रचनात्मक दृष्टि की होती है।