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मौसम देखकर धंधा बदलने का हुनर

09:04 AM Jan 09, 2024 IST
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आलोक पुराणिक

सर्दी चल रही है, पर सर्दी का कारोबार ज्यादा तेजी से चल रहा है। अक्षय कुमार बता जाते हैं कि वो इनर-बनियान अंदर पहनें, तो ठंड से बच जायेंगे जी। फिर फिल्म स्टार बताते हैं कि यह वाला च्यवनप्राश खाने से ठंड से लड़ने की शक्ति आ जाती है। जी फिर उस जैकेट से, उस कोट से, उस पैंट से ठंड भाग जायेगी, ऐसे इश्तिहार आते हैं।
सर्दी पर बहुत बोझ है कितने-कितने कारोबार चला सकती है सर्दी। फिर उस चैनल पर आकर वो वाला टीवी एंकर डरा देता है और बोलता है-कहीं मत जाइये, कहीं भी मत जाइए, बाहर बहुत ठंड है, आप घर में बैठकर हमारा टीवी चैनल देखिये। हिमयुग आयेगा सबसे पहले हमारे ही चैनल पर आयेगा। फिर करीब एक घंटे टीवी देखकर पता चलता है कि ठंड नहीं, बारूद की गर्मी मची हुई है। लेबनान के बम, गाजा पट्टी के बम, यूक्रेन के बम सारे के सारे टीवी चैनल पर चल रहे हैं। टीवी चैनल एक घंटे देख लो तो टेंशन हो जाती है। ऐसा लगता है कि घर से बाहर निकले तो बम से उड़ जायेंगे। टीवी देखो तो एकमात्र सवाल दुनिया ब्रह्मांड के सामने यही बचा है कि बमों से मरना बेहतर है या सर्दी से।
सर्दी चल रही है, पर सर्दी के कारोबार में ज्यादा तेजी है।
सरकारी दफ्तरों में बाबू कह रहे हैं-काहे कहते हैं काम को, बहुतै सर्दी है। यही बाबूजी मई में कहते हैं भोत गर्मी है। सर्दी और गर्मी में काम न करना कुछ लोग अफोर्ड कर सकते हैं, नेता अफोर्ड कर सकता है तो वह सर्दी में दुबई भाग जाता है और गर्मी में स्विट्ज़रलैंड। सिर्फ नेताओं को काम न करने की सहूलियत हासिल है कि सिर्फ बकवास से काम चला लें। गाजापट्टी में आम बंदे मर रहे हैं पर नेता लोग मस्ती से कहीं दूर वीडियो पर बयान दे रहे हैं। पाकिस्तान में बड़े नेता तीन ही जगह पाये जाते हैं, जेल, इस्लामाबाद या लंदन। इमरान खान जेल में हैं, वैसे वह जब पीएम थे, तो पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में होते थे, वैसे लंदन में इमरान खान का घर है। पाकिस्तान की शरीफ फेमिली के बंदे जब पीएम नहीं होते, तो लंदन में ही होते हैं। गरीब बदहाल पब्लिक बलूचिस्तान से लेकर सिंध में पाये जाते हैं।
अभी एक रेहड़ी पर लिखा था-मेरठ कुल्फी, पर रेहड़ी पर गजक, रेवड़ी बिक रही थी। रेहड़ी वाले ने बताया कि कि गर्मी में लिखवाया था तब कुल्फी बेच रहा था। बोर्ड पुराना लगा है। रेहड़ी वाले भईया अकेला तू ही ऐसा रेहड़ीवाला नहीं है, अजित पवार कुछ दिनों पहले सेकुलरिज्म बेच रहे थे, अब राष्ट्रवाद बेच रहे हैं। मौसम देखकर धंधा बदलने वाले समझदार होते हैं।

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