जीवन पर थाली में छिपे विष की छाया
लोकमित्र गौतम
अगर कोई डॉक्टर आप पर ऊपर से नीचे तक निगाह डाले और फिर तनिक संजीदा होकर कहे, ‘मिस्टर आप हर सप्ताह करीब 5 ग्राम प्लास्टिक खा रहे हैं, जो हर महीने 20 ग्राम और सालभर में 250 ग्राम बनती है।’ तो हो सकता है आप चौंके और हैरान होकर कहें, ‘नहीं डॉक्टर साहब, मैं तो अपने खानपान का बहुत ही ध्यान रखता हूं, बहुत ही शुद्ध खाता हूं। प्लास्टिक खाने का कोई मतलब ही नहीं।’ लेकिन कई ऐसी माइक्रो प्लास्टिक से संबंधित रिसर्च मौजूद हैं जो पुष्टि करती हैं कि इंसान भी प्लास्टिक का शिकार हो रहा है। उसके शरीर में माइक्रो प्लास्टिक पहुंच रहा है। माइक्रो प्लास्टिक दरअसल 5 मिलीमीटर से भी कम लंबाई के ऐसे छोटे प्लास्टिक के टुकड़े हैं, जो हमारे महासागर और जलीय जीवन के लिए तो खतरनाक हैं ही, अब ये विभिन्न किस्म के सी फूड के साथ साथ हवा, पानी और भोजन के विस्तृत संसार में फैलकर इंसान के शरीर में जगह पा रहे हैं। अलज़जीरा ने अपनी एक रिपोर्ट में डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंटरनेशनल के हवाले से लिखा है कि पेयजल व खाने की चीजों के जरिये यह नैनो प्लास्टिक इंसान के शरीर में धीरे-धीरे इकट्ठा हो रहा है।
बखान बहुत लेकिन अमल कम
दुनिया पिछले डेढ़ दशकों से प्लास्टिक के खतरों का बखान तो कर रही है, मगर कोई देश ऐसा नहीं है जो अपने यहां प्लास्टिक को बैन कर दे। लगता है दुनिया का हर देश प्लास्टिक के खतरों की बात सिर्फ दूसरों के लिए ही करता है। अगर ऐसा न हो तो भला जर्मनी जैसे देश में हर व्यक्ति, हर साल 38 किलो प्लास्टिक कूड़ा न पैदा करे। यूरोप में हर व्यक्ति औसतन 24 किलो प्लास्टिक कचरा सालाना पैदा करता है। एक तरफ प्लास्टिक के खतरों का बखान करने के लिए विभिन्न सरकारें और पर्यावरण संगठन अंधाधुंध प्रचार करते हैं और धनराशि भी खर्चते हैं, वहीं दूसरी तरफ हर देश विकास व आधुनिक जीवनशैली के नाम पर प्लास्टिक की चकाचौंध में डूबा है। वैज्ञानिक बता रहे हैं कि प्लास्टिक की एक बोतल को नष्ट होने में सौ साल से ज्यादा लग जाते हैं और प्लास्टिक थैली को पांच सौ से भी ज्यादा साल, इसके बावजूद प्लास्टिक इस्तेमाल कम नहीं हो रहा।
नमक और चीनी में मौजूदगी
प्लास्टिक पर्यावरण में घुल मिलकर और विभिन्न चीजों की पैकेजिंग का हिस्सा बनकर हमारे शरीर में जगह बना रही है। दुनियाभर में कई ऐसी चौंका देने वाली रिपोर्टें सामने आयी हैं कि ट्रिपल रिफाइंडेड चीनी और नमक में प्लास्टिक के महीन कण यानी माइक्रो प्लास्टिक की मौजूदगी है। ये दो ऐसे उत्पाद हैं जिनकी बदौलत हम हर दिन थोड़ी-थोड़ी प्लास्टिक खा रहे हैं। थिंक टैंक टॉक्सिंस लिंक ने कुछ दिनों पहले स्टडी रिपोर्ट जारी की थी कि बाजार में बिक रहे सभी ब्रांड के नमक और चीनी में माइक्रो प्लास्टिक की मौजूदगी है। सबसे ज्यादा आयोडाइज्ड नमक में है, बहुरंगी पतले रेशों और झिल्ली के रूप में। टॉक्सिंस लिंक ने टेबल नमक, सेंधा नमक, समुद्री नमक और कचरा नमक सब पर स्टडी की, इसी तरह उसने दस किस्म की चीनी का भी पांच तरह के नमूनों में बांटकर अलग-अलग अध्ययन किया और पाया कि सिर्फ नमक के दो और चीनी का एक ही सैंपल था, जिसमें माइक्रो प्लास्टिक नहीं मिली वरना सभी मशहूर ब्रांड्स में पायी गई।
अधिकतम आबादी जोखिम में
नमक और चीनी के सभी नमूनों में माइक्रो प्लास्टिक की पर्याप्त मात्रा का पाया जाना बहुत चिंता का विषय होना चाहिए, क्योंकि इससे देश की अधिकतम आबादी के प्लास्टिक की चपेट में आने का खतरा है। शरीर में जब एक बार प्लास्टिक के कण पहुंच जाते हैं तो कैंसर से लेकर सूजन और अनेक दूसरी बीमारियां मसलन फेफड़ों का कमजोर होना, उनमें सूजन, उनकी कार्यक्षमता पर असर जैसी समस्याओं से लेकर हार्ट अटैक, मोटापा, इंसुलिन प्रतिरोध और बांझपन तक का खतरा पैदा हो जाता है। क्योंकि दूसरे देशों के नागरिकों के मुकाबले हम भारतीय कहीं ज्यादा नमक-चीनी खाते हैं। भारतीय एक दिन में औसतन 10.98 ग्राम नमक और दस चम्मच चीनी खा लेते हैं। यह डब्ल्यूएचओ के मानकों से बहुत ज्यादा है। लेकिन सवाल सिर्फ हमारे बीमार होने तक का नहीं है? माइक्रो प्लास्टिक और नैनो प्लास्टिक का इस तरह हवा, पानी और भोजन में घुल मिल जाने का मतलब है धरती की हर जगह इस जहरीले खतरे का मौजूद होना।
समुद्र के जीवों के लिए बनी आफत
समुद्र में प्लास्टिक स्फेयर की उपस्थिति सूक्ष्मजीव समुदायों को मुश्किल में डालती है और बड़े पैमाने पर समुद्री सतह के सूक्ष्मजीव प्लास्टिक के समंदर तक पहुंचने के कारण बेहद समस्याग्रस्त हैं। मछली की सैकड़ों प्रजातियों और दूसरे समुद्री जीवों के शरीर तक यह प्लास्टिक पहुंचने के कारण वे असमय मौत का शिकार हो रहे हैं। बड़े पैमाने पर सूक्ष्मजीवों के खत्म होने से जीवों के लिए जो इको सिस्टम होता है, वह बहुत तेजी से खत्म हो रहा है।
हम अपने लाइस्टाइल के कारण जो हर दिन प्लास्टिक अपने शरीर के अंदर ले लेते हैं, उसका नतीजा एक दिन शारीरिक समस्याओं के रूप में भुगतना पड़ेगा। क्योंकि अगर अभी नहीं एक्शन ले पाये तो आने वाले दिनों में हर दस साल में हम 250 किलो प्लास्टिक अपने शरीर के अंदरुनी हिस्सों में इकट्ठा कर रहे होंगे।
बहरहाल हर आदमी यह तो जानता है कि पर्यावरण बहुत नाजुक हालत में है। जलवायु परिवर्तन नियति बन चुकी है, फिर भी हम जो कुछ कहते हैं, वो सब करते नहीं। समय की चेतावनी है कि अब युद्धस्तर पर इंसान को सचमुच प्लास्टिक के विरुद्ध जंग लड़नी होगी और पहल करनी होगी, तभी हमारे खानपान से प्लास्टिक के टुकड़े गायब होंगे। - इ.रि.सें.