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संतुलित जीवनशैली में ही स्वस्थ दिल का राज़

08:52 AM Sep 27, 2023 IST
संतुलित जीवनशैली में ही स्वस्थ दिल का राज़
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रक्त शुद्ध कर आक्सीजन संग पूरे शरीर में पहुंचाने वाले हृदय का सुचारू काम करना हमारी सेहत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। वहीं दुनिया में हृदय रोग के चलते हर साल होने वाली करोड़ों मौतें बड़ी चुनौती हैं। जीवनशैली बदलकर हार्ट डिजीज से कैसे बचा जाये इसको लेकर दिल्ली स्थित सीनियर कार्डियोलोजिस्ट  डॉक्टर विकास कटारिया से रजनी अरोड़ा की बातचीत।

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हृदय शरीर का सबसे अहम हिस्सा है। यह रक्त को साफ करके ऑक्सीजन के साथ शरीर के सभी अंगों तक सर्कुलेट करता है और हमें स्वस्थ रखता है। लेकिन कई कारणों से शरीर का मेटाबॉलिक सिस्टम गड़बड़ा जाता है। हृदय यानी हार्ट कई बार अपना काम ठीक तरह नहीं कर पाता और बीमारियां उभरने लगती हैं। हार्ट को हम दो तरह से समझ सकते हैं- विक्टिम और विलेन। कई रिस्क फैक्टर्स की वजह से हार्ट विक्टिम है जैसे-मोटापा, अनियंत्रित डायबिटीज, हाइपरटेंशन, बैड कॉलेस्ट्रोल, फैटी लिवर, आरामपरस्ती, गलत खानपान, नींद पूरी न लेना, तनाव, तंबाकू या एल्कोहल का सेवन। खुद को और अपनों के हार्ट को हैल्दी रखने के लिए इन्हें कंट्रोल करना जरूरी है। लेकिन यह हार्ट विलेन भी बन जाता है। अगर किसी व्यक्ति को हार्ट में कोई समस्या हो, तो उसकी वजह से लंग्स, किडनी या पूरे शरीर पर बुरा असर पड़ता है। डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के हिसाब से हर साल लगभग 1.7 करोड़ लोग हृदय रोग के कारण मरते हैं, जो कुल वैश्विक मृत्यु दर का लगभग 31 प्रतिशत है। इनमें सबसे ज्यादा मौतें दिल के दौरे, स्ट्रोक और कोरोनरी हार्ट डिजीज के कारण होती हैं। हार्ट के स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए 29 सितंबर को ‘वर्ल्ड हार्ट डे’ यानी ‘विश्व हृदय दिवस’ मनाया जाता है जिसकी इस वर्ष की थीम ‘दिल का उपयोग करें, दिल को जानें’ है। वैज्ञानिकों का मानना है कि हार्ट अटैक आने से पहले इसके लक्षण दिखने लगते हैं जिन्हें नजरअंदाज नहीं कर डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए। जैसे-सांस लेने में परेशानी, शरीर के ऊपरी भाग में दर्द होना, उल्टी आना या पेट खराब होना, नींद न आना और बहुत थकान, छाती में दबाव-दर्द महसूस होना।

ऐसे रखें ध्यान

हृदय को स्वस्थ रखने के लिए उसके रिस्क फैक्टर्स को कंट्रोल करना जरूरी है। इसके लिए जीवनशैली में सुधार व पोषक खुराक लेना, अपनी गतिविधियों और स्वास्थ्य जांच को नियमित जारी रखना चाहिये।

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पोषक आहार

सबसे जरूरी है कि जब भूख हो, तभी खाएं। दिन में 3 बार भरपेट भोजन करने के बजाय 5-6 बार मिनी मील लें। एक बार में 300 ग्राम से ज्यादा न खाएं वहीं चबा-चबाकर खाएं। नाश्ता जरूर करें। बाहर के खाने व जंक फूड के बजाय घर का बना ताजा खाना खाएं। फल या ड्राई फ्रूट लेना बेहतर है।
पौष्टिक तत्वों से भरपूर हल्का और सुपाच्य आहार लें। तले से परहेज करें। कार्बोहाइड्रेट और वसा के बजाय फाइबर, विटामिन्स और प्रोटीन से भरपूर आहार लें। मल्टीग्रेन व चौकरयुक्त आटा इस्तेमाल करें। रेनबो डाइट यानी थाली में 5 रंगों के खाद्य पदार्थ शामिल हों। ब्रंच टाइम में 2 सर्विंग फल जरूर खाएं। ड्राई फ्रूट्स व सीड्स का सेवन करें। टोंड या स्किम्ड दूध या दही आदि लें। नमक और चीनी कम रखें। मैदा, चावल, चीनी, हाई शूगर ड्रिंक्स, चाय-कॉफी, तंबाकू व एल्कोहल से परहेज बेहतर है।

वजन पर काबू

वैज्ञानिकों का मानना है कि मोटापा तकरीबन हर बीमारी की जड़ है। दिल स्वस्थ रखने के लिए रोजाना 30 मिनट या हफ्ते में करीब 150 मिनट कार्डियो और स्ट्रैचिंग एक्सरसाइज करें। इन्हें अपनी पसंद और सामर्थ्यानुसार चुनें जैसे- जिम, ब्रिस्क वॉक, जॉगिंग, एरोबिक, साइकलिंग,स्विमिंग, ट्रेडमिल, स्टेशनरी वॉकिंग, योगा, गेम्स। व्यायाम शुरू में धीरे और कम करें, स्टैमिना बढ़ने पर तेज और ज्यादा समय के लिए करें। बाहर न जा पाएं, तो घर पर ही व्यायाम करें। लिफ्ट के बजाय सीढ़ियों का इस्तेमाल करें, आसपास पैदल जाएं।

बायोलॉजिकल क्लॉक

शरीर का मेटाबॉलिक सिस्टम दुरुस्त रखने के लिए रोजाना समय पर सोएं-जागें व खाना खाएं। रात को 7-8 घंटे की नींद लें। दिन में एक्टिव रहें। भोजन सोने से करीब 3 घंटे पहले कर लें। भोजन उपरांत 15-20 मिनट टहलें।

तनाव को ना

हृदय रोग से बचने के लिए समय सारणी बनाकर चलें। तनावमुक्त जिंदगी बिताने के लिए प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ में संतुलन बनाकर चलें। व्यस्तता के बावजूद रोजाना एक-आध घंटा ‘मी टाइम’ जरूर निकालें। अपने पसंदीदा काम करें- मेडिटेशन, रीडिंग-राईटिंग, डांस, म्यूज़िक, गार्डनिंग,सृजन, हॉबी, प्रकृति से जुड़ाव, करीबियों के साथ समय बिताना व संवाद। इससे तनाव दूर होता है।

नियमित जांच

सेहतमंद होने के बावजूद रेगुलर चेकअप जरूर कराएं। वैज्ञानिकों की मानें तो देश में 26 प्रतिशत लोग कोई गंभीर समस्या न होने, अनजाने डर या जागरूकता के अभाव में नियमित जांच कराने से हिचकते हैं और रोगों का शिकार हो जाते हैं। हाई रिस्क कैटेगरी में आने वाले लोग 25 साल के बाद नियमित और 50 की उम्र के बाद साल में एक बार मेडिकल चेकअप कराएं। बीमारी का पता चले तो डॉक्टरी सलाह का अनुसरण करें।

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