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करदाता की दौलत उड़ा शाहखर्ची का मौसम

09:02 AM Sep 27, 2024 IST

विनय कुमार पाठक

‘लगा दे आग में पानी, जवानी उसको कहते हैं; उड़ा दे बाप की दौलत, फुटानी उसे कहते हैं।’ यह एक बहुत प्रचलित लोकोक्ति है, जिसे कलमदास अपने बचपन और जवानी के दिनों में सुना करते थे। नून-तेल-लकड़ी के फेर में जवानी ऐसी कभी नहीं आई कि पानी में आग लगा दे, और बाप के पास दौलत थी नहीं कि फुटानी करें। पर विगत कई वर्षों से फुटानी देख रहे हैं। अरे नहीं, नहीं। बेटा उनकी दौलत उड़ा रहा है, यह बात नहीं है। दौलत तो उनके पास भी नहीं है, जिसे उड़ा कर बेटा फुटानी कर सके। उनकी आय में कटौती का सबसे बड़ा मद होता है आयकर। आयकर के बारे में वैसे भी कहा जाता है कि यह वैध काम के लिए सरकार द्वारा लिया जाने वाला हफ्तावसूली होता है।
फुटानी की बात कलमदास को तब याद आती है, जब चुनावी दलदल के हर दल का चुनाव के वक्त लालच-पत्र, जिसे कोई दल घोषणा-पत्र, तो कोई संकल्प-पत्र, तो कोई और न्याय-पत्र और न जाने क्या-क्या नाम से पुकारता है। इस प्रकार का पत्र जारी होते ही उनके मस्तिष्क में गीत बजने लगता है, ‘झूठा है तेरा वादा... वादा तेरा वादा, वादे पे तेरे मारा गया नागरिक सीधा सादा।’
सवाल उठता है कि यहां फुटानी कहां है? इस दलदल के सभी दल जब अपने घोषणा पत्र में मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, मुफ्त इलाज, मुफ्त यात्रा, मुफ्त लैपटॉप, मुफ्त साइकिल, मुफ्त स्कूटर, मुफ्त ये, मुफ्त वो का वादा करते हैं, और जब हर महिला, हर बुजुर्ग को इतने हजार और उतने हजार रुपये देने का वादा करते हैं, जिसे प्यार से रेवड़ी संस्कृति का नाम दिया जाता है, तब कलमदास को लगता है कि ये दलदल के सभी दल उनके आय से काटे गए कर से फुटानी कर रहे हैं।
उन्हें मलाल है कि उनकी आय से यह फुटानी क्यों करते हैं। यह शाहखर्ची माननीयगण अपनी दौलत से क्यों नहीं करते? अपनी दौलत तो ये बढ़ाने में लगे रहते हैं, और उसे बढ़ाते-बढ़ाते इतना बढ़ा लेते हैं कि सात पुश्तों की फुटानी सुनिश्चित हो जाती है।
उधर करदातागण सड़क, बिजली, और अन्य सुविधाओं के लिए हफ्तों, महीनों, वर्षों नहीं, दशकों से तरस रहे हैं। संतोष इस बात पर करते हैं कि करदाताओं को इतना सम्मान देना भी कम बात नहीं है कि उनसे लिए गए अंश से सरकार को फुटानी करने का मौका मिलता है।
वैसे रेवड़ी संस्कृति पर सुप्रीम आदेश आना शेष है। देखें, फुटानी से मुक्ति मिलती है या फिर फुटानी को सुप्रीम मिल जाती है।

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